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ये दूरियाँ ….मिटा रहा है कमियाबी से मोहित चौहान की दूरियाँ

ताजा सुर ताल (13)

ताजा सुर ताल की इस नयी कड़ी में आप सब का स्वागत है. आज से हम इस श्रृंखला के रूप रंग में में थोडा सा बदलाव कर रहे हैं. आज से मुझे यानी सजीव सारथी के साथ होंगें आपके प्रिय होस्ट सुजॉय चट्टर्जी भी. हम दोनों एक दिन पहले प्रस्तुत होने वाले गीत पर दूरभाष से चर्चा करेंगें और फिर उसी चर्चा को यहाँ गीत की भूमिका के रूप में प्रस्तुत करेंगें. उम्मीद है आप इस आयोजन अब और अधिक लुफ्त उठा पायेंगें. तो सुजोय स्वागत है आपका….

सुजॉय– नमस्कार सजीव और नमस्कार सभी दोस्तों को…तो सजीव आज हम कौन सा नया गीत सुनवाने जा रहे हैं ये बताएं…

सजीव – सुजॉय दरअसल योजना है कि श्रोताओं की एक के बाद एक दो गीत आज के बेहद तेजी से लोकप्रिय होते गायक मोहित चौहान के सुनवाये जाएँ…

सुजॉय – अरे वाह सजीव, हाँ आपने सही कहा….इन दिनों फ़िल्म सगीत जगत में नये नये पार्श्वगायकों की जो पौध उगी है, उसमें कई नाम ऐसे हैं जो धीरे धीरे कामयाबी की सीढ़ी पर पायदान दर पायदान उपर चढ़ते जा रहे हैं। वैसा ही एक ज़रूरी नाम है मोहित चौहान। अपनी आवाज़ और ख़ास अदायगी से मोहित चौहान आज एक व्यस्त पार्श्वगायक बन गये हैं जिनके गाने इन दिनों ख़ूब बज भी रहे हैं और लोग पसंद भी कर रहे हैं। जवाँ दिलों पर एक तरह से वो राज़ कर रहे हैं इन दिनों। हिमाचल की पहाड़ियों से उतर कर मोहित चौहान पहले दिल्ली आये जहाँ वे दस साल रहे। लेकिन सगीत की बीज उन सुरीले पहाड़ों में भी बोयी जा चुकी थी और कुछ उन्हे पारिवारिक तौर पे मिला। यह संयोग की बात ही कहिए कि दिल्ली के उन दस सालों को समर्पित करने का उन्हे मौका भी मिल गया। मेरा मतलब है ‘दिल्ली ६’ का वह मशहूर गीत “मसक्कली”, जो कुछ दिन पहले हर ‘काउंट-डाउन’ पर नंबर-१ पर था।

सजीव – हाँ बिलकुल, दरअसल मैं भी समझता था कि मोहित केवल धीमे रोमांटिक गीतों में ही अच्छा कर सकते हैं, पर मसकली ने मुझे चौंका दिया. वाकई बहुत बढ़िया गाया है इसे मोहित ने, आप कुछ बता रहे थे उनके बारे में…

सुजॉय – ग़ैर फ़िल्म संगीत और पॉप अल्बम्स की जो लोग जानकारी रखते हैं, उन्हे पता होगा कि मोहित चौहान मशहूर बैंड ‘सिल्क रूट’ के ‘लीड वोकलिस्ट’ हुआ करते थे। याद है न वह हिट गीत “डूबा डूबा रहता है आँखों में तेरी”, जो आयी थी ‘बूँदें’ अल्बम के तहत। यह अल्बम ‘सिल्क रूट’ की पहली अल्बम थी। यह अल्बम बेहद कामयाब रही और नयी पीढ़ी ने खुले दिल से इसे ग्रहण किया। इस बैंड का दूसरा अल्बम आया था ‘पहचान’, जिसे उतनी कामयाबी नहीं मिली। और दुर्भाग्यवश इसके बाद यह बैंड भी टूट गया। कहते हैं कि जो होता है अच्छे के लिए ही होता है, शायद मोहित चौहान के लिए ज़िंदगी ने कुछ और ही सोच रखा था! कुछ और भी बेहतर! अब तक के उनके म्युज़िकोग्राफ़ी को देख कर तो कुछ ऐसा ही लगता है दोस्तों कि मोहित भाई सही राह पर ही चल रहे हैं।

