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जीवन से भरी तेरी आँखें….काव्यात्मक शैली में लिखा था इन्दीवर ने इस गीत को

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 204

ता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी, और आशा भोंसले के बाद, अदा जी की अगली फ़रमाइश में है किशोर कुमार की आवाज़। वैसे तो इन चारों गायकों ने इतने सारे मशहूर गानें गाए हैं कि किसी एक गीत को चुनना नामुमकिन सी बात हो जाती है। फिर भी अदा जी ने इनके एक एक गीत ऐसे चुन कर हमें भेजे हैं कि भई वाह! आप के पसंद की दाद देनी पड़ेगी। हर एक गीत लाजवाब है अपने अपने अंदाज़ का। तो आज जैसा कि हम ने कहा, किशोर दा की आवाज़ की बारी है, जो आवाज़ ज़िंदगी से हारे हुए लोगों को वापस जीने के लिए मजबूर कर देती है। जी हाँ, आज का गीत है फ़िल्म ‘सफ़र’ का, “जीवन से भरी तेरी आँखें मजबूर करे जीने के लिए, सागर भी तरसते रहते हैं तेरे रूप का रस पीने के लिए”। आँखों की ख़ूबसूरती पर असंख्य गीत बने हैं और आज भी बन रहे हैं। लेकिन इस गीत में जो काव्य है, जो जीवन दर्शन है, शॄंगार रस और जीवन दर्शन का ऐसा समावेश हर गीत में सुनाई नहीं देता। गीतकार इंदीवर का शुमार उन गीतकारों में होता है जिनके अनमोल गीत निराशा भरे मन में आशा का संचार करते हैं, उदास ज़िंदगी को जीवंत कर देते है, और इस दुनिया को समझने की दृष्टि प्रदान करते हैं, कुछ इस प्रस्तुत गीत की ही तरह। शुद्ध हिंदी का इस्तेमाल इस गीत में इंदीवर जी ने किया है। वो आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन बदलते वक़्त के इस शोरगुल भरे गीत संगीत के युग में जब भी मीठे, भावपूर्ण और अर्थपूर्ण गीतों की बात चलेगी, इंदीवर का नाम सदा सम्मान से याद किया जाएगा।

फ़िल्म ‘सफ़र’ बनी थी सन् १९७० में। १९६९ में ‘आराधना’ के साथ शुरु हो कर १९७२ तक राजेश खन्ना ने लगातार १५ सुपर हिट फ़िल्में दीं, जिसकी वजह से उन्हे फ़िल्म जगत का पहला सुपर स्टार निर्विरोध घोषित कर दिया गया। असित सेन निर्देशित फ़िल्म ‘सफ़र’ में राजेश खन्ना के साथ थीं शर्मीला टैगोर और थे दादामुनि अशोक कुमार और सह-नायक फ़ीरोज़ ख़ान। इस फ़िल्म में कुल पाँच गीत हैं, जो सभी के सभी कुछ हद तक दार्शनिक अंदाज़ में लिखे गए हैं। इंदीवर और कल्याणजी आनंदजी की तिकड़ी ने ऐसे कई फ़िल्मों में एक से बढ़कर एक दार्शनिक गीत हमे दिए हैं। इस फ़िल्म की ही अगर बात करें तो प्रस्तुत गीत के अलावा किशोर दा का ही गाया “ज़िंदगी का सफ़र है ये कैसा सफ़र”, लता जी का गाया “हम थे जिनके सहारे वो हुए ना हमारे”, और मन्ना डे का गाया “नदिया चले चले रे धारा” जीवन दर्शन अपने में समाए हुए हैं। फ़ीरोज़ ख़ान पर फ़िल्माया गया मुकेश का गाया गीत “जो तुम को हो पसंद वही बात करेंगे” में वैसे रोमांटिसिज़्म की ही अधिक झलक मिलती है। “जीवन से भरी तेरी आँखें मजबूर करे जीने के लिए” जैसे बोल लिखने वाले इंदीवर जी अपनी निजी ज़िंदगी में हमेशा प्यार के लिए तरसते रहे। बता रहे हैं और कोई नहीं बल्कि आनंदजी, जिनके साथ उन्होने एक लम्बी पारी खेली थी, “ये बेचारे इंदीवर जी, हमेशा प्यार के भूखे रहे। बचपन से उनको ज़िंदगी में, माँ बाप चले गए जल्दी तो अकेले रह गए। तो हमारा घर ही उनका घर था। वो हर वक़्त हम को बोलते थे कि ‘तुम बनियों को तो कुछ आता नहीं है, ये है वो है, तो शोज़ पर भी जाते थे तो रहते थे साथ में, Indeevarji was like a ‘father figure’।

इस गीत का प्रील्युड म्युज़िक भी कमाल का है जो किसी हद तक पार्श्व संगीत (बैकग्राउंड म्युज़िक) की तरह सुनाई देता है। यहाँ यह बताना ज़रूरी है कि कल्याणजी आनंदजी एक अच्छे संगीतकार होने के साथ साथ एक बहुत अच्छे पार्श्व संगीतकार भी रहे हैं। तो दोस्तों, आइए सुनते हैं इंदीवर, कल्याणजी-आनंदजी और किशोर कुमार का यह सदाबहार गीत, जो अब भी राह चलते अगर कहीं से थोड़ी सुनाई दे जाता है तो हमारे पाँवों को रुकने पर मजबूर कर देता है।

और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला “ओल्ड इस गोल्ड” गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)”गेस्ट होस्ट”. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. गीतकार साहिर लुधियानवीं ने हिंदी शब्दों का इस्तेमाल किया है इस गीत में.
२. मीना कुमारी ने फिल्म में शीर्षक भूमिका निभाई थी.
३. एक अंतरे की दूसरी पंक्ति में ये शब्द है – “धर्म”.

पिछली पहेली का परिणाम –
रोहित जी बहुत दिनों बाद सही जवाब के साथ आपकी आमद हुई है बधाई…२४ अंक हुए आपके….दिशा जी भी बहुत दिनों में आई, पर ज़रा सा पीछे रह गयीं. मंजू जी के क्या कहने 🙂 वैसे ऐसा कोई गाना है क्या….पाबला जी नज़र नहीं आये बहुत दिनों से, और स्वप्न जी, आपकी पसंद बेशक लाजवाब है…मनु जी लगता है फिर सो गए…..और पराग जी के लिए एक गीत याद आ रहा है…”अजी रूठ कर अब कहाँ जाईयेगा….”

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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