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बज उठेंगीं हरे कांच की चूडियाँ….आशा की आवाज़ में एक चहकता नग्मा…

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 203

‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ पर इन दिनों आप सुन रहे हैं स्वप्न मंजूषा शैल ‘अदा’ जी के फ़रमाइशी नग़में। आज बारी है उनके पसंद का तीसरा गीत सुनने की। आशा भोंसले की आवाज़ में यह गीत है फ़िल्म ‘हरे कांच की चूड़ियाँ’ का शीर्षक गीत “बज उठेंगी हरे कांच की चूड़ियाँ”। यह गीत बहुत ज़्यादा प्रचलित गीतों में नहीं गिना जाता है, और शायद हम में से बहुत लोगों को यह गीत कभी कभार ही याद आता होगा। ऐसे में इस सुंदर गीत का ध्यान हम सब की ओर आकृष्ट करने के लिए हम अदा जी का शुक्रिया अदा किए बग़ैर नहीं रह सकते। ‘हरे कांच की चूड़ियाँ’ १९६७ की फ़िल्म थी। नायिका प्रधान इस फ़िल्म में नैना साहू ने मुख्य भूमिका निभायी और उनके साथ में थे विश्वजीत, नासिर हुसैन, सप्रू, और राजेन्द्र नाथ प्रमुख। फ़िल्म की मूल कहानी कुछ इस तरह की थी कि मोहिनी (नैना साहू) प्रोफ़ेसर किशनलाल (नासिर हुसैन) की बेटी है। मोहिनी मेडिकल की छात्रा है जो सभी के साथ खुले दिल से मिलती जुलती है। एक बार वो बेहोश हो जाने के बाद जब डाक्टरी जाँच करायी जाती है तो डाक्टर उसे गर्भवती करार देता है। किशनलाल की जैसे दुनिया की उलट जाती है। कहानी उस ज़माने के लिहाज़ से थोड़ी प्राप्त वयस्क थी, जिसकी वजह से शायद यह उतनी कामयाब नहीं रही। लेकिन हमें यहाँ तो मतलब है बस अच्छे अच्छे गानें सुनने से, जो कि इस फ़िल्म में भी थे। किशोर साहू ने इस फ़िल्म का निर्माण व निर्देशन किया था। अब नैना साहू उनके क्या लगते हैं, यह मैं आप पर छोड़ता हूँ, पता कर के मुझे भी ज़रूर बताइएगा, मैं इंतज़ार करूँगा! शंकर जयकिशन का इस फ़िल्म में संगीत था और इस गीत को लिखा शैलेन्द्र ने।

दोस्तों, यह गीत उन गीतों में से हैं जिनमें मुखड़ा और अंतरा एक जैसा ही होता है। चलिए कुछ उदाहरण दिया जाए। महेन्द्र कपूर की आवाज़ मे फ़िल्म ‘हमराज़’ का गीत “नीले गगन के तले धरती का प्यार पले”, और ‘फिर सुबह होगी’ का शीर्षक गीत “वो सुबह कभी तो आएगी” में मुखड़ा और अंतरे एक ही मीटर पर, एक ही धुन पर लिखा गया है। ठीक वैसे ही ‘हरे कांच की चूड़ियाँ’ फ़िल्म के इस गीत में भी वही बात है। “धानी चुनरी पहन, सज के बन के दुल्हन, जाउँगी उनके घर, जिन से लागी लगन, आयेंगे जब सजन, जीतने मेरा मन, कुछ न बोलूँगी मैं, मुख न खोलूँगी मैं, बज उठेंगी हरे कांच की चूड़ियाँ, ये कहेंगी हरे कांच की चूड़ियाँ”। कुछ कुछ श्रृंगार रस पर आधारित इस गीत में एक लड़की के नये नये ससुराल में प्रवेश के समय का वर्णन हुआ है, कि किस तरह से वो अपने पति और नये परिवार के लोगों के दिलों को जीत लेंगी। क्योंकि ज़ाहिर सी बात है कि नयी दुल्हन ससुराल के पहले पहले दिनों में शर्म-ओ-हया के चलते अपने मुख से कुछ नहीं बोलती, इसलिए वो अपने जज़्बातों और तमन्नाओं को अपने नये परिवार वालों तक पहुँचाने का दायित्व अपने हरे कांच की चूड़ियों पर छोड़ती है। बहुत ही सुंदर शब्दों में पिरो कर शैलेन्द्र ने चूड़ियों का मानवीकरण किया है। तो लीजिए पेश है हरे कांच की चूड़ियों की कहानी आशा जी की ज़बानी।

और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला “ओल्ड इस गोल्ड” गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)”गेस्ट होस्ट”. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. गीतकार इन्दीवर का लिखा एक शानदार गीत.
२. फिल्म में राजेश खन्ना और शर्मीला टैगोर की प्रमुख भूमिकाएं थी.
३. अंतरे में ये शब्द आता है -“कविता”.

पिछली पहेली का परिणाम –
पूर्वी जी २८ अंकों पर आने की बधाई….लगता है आप ही सबसे पहले मंजिल पर पहुंचेंगीं…पराग जी, सबसे पहली बात, आवाज़ मंच किसी एक कलाकार या किसी ख़ास युग को समर्पित नहीं है, यहाँ संगीत विशेषकर हिंदी फ़िल्मी और गैर फ़िल्मी संगीत पर चर्चा होती है. आनंद बक्शी पहले गीतकार नहीं है आवाज़ पर जिनकी तारीफ़ हुई हो, शायद ही आपने ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय जी के आलेख में कभी किसी कलाकार की बुराई पायी हो, किसी की भी तारीफ करने का अर्थ दूसरे को बुरा कहना हरगिज़ नहीं है, फिल्म संगीत में आप आनंद बक्शी साहब के योगदान को कहीं से भी कमतर नहीं आंक सकते, यकीनन वो सबसे अधिक सफल गीतों को लिखने वाले गीतकार हैं, यो तो तथ्य है जिससे न आप इनकार कर सकते हैं न हम मुकर सकते हैं. आपने जिन महान गीतकारों की चर्चा की उन पर आलेख लिखेंगें तो हमें यकीनन बहुत ख़ुशी होगी, पर कृपया ये निवेदन हमारा सभी संगीत प्रेमियों से है कि यदि हम ए आर रहमान की तारीफ़ करें तो उसे नौशाद साहब की बुराई न समझा जाए….दोनों का अपना महत्त्व है…अपना क्लास है….ये सभी संगीत के विविध रूप हैं और ये अच्छा ही है कि हमारे पास ऐसी विविधता है.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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