सजीव – उस मशहूर गीत “डूबा डूबा” को लिखा था प्रसून ने, वो भी आज एक बड़े गीतकार का दर्जा रखते हैं, पर आज हम श्रोताओं के लिए लाये हैं मोहित का गाया वो गीत जिसे एक और अच्छे गीतकार इरषद कामिल ने लिखा है. आप समझ गए होंगें मैं किस गीत की बात कर रहा हूँ…

सुजॉय– हाँ सजीव बिलकुल….ये गीत है फिल्म “लव आजकल” का ये दूरियां….

सजीव – गीत शुरू होता है, एक सीटी की धुन से जो पूरे गीत में बजता ही रहता है. मोहित की आवाज़ शुरू होते ही गीत एक सम्मोहन से बांध देता है सुनने वालों को…प्रीतम का संगीत संयोजन उत्कृष्ट है….सीटी वाली धुन कई रूपों में बीच बीच में बजाने का प्रयोग तो कमाल ही है. पहले अंतरे से पहले संगीत का रुकना और फिर बोलों से शुरू करना भी गीत के स्तर को ऊंचा करता है. गीटार का तो बहुत ही सुंदर इस्तेमाल हुआ है गीत में. पर गीत के मुख्य आकर्षण तो मोहित के स्वर ही हैं. दरअसल इस तरह के धीमे रोंन्टिक गीतों में तो अब मोहित महारत ही हासिल कर चुके हैं. इरषद ने बोलों से बहुत बढ़िया निखारा है गीत को. सुजॉय मैं आपको बताऊँ कि कल ही मैंने ये फिल्म देखी है. और जिस तरह के रुझान मैंने देखे दर्शकों के उससे कह सकता हूँ कि ये फिल्म इस साल की बड़ी हिट साबित होने वाली है, और चूँकि फिल्म का संगीत फिल्म की जान है, तो अब फिल्म प्रदर्शन के बाद तो उसके गीत और अधिक मशहूर होंगे, खासकर ये गीत तो फिल्म की रीढ़ है, कई बार कई रूपों में ये गीत बजता है….और गीतकार ने शब्दों से हर सिचुअशन के साथ न्याय किया है. फिल्म में नायक नायिका जिस उहा पोह से गुजर रहे हैं, जिस समझदारी भरी नासमझी में उलझे हैं उनका बयां है ये गीत. कहते हैं फिल्म का शूट इसी गीत से आरंभ हुआ था और ख़तम भी इसी गीत पर…

सुजॉय– अच्छा यानी कुल मिलकार ये गीत भी मोहित के संगीत सफ़र में एक नया अध्याय बन कर जुड़ने वाला है…तो ये बताएं कि आवाज़ की टीम ने इस गीत को कितने अंक दिए हैं ५ में से.

सजीव – आवाज़ की टीम ने दिए ४ अंक ५ में से….पिछली बार स्वप्न जी ने एक सवाल किया था कि फिल्म कमीने के गीत को ४ अंक क्यों दिए क्या इसलिए कि इसे गुलज़ार साहब ने लिखा है ? मैं कहना चाहूँगा कि ऐसा बिलकुल नहीं है, आवाज़ की टीम के लिए सबसे जरूरी घटक है गीत की ओरिजनालिटी. नयापन जिस गीत में अधिक होगा उसे अच्छे अंक मिलेंगें पर हमारी रेटिंग तो बस एक पक्ष है, असल निर्णय तो आप सब के वोटिंग से ही होगा….सालाना संगीत चार्ट में हम आपकी रेटिंग को ही प्राथमिकता देंगें. निश्चिंत रहें…तो चलिए अब आप रेटिंग दीजिये आज के गीत को. शब्द कुछ यूं है –

