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मन क्यों बहका रे बहका आधी रात को….जब ४०० एपिसोड पूरे किये ओल्ड इस गोल्ड ने…

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 400/2010/100

र आज वह दिन आ ही गया दोस्तों कि जब आपका यह मनपसंद स्तंभ ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ पहुँच चुका है अपनी ४००-वीं कड़ी पर। फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर के सुमधुर गीतों की सुरधारा में बहते हुए तथा हम और आप आपस में एक सुरीला रिश्ता कायम करते हुए इस मंज़िल तक आ पहुँचे हैं जिसके लिए आप सभी बधाई व धन्यवाद के पात्र हैं। आप सब की रचनात्मक टिप्पणियों ने हमें हर रोज़ हौसला दिया आगे बढ़ते रहने का, जिसका परिणाम आज हम सब के सामने है। तो दोस्तों, आज इस ख़ास अंक को कैसे और भी ख़ास बनाया जाए? क्योंकि इन दिनों जारी है पार्श्वगायिकाओं की गाई युगल गीतों की शृंखला ‘सखी सहेली’, तो क्यों ना आज के अंक में ऐसी दो आवाज़ों को शामिल किया जाए जिन्हे फ़िल्म संगीत के गायिकाओं के आकाश के सूरज और चांद कहें तो बिल्कुल भी ग़लत न होगा! जिस तरह से सूरज और चांद अपनी अपनी जगह अद्वितीय है, उसी प्रकार ये दो गायिकाएँ भी अपनी अपनी जगह अद्वितीय हैं। लता मंगेशकर और आशा भोसले। इन दो बहनों ने फ़िल्मी पार्श्व गायन की धारा ही बदल कर रख दी और जिन्होने दशकों तक इस फ़िल्म जगत में राज किया। तो दोस्तों, ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ की ४००-वीं कड़ी इन दो सुरीली महारानियों के नाम। लेकिन इनकी गाई हुई कौन सी रचना सुनवाएँ आपको, इन दोनों ने तो साथ में बहुत से गीत गाए हैं। चलिए वही गीत सुनवा देते हैं तो मुझे बहुत पसंद है, शायद आपको भी हो! फ़िल्म ‘उत्सव’ से “मन क्यों बहक री बहका आधी रात को, बेला महका री महका आधी रात को”। हाल ही में इस फ़िल्म से सुरेश वाडकर का गाया “सांझ ढले गगन तले” आपने सुना था और उस दिन इस फ़िल्म की भी चर्चा हमने की थी। आज बस यही कहेंगे कि लता और आशा जी का गाया यह गीत फ़िल्माया गया था रेखा और अनुराधा पटेल पर। यानी लता जी ने प्लेबैक दिया रेखा का, और आशा जी ने अनुराधा पटेल का।

दोस्तों, लता जी और आशा जी के बारे में और क्या बताएँ आपको? उनके जीवन और संगीत की कहानी तो जैसे खुली किताब है। तो चलिए आज हम फिर एक बार रुख़ करते हैं प्यारेलाल जी के उस ‘उजाले उनकी यादों के’ कार्यक्रम की तरफ़ जिसमें उन्होने इस गीत का ज़िक्र किया था।

कमल शर्मा: ‘उत्सव’ में ख़ास तौर से एक गाना जो दोनों बहनों ने गाया है, जिनकी आवाजें बहुत डिवाइन हैं, आशा जी और लता जी, “मन क्यों बहका री बहका आधी रात को”, उसमें जो ख़ास तौर से, अगर हम ताल की बात करें, बहुत ही अलग तरह की, बहुत इण्डियानाइज़्ड तो है ही वह, वैसे भी पीरियड फ़िल्म थी वह, लेकिन यह जो गाना ख़ास तौर से है आपका, एक बहुत ही अलग तरह का, बहुत ही प्यारा गाना है। इसके बारे में कुछ कहना चाहेंगे?

प्यारेलाल: देखिए, सब से मज़े की बात क्या थी इसमें कि एक तो वह गाना जो लिखा गया, वह बहुत ही अच्छा, वसंत देव जी। उसके बाद जब उसकी ट्युन बनी, सब से जो मैंने उसमें एंजॊय किया, वो लता जी और आशा जी। मेरे ख़याल से उसके बाद उन्होने साथ में गाया है कि नहीं, मुझे मालूम नहीं, लेकिन जो दोनों गा रहे थे, उसका हम आनंद ले रहे थे। एक ज़रा बोले ऐसे, फिर दूसरी बोलती थीं, इतना ख़ूबसूरत लगा औत मतलब, मैं तो बोलूँगा कि, नेक टू नेक आप बोलेंगे, जैसा लता जी ने गाया है, वैसा ही आशा जी ने गाया है।

