Uncategorizedआवारा हैं गलियों में मैं और मेरी तन्हाई .. अली सरदार जाफ़री के दिल का गुबार फूटा जगजीत सिंह के सामनेAmitAugust 4, 2010 by AmitAugust 4, 20100314 महफ़िल-ए-ग़ज़ल #९५ “शायर न तो कुल्हाड़ी की तरह पेड़ काट सकता है और न इन्सानी हाथों की तरह मिट्टी से प्याले बना सकता है। वह...
Uncategorizedये कौन आता है तन्हाईयों में जाम लिए.. मख़्दूम मोहिउद्दीन के लफ़्ज़ औ' आबिदा की पुकार..वाह जी वाह!AmitJuly 21, 2010 by AmitJuly 21, 20100300 महफ़िल-ए-ग़ज़ल #९३ दिन से महीने और फिर बरस बीत गयेफिर क्यूं हर शब तन्हाई आंख से आंसू बनकर ढल जाती हैफिर क्यूं हर शब तेरे...