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दिल लूटने वाले जादूगर….संगीतकार जोड़ी जिसने बीन की धुन पर दुनिया को दीवाना बनाया

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 421/2010/121

‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ के एक नए सप्ताह के साथ हम फिर एक बार हाज़िर हैं। दोस्तों, फ़िल्म जगत में संगीतकार जोड़ियों की ख़ास परम्परा रही है। इस परम्परा की सही रूप से शुरुआत हुई थी पण्डित हुस्नलाल भगतराम की जोड़ी से, और उनके बाद आए शंकर जयकिशन। तीसरे नंबर पर वो संगीतकार जोड़ी इस फ़िल्म संगीत संसार में पधारे जिन्होने ना केवल अपने उल्लेखनीय योगदान से फ़िल्म संगीत का कल्याण किया बल्कि संगीत प्रेमियों को भरपूर आनंद भी दिया। जी हाँ, संगीत का कल्याण करने वाली और श्रोताओं को आनंद देने वाली इस बेहद लोकप्रिय व कामयाब जोड़ी को हम कल्याणजी-आनंदजी के नाम से जानते हैं। ३० जून को कल्याणजी भाई का जनमदिवस है। इसी उपलक्ष्य पर आज से ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ पर हम शुरु कर रहे हैं इस बेमिसाल संगीतकार जोड़ी की दिलकश संगीत रचनाओं से सजी लघु शृंखला ‘दिल लूटने वाले जादूगर’। सच ही तो है, सुरीले जादूगर की तरह कल्याणजी-आनंदजी ने लोगों के दिलों पर राज ही तो करते आए हैं। आज इस शृंखला की पहली कड़ी में सब से पहले आपको कल्याणजी-आनंदजी के सफ़र के शुरुआती दिनों का हाल संक्षिप्त में बताते हैं, और उसके बाद आज के गीत की चर्चा करेंगे। कल्याणजी वीरजी शाह का जन्म ३० जून १९२९ में और आनंदजी का जन्म १९३३ में हुआ था गुजरात के कच्छ में। मज़े की बात यह है कि आनंदजी कच्छ में पलने लगे और कल्याणजी बम्बई चले आए बोरडिंग् स्कूल में पढ़ने। आगे चलकर परिवार बम्बई स्थानांतरित हो गई। अपनी चाली में पड़ोसी के घरों में दोनों भाई रेडियो सुना करते थे। उस ज़माने में रेडियो लक्ज़री हुआ करता था। घर में ग्रामोफ़ोन के आने के बाद वे घंटों तक सुरेन्द्रनाथ, शांता आप्टे, कुंदन लाल सहगल और पंकज मल्लिक के गीत सुना करते थे। सन् १९५४ में अचानक कल्याणजी भाई शोहरत के शिखर पर पहुँच गए जब उन्होने क्लेवायलिन पर बीन की आवाज़ निकाली संगीतकार हेमन्त कुमार के लिए फ़िल्म ‘नागिन’ में। इससे पहले बीन की आवाज़ असली बीन से ही निकाली जाती थी। लेकिन इस बार वाद्य बदल गया और सुर बिल्कुल तरोताज़ा हो गया। इस गाने के वादक कल्याणजी को बड़ी प्रसिद्धि मिली। फिर इसके बाद कल्याणजी वीरजी शाह ने फ़िल्म ‘सम्राट चंद्रगुप्त’, ‘चन्द्रसेना’, ‘पोस्ट बॊक्स ९९९’, ‘बेदर्द ज़माना क्या जाने’, ‘घर घर की बात’, ‘ओ तेरा क्या कहना’, और ‘दिल्ली जंकशन’ जैसी फ़िल्मों में संगीत दिया। अभी तक आनंदजी उनके साथ नहीं आए थे। हमारा मतलब है वो उनके सहायक तो थे, लेकिन उनकी संगीतकार जोड़ी नहीं बनी थी। यह जोड़ी बनी १९५९ की फ़िल्म ‘मदारी’ और ‘सट्टा बाज़ार’ से। और यहाँ से जो शुरुआत हुई इस सुरीली जोड़ी की कि फिर इन्हे कभी पीछे मुड़ कर देखने की ज़रूरत नहीं पड़ी।