दोस्तों, प्यारेलाल जी ने लता जी और आशा जी के साथ में गाए हुए अंतिम गीत का ज़िक्र किया था और उन्हे ऐसा लगा कि शायद इस गीत के बाद इन दोनों ने साथ में कोई गीत नहीं गाया। लेकिन हम आपको यह बताना चाहेंगे कि ‘उत्सव’ १९८४ की फ़िल्म थी और १९८६ में एक फ़िल्म बनी थी ‘स्वर्ग से सुंदर’ जिसमें इन दोनों बहनों ने साथ में एक गीत गाया था “सुन री मेरी बहना सुन री मेरी सहेली, मुन्ना फूल गुलाब का, तू चम्पा मैं चमेली”, जो फ़िल्माया गया था जया प्रदा और पद्मिनी कोल्हापुरी पर। तो इसी जानकारी के साथ हम अब सुनेंगे यह सुरीला गीत। सुनिए और मज़ा लीजिए इन दो महान गायिका बहनों की गायकी का। ‘सखी सहेली’ शृंखला इसी के साथ समाप्त होती है, कल से हम लेकर आएँगे आप ही पसंद के गानें जिनकी फ़रमाइश आप ने हमारे नए ई-मेल पते पर लिख कर हमें भेजी है पिछले दिनों। तो बने रहिए ‘आवाज़’ के साथ और आनंद उठाते रहिए सुमधुर गीत संगीत का। नमस्ते!

क्या आप जानते हैं…
कि लता मंगेशकर और आशा भोसले का साथ में गाया हुआ पहला युगल गीत था १९५१ की फ़िल्म ‘दामन’ में “ये रुकी रुकी हवाएँ, ये बुझे बुझे सितारे”, जिसके संगीतकार थे के. दत्ता।

चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-

1. मुखड़े की पहली पंक्ति में शब्द है -“तमन्ना” गायक बताएं-३ अंक.
2. इस दर्द भरे गीत को किस शायर ने लिखा है – २ अंक.
3. संगीतकार का नाम बताएं-२ अंक.
4. जी पी सिप्पी की इस फिल्म का नाम बताएं-२ अंक.

विशेष सूचना -‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।

पिछली पहेली का परिणाम-
दोस्तों सबसे पहले कुछ त्रुटि सुधार

१. रुना लैला का गाया फ़िल्म ‘घरोंदा’ का गीत “तुम्हे हो ना हो मुझको तो” नक्श ल्यालपुरी ने लिखा था, ना कि गुलज़ार ने।

२. रुना लैला का गाया “दे दे प्यार दे” फ़िल्म ‘शराबी’ के साउम्ड ट्रैक का हिस्सा नहीं था, बल्कि यह एक ग़ैर फ़िल्मी ऐल्बम ‘सुपरुना’ का गीत था।
२. फ़िल्म ‘बातों बातों में’ का गीत “न बोले तुम ना मैंने कुछ कहा” को लिखा था योगेश, ना कि अमित खन्ना ने।
३. ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ कड़ी नं-२०२ में फ़िल्म ‘नाइट इन लंदन’ के गीत के आलेख में फ़िल्म के नायक का नाम जय मुखर्जी बताया गया था, दरसल फ़िल्म के नायक थे विश्वजीत।

पाठकों से अनुरोध है कि अगर हमारे आलेखों में कोई भी ग़लत जानकारी नज़र आए तो हमें ज़रूर सूचित करें, टिपण्णी में लिख कर या oig@hindyugm.com पर ई-मेल लिख कर।

अब आते हैं परिणाम पर, दोस्तों हर बार होता है कि जिसके सबसे अधिक अंक आते हैं हम उनकी पसदं के ५ या १० गीत सुनते हैं, अगर आपने कभी ताश में तीन पत्ती का खेल खेला हो तो उसमें आप जानते होंगें कि एक बाज़ी होती है मुफलिस की यानी जो सबसे कम अंकों पर होता है बाज़ी उसी की होती है, तो आज ४०० वें एपिसोड में समापन पर हम ये घोषणा करते हैं कि अगले १० दिनों तक आप उन की पसंद के गीत सुनेंगें जो ओल्ड इस गोल्ड में शामिल तो हमेशा से रहे हैं पर दुर्भाग्यवश कभी विजेता नहीं बन पाए, हमें यकीं है कि हमरे विजेता शरद जी और इंदु जी हमारी इस सोच से नाराज़ हरगिज़ नहीं होंगें. इन १० एपिसोड में बाद हम ओल्ड इस गोल्ड शृंखला में अगले ४८ दिनों के लिए एक नया आयोजन जोड़ेगें. तब तक पहेलियों का जवाब देते रहिये अंक गणित को भूल कर. वैसे जानकारी के लिए बता दें कि नए अंदाज़ की इस प्रतियोगिता में शरद जी विजेता बने शतक लगा कर, इंदु जी ९० अंकों पर शानदार पारी खेल कर डटी रहीं तो पदम जी और अवध जी ने भी अर्ध शतक पूरा किया. ओल्ड इस गोल्ड की अगली इनिंग्स में हम पदम जी, अवध जी और अनीता जी की पसंद भी जरूर सुनेंगें. आप सब का एक बार फिर शुक्रिया और आभार

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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