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मोहब्बत तर्क की मैंने गरेबाँ सी लिया मैंने.. दिल पर पत्थर रखकर खुद को तोड़ रहे हैं साहिर और तलत

Amit
महफ़िल-ए-ग़ज़ल #८९ “सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं?” – मुमकिन है कि आपने यह पंक्ति पढी या सुनी ना हो, लेकिन इस पंक्ति के इर्द-गिर्द जो नज़्म बुनी...