दोस्तों, कल्याणजी हेमन्त कुमार को अपना गुरु मानते थे। जैसा कि अभी उपर हमने फ़िल्म ‘नागिन’ का ज़िक्र किया था, उसी बात के सिलसिले में आपको बता दें कि अपनी आर्थिक संकट के दिनों में भी कल्याणजी भाई ने विदेश से क्लेवायलिन इम्पोर्ट किया और उस पर सपेरे के बीन की ध्वनि निकाल कर हेमन्त कुमार को चकित कर दिया था। और दोस्तों, इसी बीन की धुन का फिर एक बार सफल इस्तेमाल उन्होने किया स्वतंत्र संगीतकार बनने के बाद, १९५९ की फ़िल्म ‘मदारी’ में। आपको याद है कौन सा वह गीत था? जी हाँ, “दिल लूटने वाले जादूगर हमने तो तुझे पहचाना है”। लता मंगेशकर और मुकेश की युगल आवाज़ों में गीतकार फ़ारुख़ क़ैसर की गीत रचना। आज इस शृंखला की पहली कड़ी में पेश है यही गीत। आश्चर्य की बात है कि आगे चलकर यह गीत इतना ज़्यादा लोकप्रिय हुआ, लेकिन उस साल इस गीत को ‘बिनाका गीतमाला’ के वार्षिक कार्यक्रम में कोई भी स्थान नहीं मिल पाया था। दोस्तों, विविध भारती पर ‘उजाले उनकी यादों के’ कार्यक्रम में आनंदजी से जब यह पूछा गया कि आप कल्याणजी भाई से किस फ़िल्म से जुड़े थे, तो उन्होने कुछ इस तरह से बताया था – “नाम से मैं ‘मदारी’ से जुड़ा लेकिन काम से तो पहले से ही जुड़ा हुआ हूँ। जॊयण्ट फ़ैमिली में यह होता है ना कि बड़े जैसे बोलें वैसा करना है आपको, तो उन्होने दोनों का नाम जोड़ दिया। कभी मैं मैनेजर का काम करता था, कभी बैकग्राउण्ड बनाता था, कभी स्टोरी सुनने जाता था, कभी निर्माता से मिलने जाता था। तो वहाँ से कल्याणजी-आनंदजी करके नाम जोड़ दिया। गुजरातियों में ऐसा होता है कि बड़ों का नाम पीछे लगाया जाता है। कल्याणजी वीरजी शाह, वीरजी मेरे पिताजी का नाम था। कल्याणजी- आनंदजी होते ही लोग यह कहने लगे कि फ़िल्म लाइन में जाते ही अपने बाप का नाम बदल दिया। तो ‘मदारी’ से यह नाम चली आई, और काम लगातार चलता रहा।” तो दोस्तों, आइए जिस फ़िल्म से इस बेमिसाल जोड़ी की औपचारिक शुरुआत हुई थी, उसी फ़िल्म का यह सदाबहार युगल गीत सुनते हैं। लेकिन ज़रा बच के, कही दिल लूटने वाले ये जादूगर आपका दिल भी ना चुरा लें!

क्या आप जानते हैं…
कि एक बार कल्याणजी माटुंगा स्थित अरोड़ा सिनेमा के पास की सड़क पर पत्थर की आवाज़ से प्रेरणा ली कि पत्थरों से भी सुरीले नोट्स निकाले जा सकते हैं। और उन्होने बना डाली एक नई साज़ ‘पत्थर-तरंग’।

पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा 🙂

१. राज कपूर और साधना इस फिल्म के मुख्या कलाकार थे, निर्देशक बताएं -३ अंक.
२. दर्द भरे इस गीत के गायक कौन हैं – २ अंक.
३. गीतकार कौन हैं – २ अंक.
४. फिल्म का नाम बताएं – १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम –
अवध जी और पराग जी के बीच मुकाबला दिलचस्प है, सप्ताहांत तक तो अवध जी ने बढ़त बना रखी है. देखते है इस सप्ताह क्या होगा

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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