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आयो कहाँ से घनश्याम…रैना बितायी किस धाम…

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 35

शास्त्रिया संगीत के जानकारों को ठुमरी की विशेषताओं के बारे में पता होगा. ठुमरी उपशास्त्रिया संगीत की एक लोकप्रिय शैली है जो मुख्यतः राधा और कृष्ण का प्रेमगीत है. ठुमरी केवल गायिकाएँ ही गाती हैं और इस पर कथक शैली में नृत्य किया जा सकता है. श्रृंगार रस, यानी कि प्रेम रस की एक महत्वपूर्ण मिसाल है ठुमरी. ठुमरी को कई रागों में गाया जा सकता है. राग खमाज में एक बेहद मशहूर ठुमरी है “कौन गली गयो श्याम”. समय समय पर इसे बहुत से शास्त्रिया गायिकाओं ने गाया है. फिल्म में भी इसे जगह मिली है. जैसे कि कमाल अमरोही ने अपनी महत्वकांक्षी फिल्म “पाकीजा” में परवीन सुल्ताना से यह ठुमरी गवायी थी. हालाँकि इस फिल्म के संगीतकार थे गुलाम मोहम्मद, लेकिन उनकी मृत्यु हो जाने के कारण नौशाद साहब ने ‘पार्श्वसंगीत’ के रूप में इस ठुमरी को पेश किया था. दोस्तों, आज ‘ओल्ड इस गोल्ड’ में हम “पाकीजा” फिल्म की यह ठुमरी नहीं पेश कर रहे हैं, बल्कि इसी ठुमरी से प्रेरित एक लोकप्रिय फिल्मी गीत सुनवा रहे हैं फिल्म “बुड्डा मिल गया” से.

1971 में बनी फिल्म “बुद्धा मिल गया” में राहुल देव बर्मन का संगीत था. इस फिल्म में “रात कली एक ख्वाब में आई” और “भली भली सी एक सूरत” जैसे गाने बेहद मशहूर हुए थे. लेकिन इसमें मन्ना डे और अर्चना का गाया शास्त्रिया रंग में ढाला हुआ “आयो कहाँ से घनश्याम, रैना बिताई किस धाम” भी काफ़ी चर्चित हुया था. शास्त्रिया संगीत पर आधारित गीत को आम लोगों में लोकप्रिय बनाने में जिन संगीतकारों को महारत हासिल थी उनमें से एक पंचम भी थे. यूँ तो राग खमाज पर कई लोकप्रिय गीत बने हैं जैसे कि “अमर प्रेम” फिल्म का “बडा नट्खट है रे कृष्ण कन्हैया”, इसी फिल्म से “कुछ तो लोग कहेंगे”, “काला पानी” फिल्म का “नज़र लागी राजा तोरे बंगले पर”, और फिर वो प्रसिद्ध भजन “वैष्णवा जन तो तेने कहिए”, और भी कई गीत हैं, लेकिन “बुद्धा मिल गया” फिल्म का यह गीत भी अपने आप में अनूठा है, बेजोड है. यूँ तो पूरे गीत में मन्ना डे की आवाज़ है, बस आखिर में अर्चना, जो की इस फिल्म की अभिनेत्री भी हैं, एक ‘लाइन’ गाती हैं और गीत समाप्त हो जाता है. तो लीजिए पेश है “आयो कहाँ से घनश्याम”.

और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला “ओल्ड इस गोल्ड” गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं –

१. १९६६ में आई इस फिल्म में थे धर्मेन्द्र और शर्मीला टैगोर.
२. मगर ये गीत आशा की आवाज़ में शशिकला पर फिल्माया गया है.
३. मुखड़े में शब्द है -“खुश्बू”.

कुछ याद आया…?

पिछली पहेली का परिणाम –
नीरज जी, मनु जी आप दोनों के लिए वाकई ये आसान रहा होगा. लगता है अब पहेली कुछ मुश्किल करनी पड़ेगी…नीलम जी ने भी सही चुटकी ली है 🙂

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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