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दर्शन प्यासी आई दासी…मधुबाला की विनती को स्वर दिए गीता दत्त ने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 274

‘गीतांजली’ में आज बारी है हिंदी फ़िल्म जगत की सब से ख़ूबसूरत अभिनेत्री मधुबाला पर फ़िल्माए गए गीता रॉय के गाए एक गीत की। गीत का ज़िक्र हम थोड़ी देर में करेंगे, पहले मधुबाला से जुड़ी कुछ बातें हो जाए! मधुबाला का असली नाम था मुमताज़ जहाँ बेग़म दहल्वी। उनका जन्म दिल्ली में एक रूढ़ी वादी पश्तून मुस्लिम परिवार में हुआ था। ११ बच्चों वाले परिवार की वो पाँचवीं औलाद थीं। अपने समकालीन नरगिस और मीना कुमारी की तरह वो भी हिंदी सिनेमा की एक बेहतरीन अभिनेत्री के रूप में जानी गईं। अपने नाम की तरह ही उन्होने चारों तरफ़ अपनी की शहद घोली जिसकी मिठास आज की पीढ़ी के लोग भी चखते हैं। मधुबाला की पहली फ़िल्म थी ‘बसंत’ जो बनी थी सन् ‘४२ में। इस फ़िल्म में उन्होने नायिका मुमताज़ शांति की बेटी का किरदार निभाया था। उन्हे पहला बड़ा ब्रेक मिला किदार शर्मा की फ़िल्म ‘नीलकमल’ में जिसमें उनके नायक थे राज कपूर, जिनकी भी बतौर नायक वह पहली फ़िल्म थी। ‘नीलकमल’ आई थी सन् ‘४७ में और इसी फ़िल्म से मुमताज़ बन गईं मधुबाला। उस समय उनकी आयु केवल १४ वर्ष ही थी। इसी फ़िल्म में गायिका गीता रॉय ने राजकुमारी और मुकेश के साथ साथ कई गीत गाए लेकिन इनमें से गीता जी का गाया हुआ कोई भी गीत मधुबाला के होठों पर नहीं सजे। अपने परिवार की आर्थिक अवस्था को बेहतर बनाने के लिए मधुबाला ने पहले ४ सालों में लगभग २४ फ़िल्मो में अभिनय किया था। यह सिलसिला जारी रहा और बाद में उन्हे इस बात का अफ़सोस भी रहा कि मजबूरी में उन्हे बहुत सारी ऐसी फ़िल्में भी करनी पड़ी जो उन्हे नहीं करनी चाहिए थी। क्वांटिटी की ख़ातिर उन्हे क्वालिटी के साथ समझौता करना पड़ा था। आज गीता रॉय की आवाज़ में मधुबाला पर फ़िल्माया हुआ जो गीत हम आप तक पहुँचा रहे हैं पराग सांकला जी के सौजन्य से वह है फ़िल्म ‘संगदिल’ का गीत “दर्शन प्यासी आई दासी जगमग दीप जलाए”।

भारतीय आदर्श नारी के किरदार में मधुबाला का अभिनय ‘संगदिल’ में सराहनीय था। ‘संगदिल’ Charlotte Bronte की क्लासिक Jane Eyre पर आधारित थी। कहानी कुछ इस तरह की थी कि बचपन के दो साथी बिछड़ जाते हैं और अलग अलग दुनिया में बड़े होते हैं। नायिका बनती है एक पुजारन और नायक जायदाद से बेदखल हुआ ठाकुर। क़िस्मत दोनों को फिर से पास लाती है। सब कुछ ठीक होने लगता है लेकिन क्या होता है जब नायिका को पता चलता है नायक के काले गहरे राज़, यही है इस फ़िल्म की कहानी। इस फ़िल्म का निर्देशन किया था राय चंद तलवार ने और संगीत दिया सज्जाद हुसैन साहब ने। इस फ़िल्म से तलत साहब का गाया “ये हवा ये रात ये चांदनी” आप इस महफ़िल में सुन चुके हैं। गीता रॉय ने सज्जाद साहब के लिए १९४७ की फ़िल्म ‘मेरे भगवान’ में दो गीत और उसी साल ‘क़सम’ फ़िल्म में कुल ५ एकल गीत गाये। फ़िल्म ‘क़सम’ की रिलीज़ को लेकर थोड़ा सा संशय रहा है। १९५० की फ़िल्म ‘खेल’ में सज्जाद साहब ने गीता जी से गवाया था “साजन दिन बहुरे हमारे”। ‘संगदिल’ में आख़िरी बार गीता जी और सज्जाद साहब का साथ हुआ। इस फ़िल्म में आशा भोसले के साथ गीता रॊय ने गाया था “धरती से दूर गोरे बादलों के पार आजा, आजा बसा लें नया संसार”। लेकिन जो गीत सज्जाद साहब और गीता जी की सब से उत्कृष्ट कृति मानी जा सकती है, वह है इस फ़िल्म का आज का प्रस्तुत भजन “दर्शन प्यासी आई दासी जगमग दीप जलाए, प्रभु चरण की धूल मिले तो जीवन में सुख आए”। राजेन्द्र कृष्ण के लिखे इस भजन में एक अजीब सी कैफियत है, ऐसा लगता है कि जैसे बिल्कुल गिड़गिड़ाकर भगवान से दर्शन माँग रही है। बहुत ही सच्चा मालूम होता है भगवान से यह निवेदन, आइए सुनते हैं।

और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला “ओल्ड इस गोल्ड” गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)”गेस्ट होस्ट”.अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. ये गीत उस अभिनेत्री पर फिल्माया गया है जिन्हें सबसे अधिक बार फिल्म फेयर पुरस्कार पाने का गौरव प्राप्त है.
२. गीतकार हैं मजरूह साहब.
३. मुखड़े की पहली पंक्ति में है शब्द -“नज़र”.इस पहेली को बूझने के आपको मिलेंगें २ की बजाय ३ अंक. यानी कि एक अंक का बोनस…पराग जी इस प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले सकेंगें.

पिछली पहेली का परिणाम –
इंदु जी, चार दिन पहले आपका स्कोर ० था, और आज आप हैं १२ अंकों पर, जबरदस्त प्रदर्शन…बधाई….अब शरद जी को कोई टक्कर का मिला है 🙂

खोज – पराग सांकला
आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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