ये दूरियां….ये दूरियां…
इन राहों की दूरियां,
निगाहों की दूरियां
हम राहों की दूरियां,
फ़ना हो सभी दूरियां,
क्यों कोई पास है,
दूर है क्यों कोई
जाने न कोई यहाँ पे…
आ रहा पास या,
दूर मैं जा रहा
जानूँ न मैं हूँ कहाँ पे……(वाह… कशमकश हो तो ऐसी)
ये दूरियां…..

कभी हुआ ये भी,
खाली राहों मैं भी,
तू था मेरे साथ,
कभी तुझे मिलके,
लौटा मेरा दिल ये,
खाली खाली हाथ…
ये भी हुआ कभी,
जैसे हुआ अभी,
तुझको सभी में पा लिया….
हैराँ मुझे कर जाती है दूरियां,
सताती है दूरियां,
तरसाती है दूरियां,
फ़ना हो सभी दूरियां…

कहा भी न मैंने,
नहीं जीना मैंने
तू जो न मिला
तुझे भूले से भी,
बोला न मैं ये भी
चाहूं फासला…
बस फासला रहे,
बन के कसक जो कहे,
हो और चाहत ये जवाँ
तेरी मेरी मिट जानी है दूरियां,
बेगानी है दूरियां,
हट जानी है दूरियां,
फ़ना हो सभी दूरियां…

ये दूरियां…..

तो सुजॉय सुन लिया जाए ये गीत

सुजॉय – हाँ तो लीजिये श्रोताओं सुनिए…”ये दूरियां…” फिल्म लव आजकल से ….

आवाज़ की टीम ने दिए इस गीत को 4 की रेटिंग 5 में से. अब आप बताएं आपको ये गीत कैसा लगा? यदि आप समीक्षक होते तो प्रस्तुत गीत को 5 में से कितने अंक देते. कृपया ज़रूर बताएं आपकी वोटिंग हमारे सालाना संगीत चार्ट के निर्माण में बेहद मददगार साबित होगी.

क्या आप जानते हैं ?
आप नए संगीत को कितना समझते हैं चलिए इसे ज़रा यूं परखते हैं. मोहित का गाया सबसे पहला फ़िल्मी गीत कौन सा था ? बताईये और हाँ जवाब के साथ साथ प्रस्तुत गीत को अपनी रेटिंग भी अवश्य दीजियेगा.

पिछले सवाल का सही जवाब था गीत “ओ साथी रे” फिल्म ओमकारा का और सबसे पहले सही जवाब दिया दिशा जी ने…बधाई….और सबसे अच्छी बात कि आप सब ने जम कर रेटिंग दी. वाह मोगेम्बो खुश हुआ…:) उम्मीद है आज भी ये सिलसिला जारी रहेगा…


अक्सर हम लोगों को कहते हुए सुनते हैं कि आजकल के गीतों में वो बात नहीं. “ताजा सुर ताल” शृंखला का उद्देश्य इसी भ्रम को तोड़ना है. आज भी बहुत बढ़िया और सार्थक संगीत बन रहा है, और ढेरों युवा संगीत योद्धा तमाम दबाबों में रहकर भी अच्छा संगीत रच रहे हैं, बस ज़रुरत है उन्हें ज़रा खंगालने की. हमारा दावा है कि हमारी इस शृंखला में प्रस्तुत गीतों को सुनकर पुराने संगीत के दीवाने श्रोता भी हमसे सहमत अवश्य होंगें, क्योंकि पुराना अगर “गोल्ड” है तो नए भी किसी कोहिनूर से कम नहीं. क्या आप को भी आजकल कोई ऐसा गीत भा रहा है, जो आपको लगता है इस आयोजन का हिस्सा बनना चाहिए तो हमें लिखे.

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