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जब ओल्ड इस गोल्ड के श्रोताओं ने सुनाये सुजॉय को अपनी पसंद के गीत- 150 वें एपिसोड का जश्न है आज की शाम

२० फरवरी २००९ को आवाज़ पर शुरू हुई एक शृंखला, जिसका नाम रखा गया ओल्ड इस गोल्ड. सुजॉय चट्टर्जी विविध भारती ग्रुप के सबसे सक्रिय सदस्य थे, यही माध्यम था उनसे परिचय का. फिर एक बार वो दिल्ली आये उन्होंने अपने ग्रुप के सभी मित्रों को मिलने के लिए बुलाया. उस दिन युग्म के नियंत्रक शैलेश भारतवासी जी उनसे मिले. उसके अगले दिन मैं सुजॉय से व्यक्तिगत रूप से मिला, उनके पास रेडियो प्रोग्राम्स का एक ऐसा खजाना मौजूद था जिस पर किसी की भी नज़र ललचा जाए, तब से यही जेहन में दौड़ता रहा कि किस तरह सुजोय के इस खजाने को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाया जाए, तभी अचानक ओल्ड इस गोल्ड का आईडिया क्लिक किया. २० फरवरी का दिन क्यों चुना गया इसकी भी एक ख़ास वजह थी, यहाँ थोडा सा व्यक्तिगत हो गया था मैं….यही वो दिन था जब मेरी सबसे प्रिय पूजनीय नानी माँ दुनिया को विदा कह गयी थी, मुझे लगा क्यों ना इस शृंखला को उन्हीं की यादों को समर्पित किया जाए. खैर जब सुजॉय से पहले पहल इस बारे में बात की तो सुजॉय तो क्या मैं और आवाज़ की टीम भी इसकी सफलता को लेकर संशय में थे, और फिर रोज एक नया गीत डालना, क्या हम ये सब नियमित रूप से कर पायेंगें ? पर जब सुजॉय ने मेरे चुने पहले १० गीतों का आलेख भेजा तो कम से कम मुझे इस बात का विश्वास हो गया कि हाँ ये संभव है और शुरू हो गया सफ़र पुराने सदाबहार गीतों को सुनने और उनके बारे में विस्तार से चर्चा करने का.

धीरे धीरे कारवाँ बढता गया, नए नए प्रयोग हुए और इस पूरी प्रक्रिया का श्रोताओं ने और आवाज़ की संचालन टीम ने जम कर आनंद लिया. १०० एपिसोड पूरे करने के बाद हमने की ख़ास मुलाकात सुजॉय से. लीजिये आगे बढ़ने से पहले एक बार फिर इस बातचीत का आनंद लें आप भी (पढिये एक मुलाकात सुजॉय से). पिछले १५० दिनों से सुजॉय बिने रुके हमें एक से बढ़कर एक गीत सुनवा रहे हैं तो हमने सोचा कि क्यों आज हम श्रोताओं के साथ मिलकर सुजॉय जी को कुछ सुनाएँ. ओल्ड इस गोल्ड के दो नियमित श्रोताओं ने जो खुद गायन भी करते रहे हैं पिछले कई सालों से, चुने हैं सुजॉय द्वारा अब तक प्रस्तुत १५० गीतों में से दो गीत और उन्हें खुद अपनी आवाज़ से सजा कर ये कलाकार रोशन करने वाले हैं आज की महफिल. सुजॉय की अद्भुत प्रतिभा और मेहनत के नाम आज के शाम की पहली शमा रोशन कर रही हैं ओल्ड इस गोल्ड की बेहद नियमित श्रोता जिन्हें हम प्रोग्राम का “लाइव वायर” भी कह सकते हैं, जी हाँ आपने सही पहचाना स्वप्न मंजूषा शैल “अदा” जी….जो पेश कर रही है ओल्ड इस गोल्ड की १२६ वीं महफिल में बजा गीत “बेकरार दिल तू गाये जा…”. सुनिए और आवाज़ की इस मधुरता में डूब जाईये –

