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संसार से भागे फिरते हो…साहिर और रोशन ने रचा वो गीत जिसने सवाल उठाये बेहद सार्थक

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 205

र आज बारी आ गई है स्वप्न मंजूषा शैल ‘अदा’ जी के पसंद का पाँचवा गीत सुनने की। हम इसे उनकी पसंद का अंतिम गीत नहीं कहेंगे क्योंकि वो आगे भी पहेली प्रतियोगिता को ज़रूर जीतेंगी और हमें अपने पसंद के और सुरीले गानें सुनवाएँगी, ऐसा हम उनसे उम्मीद रखते हैं। बहरहाल आइए बात की जाए आज के गीत की। आज का गीत है फ़िल्म ‘चित्रलेखा’ से लता जी का गाया हुआ, “संसार से भागे फिरते हो, भगवान को तुम क्या पायोगे”। इस फ़िल्म का लता जी का ही गाया हुआ एक दूसरा गीत “सखी री मेरा मन उलझे तन डोले” हम आप को सुनवा चुके हैं और उस गीत के साथ साथ ‘चित्रलेखा’ की कहानी और फ़िल्म से जुड़ी तमाम बातें भी बता चुके हैं। साहिर लुधियानवी की गीत रचनायों को सुरों में ढाला था संगीतकार रोशन ने, और यह फ़िल्म रोशन के संगीत यात्रा की एक उल्लेखनीय फ़िल्म रही है। इस फ़िल्म में रोशन ने अपनी तरफ़ से यह साबित कर दिखाया कि शास्त्रीय संगीत पर आधारित गानें भी लोकप्रिय गीतों की तालिका में शामिल किए जा सकते हैं। लता जी के गाए इन दो गीतों के अलावा इस फ़िल्म के दूसरे मशहूर गानें हैं रफ़ी साहब का गाया “मन रे तू काहे न धीर धरे”, आशा-उषा का गाया “काहे तरसाये जियरा”, आशा-रफ़ी का गाया “छा गए बादल नील गगन पर, घुल गया कजरा सांझ ढली”, मन्ना डे का गाया “के मारा गया ब्रह्मचारी”, तथा लता जी का ही गाया एक और गीत “ए री जाने न दूँगी”। रोशन की अगर बात करें तो उन्होने लगभग ९४ फ़िल्मों में स्वतंत्र रूप से संगीत दिया और उसके अलावा भी कई ऐसी फ़िल्में हैं जिनमें उन्होने दो या तीन गीतों का संगीत तैयार किया जब कि उन फ़िल्मों में कोई और मुख्य संगीतकार थे।

“संसार से भागे फिरते हो, भगवान को तुम क्या पायोगे, इस लोक को तुम अपना ना सके, उस लोक में भी पछताओगे”, यह एक बड़ा ही दार्शनिक गीत है। गीत के मुखड़े में ही सारा निचोड़ छुपा हुआ है। भगवान को पाने का, मोक्ष प्राप्ति का एक ही रस्ता है, अपना संसार धर्म पालन करना। भगवान को पाने के लिए सांसारिक सुखों को छोड़ने की कोई ज़रूरत नहीं है, सांसारिक सुख भी एक तरह से भगवान को पाने का ही ज़रिया है। शायद ओशो के आदर्श भी यही बात कहते हों!!! यह गीत वार करती है घर संसार को त्याग कर सन्यास लेने वाले लोगों पर। “ये भोग भी एक तपस्या है, तुम त्याग के मारे क्या जानो”, साहिर साहब ने इस पंक्ति में यकीनन यह कहने की कोशिश की होगी कि सन्यास लेने का मतलब यह नहीं कि घर बार छोड़कर हिमालय की राह पकड़ लें, बल्कि घर परिवार में रह कर, संसार की मोह माया में रह कर भी जो हर मोह माया से परे होता है, वही असली साधु है, वही सच्चा सन्यासी है। तरह तरह के वाक्य वाणों से संसार से भागे लोगों पर इस गीत में चोट पे चोट किया गया है जैसे कि “हम जनम बीता कर जाएँगे, तुम जनम गँवा कर जाओगे”, “हर युग में बदलते धर्मों को कैसे आदर्श बनाओगे” वगैरह। तो दोस्तों, आइए साहिर साहब के इन अमर बोलों को, जो रोशन के संगीत में ढल कर, लता जी की मधुर आवाज़ में निकले, सुनते हैं आज अदा जी के अनुरोध पर! और ज़रा याद कीजिए चित्रलेखा बनी मीना कुमारी के उस अंदाज़ को जिनमें वो योगी कुमारगिरि बने अशोक कुमार को संसार और सन्यास का अर्थ समझा रहीं हैं।

और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला “ओल्ड इस गोल्ड” गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)”गेस्ट होस्ट”. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. एक मशहूर कोमेडियन जोड़ी पर फिल्माया गया एक चुलबुला सा गीत.
२. मन्ना डे ने पुरुष स्वर दिया था.
३. मुखड़े में शब्द है -“मौसम”.

पिछली पहेली का परिणाम –
रोइट जी २६ अंकों पर पहुँचने की बधाई आपको. सभी श्रोताओं की भागीदारी बेहद उत्साहवर्द्धक है, धन्येवाद.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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