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गैरों के शे'रों को ओ सुनने वाले हो इस तरफ भी करम…दर्द में डूबी किशोर की सदा..

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 90

‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ की ९०-वीं कड़ी में हम आप सभी का इस्तकबाल करते हैं। कल इस स्तंभ के अंतर्गत आपने सुना था कवि नीरज की रचना ‘नयी उमर की नयी फ़सल’ फ़िल्म से। नीरज जैसे अनूठे गीतकार का लिखा केवल एक गीत सुनकर यक़ीनन दिल नहीं भरता, इसीलिए हमने यह तय किया कि एक के बाद एक दो गानें आपको नीरजजी के लिखे हुए सुनवाया जाए। अत: आज भी ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ में गूँजनेवाली है नीरज की एक फ़िल्मी रचना। जैसा कि कल हमने आपको बताया था कि नीरज ने सबसे ज़्यादा फ़िल्मी गीत संगीतकार सचिन देव बर्मन के लिए लिखे हैं। तो आज क्यों ना बर्मन दादा के लिए उनका लिखा गीत आपको सुनवाया जाए! १९७१ में आयी थी फ़िल्म ‘गैम्बलर’ ‘अमरजीत प्रोडक्शन्स’ के बैनर तले। देव आनंद और ज़हीदा अभिनीत इस फ़िल्म के गाने बहुत बहुत चले और आज भी चल रहे हैं। ख़ास कर लता-किशोर का गाया “चूड़ी नहीं ये मेरा दिल है” गीत को चूड़ियों पर बने तमाम गीतों में सबसे ज़्यादा लोकप्रिय माना जाता है। लेकिन आज हम इस गीत को यहाँ नहीं बजा रहे हैं बल्कि इसी फ़िल्म का एक ग़मज़दा नगमा लेकर आये हैं किशोरदा की आवाज़ में। “दिल आज शायर है ग़म आज नग़मा है” किशोरदा के श्रेष्ठ दर्दीले गीतों में गिना जाता है और उनके दर्द भरे गीतों के बहुत से सी.डी, कैसेट और रिकार्ड्स पर इस गीत को शामिल किया गया है।

देव आनंद पर फ़िल्माये गये इस गीत की ‘सिचुयशन’ बहुत ही साधारण सी था, वही नायक नायिका में ग़लतफ़हमी, और फिर एक ‘पार्टी’ और उसमें नायक का ‘पियानो’ पर बैठकर दर्द भरा गीत गाना। लेकिन नीरज, बर्मन दादा और किशोरदा ने इस साधारण ‘सिचुयशन’ को अपने इस असाधारण गीत के ज़रिए अमर बना दिया है। किशोर कुमार की आवाज़ वह आवाज़ है जो वक़्त को रोक कर इंसान को मजबूर कर देती है उसे सुनने के लिए। यह आवाज़ हँसी तो सबको इतना हँसाया कि पेट में बल पड़ जाए, और जब उदास हुई तो सुननेवालों के जख्मों पर जैसे मरहम लगा दिया। किसी उदास दिल को किसी का कान्धा नहीं मिला तो इसी आवाज़ ने उसे कान्धा देकर उसका ग़म दूर कर दिया। जीवन के हर रंग से रंगी यह आवाज़ सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही हो सकती है, हमारे प्यारे किशोरदा की। हमेशा मुस्कुरानेवाले इस चेहरे के पीछे एक तन्हा दिल भी था जो उनके दर्द भरे गीतों से छलक पड़ता और सुननेवालों को रुलाये बिना नहीं छोड़ता। आज के इस गीत में भी कुछ इसी तरह का रंग है, सुनिए…

और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला “ओल्ड इस गोल्ड” गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं –

१. विमल राय की इस क्लासिक में था ये बेहद मशहूर समूहगान.
२. सावन की आहट पर कान धरे लोक गीतों की मधुर धुन है सलिल दा के संगीत की.
३. मुखड़े में शब्द है -“ढोल”.

कुछ याद आया…?

पिछली पहेली का परिणाम –
इस बार मनु जी आपका तुक्का सही ही निकला …बधाई….शरद जी और तपन जी थोड़े देर से आये पर सही जवाब भी लाये, शोभा जी को गीत पसंद आया जानकार ख़ुशी हुई.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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