Uncategorizedमोहब्बत तर्क की मैंने गरेबाँ सी लिया मैंने.. दिल पर पत्थर रखकर खुद को तोड़ रहे हैं साहिर और तलतAmitJune 23, 2010 by AmitJune 23, 20100314 महफ़िल-ए-ग़ज़ल #८९ “सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं?” – मुमकिन है कि आपने यह पंक्ति पढी या सुनी ना हो, लेकिन इस पंक्ति के इर्द-गिर्द जो नज़्म बुनी...
Uncategorized"कहीं भी अपना नहीं ठिकाना" – ऐसे भूले बिसरे गीत का ठिकाना केवल 'आवाज़' ही हैSajeevJune 13, 2010 by SajeevJune 13, 20100265 ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 416/2010/116 ‘दिल-ए-नादान’ सन् १९५३ की एक ऐसी फ़िल्म थी जिसमें तलत महमूद के गाए कुछ गानें बेहद लोकप्रिय हुए थे,...
Uncategorizedन मैं धन चाहूँ, न रतन चहुँ….मन को पावन धारा में बहा ले जाता एक मधुर भजन….SajeevApril 4, 2010 by SajeevApril 4, 20100278 ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 394/2010/94 दोस्तों, इन दिनों ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ पर आप सुन रहे हैं पार्श्वगायिकाओं के गाए युगल गीतों पर आधारित हमारी...
Uncategorizedसलामे हसरत कबूल कर लो…इस गीत में सुधा मल्होत्रा की आवाज़ का कोई सानी नहींSajeevFebruary 3, 2010 by SajeevFebruary 3, 20100264 ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 334/2010/34 फ़िल्म संगीत के कमचर्चित पार्श्वगायिकाओं को याद करने का सिलसिला जारी है ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ की विशेष लघु शृंखला...