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सखी री मेरा मन नाचे….जब मीना कुमारी के अंदाज़ को मिला गीता दत्त की आवाज़ का साथ

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 272

गीता दत्त के गाए गीतों की ख़ास शृंखला ‘गीतांजली’ की दूसरी कड़ी में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस शृंखला के तहत आप पराग सांकला जी के चुने गीता जी के गाए दस ऐसे गानें सुन रहे हैं इन दिनों जो दस अलग अलग अभिनेत्रियों पर फ़िल्माए गए हैं। कल पहली कड़ी में नरगिस पर फ़िल्माया हुआ ‘जोगन’ फ़िल्म से एक मीरा भजन आपने सुना, आज की अभिनेत्री हैं मीना कुमारी। इससे पहले की हम उस गीत का ज़िक्र करें जो आज हम आप को सुनवा रहे हैं, आइए पहले कुछ बातें हो जाए मीना जी के बारे में। महजबीन के नाम से जन्मी मीना कुमारी भारतीय सिनेमा की ‘लीजेन्डरी ट्रैजेडी क्वीन’ रहीं हैं जो आज भी लोगों के दिलों में बसती हैं। अपनी तमाम फ़िल्मों में भावुक और मर्मस्पर्शी अभिनय की वजह से उनके द्वारा निभाया हुआ हर किरदार जीवंत हो उठता था। अभिनय के साथ साथ वो एक लाजवाब शायरा भी थीं और अपने एकाकी और दुख भरे दिनों में उन्होने एक से एक बेहतरीन ग़ज़लें लिखी हैं। उन्होने अपनी आवाज़ में अपनी शायरी का एक ऐल्बम भी रिकार्ड करवाया था जो उनके जीवन का एक सपना था। १९३९ से लेकर मृत्यु पर्यन्त, यानी कि १९७२ तक उन्होने लगभग १०० फ़िल्मों में अभिनय किया। उनके फ़िल्मी करीयर की शुरुआत पौराणिक फ़िल्मों से हुई जैसे कि ‘हनुमान पाताल विजय’, ‘श्री गणेश महिमा’ वगेरह। १९५० की फ़िल्म ‘सनम’ में वो सुरैय्या के साथ सह-नायिका के चरित्र में नज़र आईं। १९५२ में ‘बैजु बावरा’ की कामयाबी के बाद उन्होने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनके अभिनय से सजी ‘बहू बेग़म’, ‘चित्रलेखा’, ‘फूल और पत्थर’, ‘काजल’, ‘पाक़ीज़ा’ और न जाने कितनी ऐसी यादगार फ़िल्में हैं जिन्हे मीना जी के अभिनय ने चार चाँद लगा दिए हैं। ख़ैर, अब हम आते हैं आज के गीत पर। जैसा कि हमने कहा कि शुरु शुरु में मीना कुमारी ने कई पौराणिक फ़िल्मों में अभिनय किया था। तो क्यों ना गीता जी की आवाज़ में एक ऐसी ही फ़िल्म का गीत सुना जाए। पराग जी के प्रयास से हम आप तक पहुँचा रहे हैं गीता रॉय की आवाज़ में फ़िल्म ‘श्री गणेश महिमा’ का एक बड़ा ही प्यारा सा गीत जो मीना कुमारी पर फ़िल्माया गया था, और जिसके बोल हैं “सखी री मेरा मन नाचे, मेरा तन नाचे, नस नस में छाया है प्यार”।

जिन फ़िल्मों में गीता रॉय (दत्त) ने मीना कुमारी का पार्श्वगायन किया था, उनके नाम हैं – वीर घटोतकच (‘४९), श्री गणेश महिमा (‘५०), मग़रूर (‘५०), हमारा घर (‘५०), लक्ष्मी नारायण (‘५१), ‘हनुमान पाताल विजय (‘५१), तमाशा (‘५२), परिनीता (‘५३), बादबान (‘५४), सवेरा (‘५८), शरारत (‘५९) और साहिब बीवी और ग़ुलाम (‘६२)। श्री गणेश महिमा ‘बसंत पिक्चर्स’ की फ़िल्म थी जिसका निर्देशन किया था होमी वाडिया ने। मीना कुमारी और महिपाल अभिनीत इस फ़िल्म में संगीत दिया था पौराणिक और ऐतिहासिक फ़िल्मों में संगीत देने के लिए मशहूर संगीतकार एस. एन. त्रिपाठी, जो इस फ़िल्म में कई और फ़िल्मों की तरह एक चरित्र अभिनेता की हैसीयत से भी नज़र आए। इस फ़िल्म में गानें लिखे अंजुम जयपुरी ने। अंजुम साहब भी ज़्यादातर पौराणिक, ऐतिहासिक और स्टंट फ़िल्मों के ही गानें लिखे हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत और साज़ों के इस्तेमाल के लिए त्रिपाठी जी जाने जाते हैं। अपने संगीत के माध्यम से वो एक पूरा का पूरा युग लोगों की आँखों के सामने प्रस्तुत कर देते थे। जिस फ़िल्म में जिस पीरीयड की कहानी होती, उसमे संगीत भी वैसा ही होता। गीता जी की आवाज़ में यह गीत अत्यंत कर्णप्रिय है और इस ख़ुशमिज़ाज गीत को उन्होने उसी ख़ुशमिज़ाज अंदाज़ में गाया है, जिसे सुन कर सुननेवाला भी ख़ुश हो जाए। तो लीजिए प्रस्तुत है मीना कुमारी के होंठों पर सजी गीता रॉय की आवाज़, फ़िल्म ‘श्री गणेश महिमा’ का यह सुरीला गीत।

और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला “ओल्ड इस गोल्ड” गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)”गेस्ट होस्ट”.अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. यहाँ गीता दत्त का प्लेबैक है कल्पना कार्तिक के लिए.
२. इस फिल्म में इस मशहूर निर्देशक ने एक अतिथि भूमिका भी की थी.
३. मुखड़े की पहली पंक्ति में शब्द है -“पिया”.इस पहेली को बूझने के आपको मिलेंगें २ की बजाय ३ अंक. यानी कि एक अंक का बोनस…पराग जी इस प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले सकेंगें.

पिछली पहेली का परिणाम –
वाह वाह इंदु जी, कैच जरा मुश्किल था पर आपने दूसरी कोशिश में सही जवाब लपक ही लिया….और बड़े बड़े धुरंधर सर खपाते रह गए….बधाई आपको…६ अंक हुए आपके. दिलीप जी और पाबला जी सर खपाई के लिए आपको भी बधाई :). राज जी, जब भी आपकी टिपण्णी आती है मन खुश हो जाता है, लगता है जैसे कहीं न कहीं हमारी मेहनत सार्थक हो रही है. साहिल भाई कहाँ थे इतने दिनों…श्याम जी और निर्मला जी, धन्येवाद…

खोज – पराग सांकला
आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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