और अब सुनिए आवाज़ के एक अहम् घटक दिलीप कवठेकर साहब की आवाज़ में ओल्ड इस गोल्ड की १४८ वीं महफिल से एक ऐसा नगमा जो आज कई दशकों बाद भी उतना ही जवाँ, उतना ही तारो-ताजा है. दिलीप जी की खासियत ये है कि स्टेज में ये किसी ख़ास गायक के गीत ही नहीं गाते, बल्कि अपनी खुद की आवाज़ में मुक्तलिफ़ गायकों के गीत चुन कर प्रस्तुत करते हैं. प्रस्तुत गीत में भी आप दिलीप जी की आवाज़ के मूल तत्वों को महसूस कर पायेंगें. तो सुजॉय, पूरी ओल्ड इस गोल्ड टीम और सभी श्रोताओं के नाम पेश है दिलीप जी का गाया ये तराना –

चलिए अब बारी है एक जरूरी घोषणा की. हर शाम हम ओल्ड इस गोल्ड पर गीत के साथ साथ अगले गीत से जुडी एक पहेली भी पूछते हैं ऐसा इसलिए रखा गया ताकि हम इसे “इंटरएक्टिव” बना सकें. पर हमारे कुछ श्रोताओं ने सुझाव दिया कि अक्सर लोग पहेली की धुन में मूल गीत पर चर्चा करने से चूक जाते हैं और ऐसे श्रोता जिनकी जानकारी पुराने गीतों को लेकर उतनी अच्छी नहीं है उनके लिए जुड़ने का कोई माध्यम नहीं रह जाता. इसी समस्या के समाधान के लिए आज हम जरूरी घोषणा करने जा रहे है. अब से आप पहेली सुलझाने के साथ साथ अपनी फरमाईश का कोई गीत भी हमसे बजवाने को कह सकते हैं.

जी हाँ, किसी भी एपिसोड में टिप्पणी के रूप में आप अपनी पसंद के किसी गीत की फरमाईश रख सकते हैं. आप अपने किसी मित्र /साथी से भी अपनी फरमाईश रखने को कह सकते हैं. आपकी फरमाईश पूरी हो इसके लिए कुछ शर्तें होंगीं जो इस प्रकार हैं –

१. आप वही गीत अपनी पसदं के लिए चुन सकते हैं जिनके साथ आपके जीवन का कोई पल, कोई मोड़, कुछ यादें जुडी हों, गीत के साथ साथ आपको अपनी उन ख़ास यादों और पलों को हम सब के साथ बाँटना पड़ेगा ५०-१०० शब्दों में. आपको अपना ये अनुभव हिंदी में लिख कर hindyugm@gmail.com पर भेजना होगा. हिंदी में लिखने के लिए आप यहाँ से मदद ले सकते हैं. फिर भी यदि समस्या हो तो आप रोमन में लिख कर भेज सकते हैं.

२. आपकी पसदं का गीत आपके अनुभव के साथ “रविवार सुबह की कॉफी” शृंखला में सुनवाये जायेंगें. यूं तो हमारी पूरी कोशिश रहेगी कि आपकी पसदं का वो ख़ास गीत हम दुनिया को सुनाएँ पर किसी कारणवश यदि तमाम कोशिशों के बावजूद वो गीत हमें उपलब्ध नहीं हो पाता तो आप निराश हुए बिना दुबारा कोशिश अवश्य कीजिएगा.

३. आप अपने किसी “ख़ास” के लिए भी कोई गीत समर्पित कर सकते हैं पर यहाँ भी यह जरूरी होगा कि उस ख़ास व्यक्ति के साथ जो आपके अनुभव रहे हैं उससे किसी न किसी रूप में वो गीत जुडा हुआ होना चाहिए.

४. आप ४० के दशक से सन् २००० तक आये किसी भी गीत की फरमाईश कर सकते हैं, अर्थात जरूरी नहीं कि आप किसी पुराने गीत को ही चुनें हाँ पर गीत मधुर हो तो अच्छा.

तो दोस्तों, आने वाली ४ तारिख को भाई बहन रिश्ते का पवित्र त्यौहार रक्षा बंधन है. क्यों न हम अपने इस आयोजन की शुरुआत इसी शुभ त्यौहार पर बने गीतों से करें. अपने भाई या बहन के साथ के आपके अनुभव और उससे जुडा कोई ख़ास गीत की फरमाईश आज ही लिख भेजिए हमें.

ओल्ड इस गोल्ड की अगली कड़ी लेकर एक बार फिर से सुजॉय जी उपस्थित होंगें कल शाम ६ से ७ के बीच. तब तक मैं सजीव सारथी लेता हूँ आपसे इजाज़त. नमस्कार.

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