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तुम रूठी रहो मैं मनाता रहूँ…कि इस मीठी नोंक झोंक में भी मज़ा बहुत आता है

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 404/2010/104

दोस्तों, पिछले तीन दिनों से हम आप ही के पसंद के गानें सुन रहे हैं ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ पर। ये तीनों ही गीत कुछ संजीदे या फिर थोड़े दर्द भरे रहे। तो आज मूड को बिल्कुल ही बदलते हुए हम जिस गीत को सुनेंगे उसका ताल्लुख़ है खट्टे मीठे नोंक झोंक से, प्यार भरे तकरारों से, प्यार में रूठने मनाने से। यह गीत है रोहित राजपूत की पसंद का गीत है, रोहित जी ने पहेली प्रतियोगिता के पहले सीज़न में मंज़िल के बहुत करीब तक पहुँच गए थे, लेकिन शायद व्यस्तता की वजह से बाद में वो कुछ ग़ायब से हो गए। लेकिन हमारा अनुमान है कि जब भी उन्हे समय मिल पाता है, वह आवाज़ के मंच को दस्तक ज़रूर देते हैं। तभी तो उन्होने अपनी फ़रमाइश लिख भेजी है हमें। तो उनकी फ़रमाइश है फ़िल्म ‘आस का पंछी’ से, “तुम रूठी रहो मैं मनाता रहूँ कि इन अदाओं पे और प्यार आता है”। लता मंगेशकर और मुकेश का गाया यह गीत है जिसे लिखा है हसरत जयपुरी ने और स्वरबद्ध किया है शंकर जयकिशन ने। १९६१ की इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे वैजयंतीमाला, राजेन्द्र कुमार और राज मेहरा। राजेन्द्र सिंह बेदी लिखित इस फ़िल्म का निर्देशन किया था मोहन कुमार ने। लता-मुकेश का गाया यह गीत रूठने मनाने पर बने गीतों में एक अहम स्थान रखता है। बहुत ही हल्का फुल्का गीत है, जिसे हम कुछ कुछ रोमांटिक कॊमेडी की श्रेणी में डाल सकते हैं। हसरत साहब को वैसे भी रोमांटिक युगल गीतों का जादूगर समझा जाता है जिनके लिखे तमाम लोकप्रिय लता-रफ़ी व लता-मुकेश डुएट्स इस बात को साबित करता है। आख़िरी अंतरे मे हसरत साहब लिखते हैं कि “चाहे कोई डगर हो प्यार की, ख़त्म होगी ना तेरी मेरी दास्ताँ, दिल जलेगा तो होगी रोशनी, तेरे दिल में बनाया मैंने आशियाँ”। हम भी यही कहेंगे कि हम और आप मिल कर जो इस सुरीली डगर पर चल पड़े हैं यह डगर कभी ख़त्म नहीं होगी, और यह दास्ताँ युंही चलती रहेगी। भले ही कभी कभार कुछ पड़ाव आ जाए, लेकिन वो बहुत कम समय के लिए होगा, फिर से कारवाँ चल पड़ेगा अपनी अगली सुरीली मंज़िल की तरफ़।

आज हम बहुत दिनों के बाद फिर एक बार रुख़ कर रहे हैं तबस्सुम द्वारा प्रस्तुत उस दूरदर्शन के मशहूर कार्यक्रम ‘फूल खिले हैं गुलशन गुलशन’ की ओर जिसमें एक बार संगीतकार शंकर जयकिशन के शंकर ने शिरकत की थी। उसमें तबस्सुम जी ने शंकर साहब से आख़िर में एक सवाल किया था कि “शंकर जी, लोग यह महसूस करते हैं कि जयकिशन जी के बाद फ़िल्म जगत में आप का नाम भी कम नज़र आने लग गया है।” इसके जवाब में शंकर जी ने कहा था “उसकी वजह है। आपको इससे पहले भी मैंने बतलाया, जैसे कि आजकल के वक़्त में एक अच्छा आदमी जो नाम किया है, अच्छा वक़्त देखा है, तो ऐसे काम के लिए के घर जाना, किसी की ख़ुशामद करना, ये मैं समझता हूँ कि बेइज़्ज़ती है। इंसान को अगर शान से काम करना हो तो ठीक है, काम का मुक़ाबला कीजिए ना, काम अगर अच्छा चाहिए तो हम हैं, चाहे आज हो, आज से २५ साल पहले का काम हो तो वैसा अगर काम करना हो तो हम करके दिखा सकते हैं और आज भी हमारा म्युज़िक, जो भी हमने किया है, आज के गानों से भी ज़्यादा हमारे गानों का रीदम आज भी उतना फ़ास्ट है।” तो दोस्तों, फ़ास्ट गानों की जब ज़िक्र चल ही रही है तो आज का यह गीत भी फ़ास्ट रीदम पर ही बना है, तो आइए सुनते हैं रोहित राजपूत की फ़रमाइश का यह प्यारा सा युगल गीत।

क्या आप जानते हैं…
कि हसरत जयपुरी का असली नाम इक़बाल हुसैन था और गीतकार बनने से पहले वो एक बस कंडक्टर थे।

चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-

1. मुखड़े में शब्द है -“शीशा”, गीत बताएं -३ अंक.
2. आशा भोसले की आवाज़ में इस गीत को किस शायर ने लिखा है- २ अंक.
3. संगीतकार बताएं-२ अंक.
4. दिलीप कुमार और वैजयंती माला अभिनीत इस फिल्म का नाम बताएं-२ अंक.

विशेष सूचना -‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।

पिछली पहेली का परिणाम-
चलिए इंदु जी ग़लतफ़हमी ही सही, पर इस बहाने एक सुन्दर गीत तो सुना, कल तो सभी विजेताओं में जम कर जवाब दिए, सभी को बधाई

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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