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ओ सजना बरखा बहार आई….लता के मधुर स्वरों की फुहार जब बरसी शैलेन्द्र के बोलों में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 288

‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ पर जारी है शृंखला “शैलेन्द्र- आर.के.फ़िल्म्स के इतर भी”। आज का जो गीत हमने चुना है वह कोई दार्शनिक गीत नहीं है, बल्कि एक बहुत ही नमर-ओ-नाज़ुक गीत है बरखा रानी से जुड़ा हुआ। बारिश की रस भरी फुहार किस तरह से पेड़ पौधों के साथ साथ हमारे दिलों में भी प्रेम रस का संचार करती है, उसी का वर्णन है इस गीत में, जिसे हमने चुना है फ़िल्म ‘परख’ से। शैलेन्द्र का लिखा यह बेहद लोकप्रिय गीत है लता जी की मधुरतम आवाज़ में, “ओ सजना बरखा बहार आई, रस की फुहार लाई, अखियों में प्यार लाई”। मुखड़े में “बरखा” शब्द वाले गीतों में मेरा ख़याल है कि इस गीत को नंबर एक पर रखा जाना चाहिए। और सलिल चौधरी के मीठे धुनों के भी क्या कहने साहब! शास्त्रीय, लोक और पहाड़ी धुनों को मिलाकर उनके बनाए हुए इस तरह के तमाम गानें इतने ज़्यादा मीठे लगते हैं सुनने में कि जब भी हम इन्हे सुनते हैं तो चाहे कितने ही तनाव में हो हम, हमारा मन बिल्कुल प्रसन्न हो जाता है। इसी फ़िल्म में कुछ और गीत हैं लता जी की आवाज़ में जैसे कि “मिला है किसी का झुमका” और “मेरे मन के दीये, युंही घुट घुट के जल तू”, जिनमें भी वही मिठास और सुरीलापन है। सलिल दा क्लासिकल नग़मों को वेस्टर्न क्लासिकल में ढाल देते थे। वेस्टर्न क्लासिकल से उन्हे बहुत लगाव था। पर उनके संगीत में हमेशा हर बार कुछ नयापन, अनोखापन रहता था। कुछ अलग ही उनके गानें होते थे जिनका असर कुछ अलग ही होता था। और हर बार उनके संगीत में कुछ नई बात होती थी। आज का प्रस्तुत गीत पूरी तरह से भारतीय शास्त्रीय संगीत पर आधारित है, और जिस राग को आधार बनाया गया है गीत में वह है खमाज।

फ़िल्म ‘परख’ की अगर हम बात करें तो यह फ़िल्म बनी थी १९६० में। यह बिमल रॉय की फ़िल्म थी और उन्होने इसका निर्देशन भी किया था। इस फ़िल्म की विशेषता यह है कि इसके गीतकार और संगीतकार ने गीत लेखन और संगीत निर्देशन के अलावा भी एक एक और महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। जी हाँ, गीतकार शैलेन्द्र ने इस फ़िल्म में गानें लिखने के साथ साथ संवाद भी लिखे, तथा सलिल चौधरी ने संगीत देने के साथ साथ फ़िल्म की कहानी भी लिखी। सलिल दा एक अच्छे लेखक रहे है। उन्ही की कहानी ‘रिक्शावाला’ पर ही तो ‘दो बीघा ज़मीन’ बनाई गई थी। ख़ैर, आज का प्रस्तुत गीत साधना पर फ़िल्माया गया है। इस फ़िल्म के संगीत विभाग में लता जी, मन्ना दा, शैलेन्द्र और सलिल दा के अलावा थे संगीत सहायक कानु घोष और सेबास्टियन, तथा रिकार्डिस्ट थे बी. एन. शर्मा। बहुत ही आश्चर्य की बात है कि इस गीत को उस साल ना कोई पुरस्कार मिला और यहाँ तक की अमीन सायानी द्वारा प्रस्तुत बिनाका गीतमाला के वार्षिक कार्यक्रम में भी कोई स्थान नहीं मिला। हालाँकि शैलेन्द्र के लिखे कुछ अन्य गानें उस वार्षिक कार्यक्रम में सुनाई दिए जैसे कि ‘दिल अपना और प्रीत पराई’ फ़िल्म का शीर्षक गीत और “मेरा दिल अब तेरा हो साजना”, तथा ‘काला बाज़ार’ फ़िल्म का “खोया खोया चाँद खुला आसमाँ”। ख़ैर, पुरस्करों के मिलने ना मिलने से किसी गीत को कोई फ़र्क नही पड़ता। सब से बड़ी बात तो यही है कि ५० साल बाद भी यह गीत उतना ही ताज़ा लगता है जितना कि उस समय लगता होगा। सावन के महीने में अपने प्रेमी से दूर रहने की व्यथा पर बहुत से गानें बने हैं समय समय पर। पर इस गीत की बात ही कुछ अलग है। जैसे बोल, वैसा संगीत, और वैसी ही गायकी। हर दृष्टि से पर्फ़ेक्ट जिसे हम कहते हैं।

और अब सुनिए यह गीत, लेकिन उससे पहले हम यह भी बता दें कि इस गीत का एक बंगला संस्करण भी है, जिसे लिखा भी सलिल दा ने ही था, और लता जी ने ही गाया था और जिसके बोल हैं “ना जेयो ना, रोजोनी एखोनो बाकी, आरो किछु दिते बाकी, बोले रात जागा पाखी”। यह गीत बारिश से संबंधित तो नहीं है, बल्कि नायिका नायक को अपने से दूर जाने को मना कर रही है क्योंकि रात अभी और बाकी है, बातें अभी और बाकी है। दोस्तों, आज अगर फ़िल्म ‘परख’ ज़िंदा है लोगों के दिलों में तो केवल इस गीत की वजह से। तो आइए अब सुना जाए शैलेन्द्र साहब, सलिल दा और लता जी की यह मास्टरपीस।

गीत के बोल:
(ओ सजना, बरखा बहार आई
रस की फुहार लाई, अँखियों मे प्यार लाई ) – 2
ओ सजना

तुमको पुकारे मेरे मन का पपिहरा – 2
मीठी मीठी अगनी में, जले मोरा जियरा
ओ सजना …

(ऐसी रिमझिम में ओ साजन, प्यासे प्यासे मेरे नयन
तेरे ही, ख्वाब में, खो गए ) – 2
सांवली सलोनी घटा, जब जब छाई – 2
अँखियों में रैना गई, निन्दिया न आई
ओ सजना ..

और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला “ओल्ड इस गोल्ड” गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)”गेस्ट होस्ट”.अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. एक मशहूर उपन्यास पर आधारित थी ये फिल्म जो खुद भी बहुत कामियाब रही.
२. शैलेन्द्र का लिखा ये दार्शनिक गीत है खुद संगीतकार की आवाज़ में.
३. मुखड़े में शब्द है -“दम”.

पिछली पहेली का परिणाम –
दो दिन के सूखे को तोडा आखिर अवध जी ने, बधाई जनाब, एक दम सही जवाब…८ अंक हुए आपके. पता नहीं ये फिल्म लोगों को क्यों नहीं भायी, पर यक़ीनन इस गीत को हम सब कभी नहीं भूल पायेंगें. दिलीप जी और पाबला जी आभार.

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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