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बा होशो-हवास में दीवाना ये आज वसीयत करता है…फ़िल्मी गीतों में नए प्रयोगों के सूत्रधार रहे आनंद बख्शी साहब

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 202

स्वप्न मंजूषा शैल ‘अदा’ जी की पसंद का दूसरा गीत आज पेश-ए-ख़िदमत है फ़िल्म ‘नाइट इन लंदन’ से, “बा होश-ओ-हवास मैं दीवाना, ये आज वसीयत करता हूँ, ये दिल ये जान मिले तुम को, मैं तुम से मोहब्बत करता हूँ”. ६० के दशक में शैलेन्द्र, हसरत जयपुरी, शंकर जयकिशन और मोहम्मद रफ़ी साहब की टीम ने एक से एक कामयाब गीत हमें दिए हैं। इस टीम के गीतों का एक अलग ही अंदाज़ हुआ करता था। ऐसे में जब अगली पीढ़ी के संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने फ़िल्म जगत में क़दम रखा, तो वे शंकर जयकिशन से मुतासिर होने की वजह से कई गानें ऐसे बनाए जिनमें शंकर जयकिशन का स्टाइल साफ़ झलकता है। रफ़ी साहब से गवाया गया और आनंद बक्शी साहब से लिखवाया गया फ़िल्म ‘नाइट इन लंदन’ का प्रस्तुत गीत उन्ही गीतों में से एक है। इस फ़िल्म का एक दूसरा गीत “नज़र न लग जाए किसी की राहों में” भी इसी कतार में शामिल है। किस तरह से एक पीढ़ी अपनी कला को अगली पीढ़ी को सौंप देती है, इस फ़िल्म के गानें उसी के मिसाल हैं। फ़िल्म ‘नाइट इन लंदन’ का निर्माण हुआ था सन् १९६७ में कपूर फ़िल्म्स के बैनर तले। बृज द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म मे जॉय मुखर्जी और माला सिंहा ने मुख्य भूमिकाएँ निभायी थी। प्यारेलाल जी ने रफ़ी साहब के गायकी के विविधता को उजागर करते हुए और इस फ़िल्म के इन दोनों गीतों का ज़िक्र करते हुए विविध भारती पर कहा था, “देखिए, हर एक गाने के शब्दों के हिसाब से, बोलों के हिसाब से, वो गाते थे, और कौन हीरो गा रहा है, वह भी देखते हुए, हम पहले ध्यान देते थे, उसके बाद में देखिए “बा होश-ओ-हवास मैं दीवाना”। ‘नाइट इन लंदन’, उसमें एक शब्द आता है “ओ माइ लव”, थोड़ा इंडियानाइज़्ड, थोड़ा वेस्टरनाइज़्ड, लेकिन उसके अंदर भी एक अपनापन रख के। “बा होश-ओ-हवास”, इसको उन्होने जैसे गाया है,उन्होने शब्दों को ऐसे मोल्ड किया है कि शायद मैं १० बार गाऊँ तो शायद एक बार उनके जैसा गा पाउँगा यह गाना।

प्यारेलाल जी और रफ़ी साहब के बाद अब हम आते हैं आनंद बक्शी साहब पर। इस गीत के लिए सब से ज़्यादा वाह वाही मेरे ख़याल से बक्शी साहब को ही मिलनी चाहिए। उनकी हमेशा से ही यह कोशिश रही है कि आम ज़िंदगी से शब्दों को उठाकर अपने गीतों में पिरोना। यहाँ तक कि उन्होने सरकारी और औपचारिक भाषा का भी सफल इस्तेमाल कर के दिखा दिया है प्रस्तुत गीत में। “मैं पूरे होश-ओ-हवास में यह वसीयत करता हूँ कि मेरी मौत के बाद मेरी फ़लाना जायदाद फ़लाने आदमी के नाम कर दी जाए”, इस न्यायिक भाषा को एक रोमांटिक गीत में परिवर्तित कर के बक्शी साहब ने सब को चौंका दिया था। सिर्फ़ मुखड़े में ही क्यों, पहले अंतरे में वो फिर कहते हैं कि “मेरे जीते जी यार तुम्हे मेरी सारी जागिर मिले”, जो एक बार फिर से उसी वसीयतनामे की औपचरिकता लिए हुए है। मुझे एक और गीत याद रहा है जिसमें आनंद बक्शी ने इस तरह का उदाहरण पेश किया था। दोस्तों, आप ने सड़क पर चलते हुए कई जगहों पर साइन बोर्ड देखा होगा जिसमें लिखा रहता है “यह आम रस्ता नहीं है”। शायद बक्शी साहब ने भी इसे कहीं पर देख लिया होगा, तभी तो ‘लव स्टोरी’ फ़िल्म के गीत “देखो मैने देखा है ये एक सपना” के एक अंतरे में लिख डाले हैं “यहाँ तेरा मेरा नाम लिखा है, रस्ता नहीं ये आम लिखा है”। कहने का मतलब यही है कि आनंद बक्शी के गीतों की चरम लोकप्रियता का राज़ यही है कि उन्होने ज़्यादा से ज़्यादा आम बोलचाल जैसी भाषा का प्रयोग किया, लेकिन मास के साथ साथ क्लास का भी ध्यान रखते हुए। इस बात को कहने में मुझे ज़रा भी हिचकिचाहट नहीं रो रही कि आनंद बक्शी का नाम फ़िल्म संगीत के क्रांतिकारी गीतकारों की फ़ेहरिस्त में लिखा जाना चाहिए, जिन्होने फ़िल्मी गीत की प्रचलित धारा का रुख़ बदल कर रख दिया था। तो दोस्तों, अब सुनिए यह प्यार का यह वसीयतनामा, करते हुए अदा जी का शुक्रिया!

और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला “ओल्ड इस गोल्ड” गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)”गेस्ट होस्ट”. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. इस गीत की गायिका वो हैं जिन पर ओल्ड इस गोल्ड में ताजा श्रृंखला चली है अभी.
२. ये फिल्म का शीर्षक गीत भी है.
३. शैलेन्द्र के लिखे इस गीत का मुखडा इस शब्द से शुरू होता है -“धानी”.

पिछली पहेली का परिणाम –
मनु जी बहुत बढ़िया चल रहे हैं अब आप, डबल फिगर यानी १० अंकों पर पहुँचने की बधाई….आज की पहेली बहुत आसन दी है आप सब के लिए…..all the best.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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