Tag : laxmikant pyarelal

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रिमझिम के गीत सावन गाये….एल पी के संगीत में जब सुर मिले रफ़ी साहब और लता जी के तो सावन का मज़ा दूना हो गया

Sajeev
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 439/2010/139 रिमझिम के तरानों पर सवार होकर हम आज पहुंचे हैं इस भीगी भीगी शृंखला की अंतिम कड़ी पर। ‘रिमझिम...
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सावन के महीने में…..जब याद आये मदन मोहन साहब तो दिल गा उठता है…

Sajeev
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 438/2010/138 तीन दशक बीत चुके हैं, लेकिन जब भी जुलाई का यह महीना आता है तो कलेण्डर का पन्ना इशारा...
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एक से एक हिट गीत दिए एल पी की जोड़ी ने, और वो भी अपनी शर्तों पर काम कर

Sajeev
ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ११ आज ‘ओल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल’ के तहत पेश है फ़िल्म ‘दो रास्ते’ का वही सदाबहार गीत “ये रेशमी ज़ुल्फ़ें,...
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मन क्यों बहका रे बहका आधी रात को….जब ४०० एपिसोड पूरे किये ओल्ड इस गोल्ड ने…

Sajeev
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 400/2010/100 और आज वह दिन आ ही गया दोस्तों कि जब आपका यह मनपसंद स्तंभ ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ पहुँच चुका...
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चिट्टी आई है वतन से….अपने वतन या घर से दूर रह रहे हर इंसान के मन को गहरे छू जाता है ये गीत

Sajeev
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 390/2010/90 आनंद बक्शी पर केन्द्रित लघु शृंखला ‘मैं शायर तो नहीं’ के अंतिम कड़ी पर हम आज आ पहुँचे हैं।...
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सोलह बरस की बाली उमर को सलाम….और सलाम उन शब्दों के शिल्पकार को

Sajeev
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 389/2010/89 ‘मैंशायर तो नहीं’ शृंखला में आनंद बक्शी साहब के लिखे गीतों का सिलसिला जारी है ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ पर।...
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आदमी जो कहता है आदमी जो सुनता है….जिंदगी भर पीछा करते हैं कुछ ऐसे गीत

Sajeev
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 387/2010/87 ‘मैंशायर तो नहीं’ – गीतकार आनंद बक्शी पर केन्द्रित इस लघु शृंखला में आज जिस गीत की बारी है...
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बागों में बहार आई, होंठों पे पुकार आई…जब बख्शी साहब ने आवाज़ मिलाई लता के साथ इस युगल गीत में

Sajeev
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 385/2010/85 ‘मैंशायर तो नहीं’, आनंद बक्शी के लिखे गीतों पर आधारित इस शृंखला में आज हम सुनेंगे ख़ुद बक्शी साहब...
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सावन का महीना पवन करे सोर…..और बिन सावन ही मचा शोर बख्शी साहब से सीधे सरल गीतों का

Sajeev
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 382/2010/82 मैं शायर तो नहीं’। गीतकार आनंद बक्शी पर केन्द्रित इस लगु शृंखला की दूसरी कड़ी में आपका स्वागत है।...
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सांझ ढले गगन तले….एक उदास अकेली शाम की पीड़ा वसंत देसाई के शब्दों में

Sajeev
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 374/2010/74 अस्सी के दशक के फ़िल्मी गीतों के ज़िक्र से कुछ लोग अपना नाक सिकुड़ लेते हैं। यह सच है...