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तेरी राहों में खड़े हैं दिल थाम के…गीतकार कमर जलालाबादी को याद कीजिये स्वराजन्ली लता के स्वरों की देकर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 319/2010/19

जनवरी २००३ को हम से बिछड़ गए थे फ़िल्म जगत के सुप्रसिद्ध गीतकार क़मर जलालाबादी और जैसे हर तरफ़ से उन्ही का लिखा हुआ गीत गूंज उठा कि “फिर तुम्हारी याद आई ऐ सनम, हम ना भूलेंगे तुम्हे अल्लाह क़सम”। आज ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ में क़मर साहब को हमारी ‘स्वरांजली’। क़मर जलालाबादी की ख़ूबी सिर्फ़ गीत लेखन तक ही सीमीत नहीं रही। वो एक आदरणीय शायर और इंसान थे। फ़िल्म जगत की चकाचौंध में रह कर भी वो एक सच्चे कर्मयोगी का जीवन जीते रहे। १९५० के दशक में कामयाबी की शिखर पर पहुँचने के बाद भी उनकी सादगी पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उनकी संजीदगी उनके गीतों से छलक पड़ी। दोस्तो, क़मर साहब के साथ हुस्नलाल भगतराम और ओ. पी. नय्यर की अच्छी ट्युनिंग् जमी थी। बाद मे संगीतकार जोड़ी कल्याणजी आनंदजी के साथ तो एक लम्बी पारी उन्होने खेली और कई महत्वपूर्ण गानें इस जोड़ी के नाम किए। सन् १९६० में जिस फ़िल्म से क़मर साहब और कल्याणजी-आनंदजी की तिकड़ी बनी थी, वह फ़िल्म थी ‘छलिया’। इस फ़िल्म के सभी गानें सुपर डुपर हिट हुए। उस समय शंकर जयकिशन और शैलेन्द्र-हसरत राज कपूर की फ़िल्मों का संगीत पक्ष संभालते थे। लेकिन इस फ़िल्म में इस नई तिकड़ी को मौका देना एक नया प्रयोग था जिसे इस तिकड़ी ने बख़ूबी निभाया। ‘छलिया’ के सफलता के बाद तो इस तिकड़ी ने बहुत सारे फ़िल्मों में एक साथ काम किया, जिनमें से महत्वपूर्ण नाम हैं पासपोर्ट, जोहर महमूद इन गोवा, हिमालय की गोद में, दिल ने पुकारा, उपकार, राज़, सुहाग रात, हसीना मान जाएगी, आंसू और मुस्कान, होली आई रे, घर घर की कहानी, प्रिया, सच्चा झूठा, पारस, जोहर महमूद इन हॊंग्‍कॊंग्, और एक हसीना दो दीवाने। लेकिन आज हमने जो गीत चुना है वह है फ़िल्म ‘छलिया’ से। लता जी की आवाज़ में एक बड़ा ही प्यारा सा गाना है “तेरी राहों में खड़े हैं दिल थाम के हाये, हम हैं दीवाने तेरे नाम के”। आमतौर पर इस तरह के गानें नायक गाता है नायिका के लिए, लेकिन इस गाने में नायिका ही नायक का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने में लगी हुई हैं।

‘छलिया’ फ़िल्म का निर्माण किया था सुभाष देसाई ने और निर्देशित किया मनमोहन देसाई साहब ने। राज कपूर और नूतन अभिनीत इस फ़िल्म का गीत संगीत पक्ष काफ़ी मज़बूत था। गीतों को उस ज़माने के राज कपूर – शंकर जयकिशन वाले अंदाज़ में बनाया गया था। इस फ़िल्म में लक्ष्मीकांत और प्यारेलाल कल्याणजी-आनदजी के सहायक थे। फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों में उस साल इस फ़िल्म के लिए राज कपूर और नूतन का नाम मनोनीत हुआ था सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और अभिनेत्री के लिए, लेकिन ये पुरस्कार उन्हे नहीं मिले। अमीन सायानी द्वारा प्रस्तुत बिनाका गीतमाला के वार्षिक कार्यक्रम में कुल १५ गीतों में से इसी फ़िल्म के दो गीतों को शामिल किया गया, १३-वीं पायदान पर “डम डम डिगा डिगा” और ९-वीं पायदान पर “छलिया मेरा नाम”। आज जो गीत हम सुनने जा रहे हैं, वह भी उत्कृष्टता में किसी से कम नहीं है। लता जी का शुरुआती आलाप ही हमें एक अलग ही दुनिया में ले जाता है। ऒर्केस्ट्रेशन भी अच्छा है, दूसरे अंतरे के इंटर्ल्युड में सैक्सोफ़ोन का अच्छा इस्तमाल हुआ है। तो दोस्तों, गीत सुनिए, अरे हाँ, मैं तो भूल ही गया, आख़िर क़मर साहब ने भी तो इस गीत का ज़िक्र किया था १९७९ में उनके द्वारा प्रस्तुत ‘जयमाला’ कार्यक्रम में! “डिरेक्टर मनमोहन देसाई की पहली फ़िल्म ‘छलिया’ अपने भाई सुभाष देसाई के लिए डिरेक्ट कर रहे थे। सुभाष देसाई ने संगीतकार के लिए कल्याणजी-आनंदजी का नाम चुना। सुभाष देसाई का नाम सुनते ही कल्याणजी भाग खड़े हुए। सुभाष देसाई ने उनका पीछा नहीं छोड़ा, उन्हे पकड़ कर उन्हे फ़िल्म का संगीतकार बनाकर ही दम लिया। लीजिए फ़िल्म ‘छलिया’ का गीत सुनिए मेरा लिखा हुआ। हाल ही में शायर क़तिल शिफ़ाई ने इस गीत की तारीफ़ की, मैं उनके इस क़द्रदानी का शुक्रगुज़ार हूँ।

चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम रोज आपको देंगें ४ पंक्तियाँ और हर पंक्ति में कोई एक शब्द होगा जो होगा आपका सूत्र. यानी कुल चार शब्द आपको मिलेंगें जो अगले गीत के किसी एक अंतरे में इस्तेमाल हुए होंगें, जो शब्द बोल्ड दिख रहे हैं वो आपके सूत्र हैं बाकी शब्द बची हुई पंक्तियों में से चुनकर आपने पहेली सुलझानी है, और बूझना है वो अगला गीत. तो लीजिए ये रही आज की पंक्तियाँ-

पलक झपकने को जी न चाहे,
काश ये पल गुजरे न,
ठहरी है सुबह उफक के मोड़ पर,
सुहाना ये नज़ारा बिखरे न….

अतिरिक्त सूत्र – ९ जनवरी को ही इस मशहूर पार्श्वगायक की जयंती भी है

पिछली पहेली का परिणाम-
रोहित जी, बहुत बधाई बहुत दिनों बाद आपकी आमद हुई….२ अंक संभालिए….

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना –सजीव सारथी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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