Uncategorizedजो खुद को आज़ाद कहे, वो सबसे बड़ा झूठा है… अनीला की आवाज़ में सुनिए क़तील साहब का बेबाकपनAmitMay 12, 2010 by AmitMay 12, 20100247 महफ़िल-ए-ग़ज़ल #८३ इस महफ़िल में बस गज़ल की बातें होनी चाहिए, हम यह बात मानते हैं, लेकिन आज हालात कुछ ऐसे हैं कि हमसे रहा...
Uncategorizedजब भी चूम लेता हूँ इन हसीन आँखों को…. कैफ़ी की "कैफ़ियत" और रूप की "रूमानियत" उतर आई है इस गज़ल में..AmitApril 28, 2010 by AmitApril 28, 20100255 महफ़िल-ए-ग़ज़ल #८१ पि छली दस कड़ियों में हमने बिना रूके चचा ग़ालिब की हीं बातें की। हमारे लिए वह सफ़र बड़ा हीं सुकूनदायक रहा और...
Uncategorizedअपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न बाद-ए-क़त्ल.. अपने शोख कातिल से ग़ालिब की इस गुहार के क्या कहने!!AmitApril 7, 2010 by AmitApril 7, 20100293 महफ़िल-ए-ग़ज़ल #७८ देखते -देखते हम चचा ग़ालिब को समर्पित आठवीं कड़ी के दर पर आ चुके हैं। हमने पहली कड़ी में आपसे जो वादा किया...
Uncategorizedजब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है.. ग़ालिब के ज़ख्मों को अपनी आवाज़ से उभार रही हैं मरियमAmitMarch 24, 2010 by AmitMarch 24, 20100281 महफ़िल-ए-ग़ज़ल #७६ हर कड़ी में हम ग़ालिब से जुड़ी कुछ नई और अनजानी बातें आपके साथ बाँटते हैं। तो इसी क्रम में आज हाज़िर है...
Uncategorizedदिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है.. ग़ालिब के दिल से पूछ रही हैं शाहिदा परवीनAmitFebruary 24, 2010 by AmitFebruary 24, 20100273 महफ़िल-ए-ग़ज़ल #७२ पूछते हैं वो कि “ग़ालिब” कौन है,कोई बतलाओ कि हम बतलायें क्या अब जबकि ग़ालिब खुद हीं इस बात से इत्तेफ़ाक़ रखते हैं...
Uncategorizedमुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता.. चलिए याद करें हम ग़म-ए-रोज़गार से खस्ताहाल चचा ग़ालिब कोAmitFebruary 17, 2010 by AmitFebruary 17, 20100264 महफ़िल-ए-ग़ज़ल #७१ होगा कोई ऐसा भी कि ग़ालिब को न जानेशायर तो वो अच्छा है प’ बदनाम बहुत है। इस शेर को पढने के बाद...
Uncategorizedखुशबू उड़ाके लाई है गेशु-ए-यार की.. अपने मियाँ आग़ा कश्मीरी के बोलों में रंग भरा मुख्तार बेग़म नेAmitFebruary 10, 2010 by AmitFebruary 10, 20100254 महफ़िल-ए-ग़ज़ल #७० हमने अपनी महफ़िल में इस मुद्दे को कई बार उठाया है कि ज्यादातर शायर अपनी काबिलियत के बावजूद पर्दे के पीछे हीं रह...
Uncategorizedमुझे अपने ज़ब्त पे नाज़ था.. इक़बाल अज़ीम के बोल और नय्यारा नूर की आवाज़.. फिर क्यूँकर रंज कि बुरा हुआAmitFebruary 3, 2010 by AmitFebruary 3, 20100248 महफ़िल-ए-ग़ज़ल #६९ इंसानी मन प्रशंसा का भूखा होता है। भले हीं उसे लाख ओहदे हासिल हो जाएँ, करोड़ों का खजाना हाथ लग जाए, फिर भी...
Uncategorizedदुखाए दिल जो किसी का वो आदमी क्या है.. मुज़फ़्फ़र वारसी के शब्दों के सहारे पूछ रही हैं मल्लिका-ए-तरन्नुम नूरजहांAmitJanuary 27, 2010 by AmitJanuary 27, 20100250 महफ़िल-ए-ग़ज़ल #६८ पिछली दो कड़ियों से न जाने क्यों वह बात बन नहीं पा रही थी, जिसकी दरकार थी। वैसे कारण तो हमें भी पता...
Uncategorizedगजरा बना के ले आ… एक मखमली नज़्म के बहाने अफ़शां और हबीब की जुगलबंदीAmitJanuary 20, 2010 by AmitJanuary 20, 20100368 महफ़िल-ए-ग़ज़ल #६७ कभी-कभी यूँ होता है कि आप जिस चीज से बचना चाहो, जिस चीज से कन्नी काटना चाहो, वही चीज आपकी ज़िंदगी का एक...