ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 154
‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ के तहत इन दिनों आप सुन रहें हैं लघु शृंखला ‘दस चेहरे एक आवाज़ – मोहम्मद रफ़ी’। अब तक जिन चेहरों से आपका परिचय हुआ है, वो हैं शम्मी कपूर, दिलीप कुमार और सुनिल दत्त। आज का चेहरा भी बहुत ख़ास है क्योंकि इनके भी ज़्यादातर गानें रफ़ी साहब ने ही गाये हैं। इस चेहरे को हम सब जुबिली कुमार, यानी कि राजेन्द्र कुमार के नाम से जानते हैं। रफ़ी साहब और राजेन्द्र कुमार की जोड़ी की अगर बात करें तो जो जो प्रमुख फ़िल्में ज़हन में आती हैं, उनके नाम हैं धूल का फूल, मेरे महबूब, आरज़ू, सूरज, गंवार, दिल एक मंदिर, और आयी मिलन की बेला। लेकिन एक और फ़िल्म ऐसी है जिसमें मुख्य नायक राज कपूर थे, और सह नायक रहे राजेन्द्र कुमार। ज़ाहिर सी बात है कि फ़िल्म के ज़्यादातर गानें मुकेश ने ही गाये होंगे, लेकिन उस फ़िल्म में दो गानें ऐसे थे जो राजेन्द्र कुमार पर फ़िल्माये जाने थे। उनमें से एक गीत तो लता-मुकेश-महेन्द्र कपूर का गाया हुआ था जिसमें राजेन्द्र साहब का प्लेबैक किया महेन्द्र कपूर ने, और दूसरा जो गीत था वह रफ़ी साहब की एकल आवाज़ में था। जी हाँ, यहाँ फ़िल्म ‘संगम’ की ही बात चल रही है। रफ़ी साहब के गाये इस अकेले गीत ने वो शोहरत हासिल की कि जो शायद फ़िल्म के दूसरे सभी गीतों को बराबर का टक्कर दे दे। इसमें कोई शक़ नहीं कि रफ़ी साहब के गाये इस गीत ने फ़िल्म में राजेन्द्र कुमार के किरदार को और भी ज़्यादा लोकप्रिय बनाया और किरदार को और ज़्यादा सशक्त किया। “ये मेरा प्रेम पत्र पढ़ कर के तुम नाराज़ न होना, कि तुम मेरी ज़िंदगी हो, कि तुम मेरी बंदगी हो”। राजेन्द्र कुमार और रफ़ी साहब की जोड़ी के तमाम हिट गीतों में से यही गीत हम आज लेकर आये हैं ख़ास आप के लिए। अगर बहुत दिनों से आप ने यह गीत नहीं सुन रखा था, तो आज इस गीत को सुनकर तमाम पुरानी यादें आपकी ताज़ा हो गयी होंगी, ऐसा हमारा ख़याल है।
‘संगम’ फ़िल्म इतनी चर्चित रही है कि इस फ़िल्म के बारे में नया कुछ बताने को हमारे पास नहीं है। बस प्रस्तुत गीत के बारे में यह ज़रूर कहूँगा कि प्रेम पत्र लिखने पर जितने भी गानें बने हैं, उनमें यह गीत एक अहम स्थान रखता है। रोमांटिक गानें लिखने में हसरत जयपुरी साहब का कोई सानी नहीं था, इस गीत के ज़रिये उन्होने इस बात को फिर एक बार प्रमाणित किया है। गीत का मुखड़ा और अंतरे जितने ख़ूबसूरत हैं, उतना ही ख़ूबसूरत है गीत के शुरुवाती बोल – “मेहरबाँ लिखूँ, हसीना लिखूँ, या दिलरुबा लिखूँ, हैरान हूँ कि आप को इस ख़त में क्या लिखूँ”! हसरत साहब ने इस गीत में अपने आप को इस क़दर डूबो दिया है कि सुनकर ऐसा लगता है कि उन्होने इसे अपनी महबूबा के लिए ही लिखा हो! इससे बेहतर प्रेम-पत्र शायद ही किसी ने आज तक लिखा होगा! और रफ़ी साहब तो रफ़ी साहब, क्या समर्पण और अदायगी इस गीत में उन्होने दिखाई है, के सुन कर प्रेम-पत्र लिखने वाले के लिए दिल में हमदर्दी पैदा हो जाये! शंकर जयकिशन का संगीत भी उतना ही असरदार था इस गीत में। कुल मिलाकर यह गीत इन सभी कलाकारों के संगीत सफ़र का एक महत्वपूर्ण पड़ाव बन कर रह गया। और आज हम उसी पड़ाव से गुज़र रहे हैं, तो सुनिये फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर का यह सुनहरा नग़मा। और हाँ, आप को यह भी बता दें कि इस फ़िल्म के लिये राजेन्द्र कुमार को उस साल के फ़िल्म-फ़ेयर के सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेता का पुरस्कार मिला था।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला “ओल्ड इस गोल्ड” गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा दूसरा (पहले गेस्ट होस्ट हमें मिल चुके हैं शरद तैलंग जी के रूप में)”गेस्ट होस्ट”. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
1. एक सदाबहार ग़ज़ल रफी साहब की आवाज़ में.
2. कलाकार हैं -“राज कुमार”.
3. मुखड़े में शब्द है -“कुदरत”.
सुनिए/ सुनाईये अपनी पसंद दुनिया को आवाज़ के संग –
गीतों से हमारे रिश्ते गहरे हैं, गीत हमारे संग हंसते हैं, रोते हैं, सुख दुःख के सब मौसम इन्हीं गीतों में बसते हैं. क्या कभी आपके साथ ऐसा नहीं होता कि किसी गीत को सुन याद आ जाए कोई भूला साथी, कुछ बीती बातें, कुछ खट्टे मीठे किस्से, या कोई ख़ास पल फिर से जिन्दा हो जाए आपकी यादों में. बाँटिये हम सब के साथ उन सुरीले पलों की यादों को. आप टिपण्णी के माध्यम से अपनी पसंद के गीत और उससे जुडी अपनी किसी ख़ास याद का ब्यौरा (कम से कम ५० शब्दों में) हम सब के साथ बाँट सकते हैं वैसे बेहतर होगा यदि आप अपने आलेख और गीत की फरमाईश को hindyugm@gmail.com पर भेजें. चुने हुए आलेख और गीत आपके नाम से प्रसारित होंगें हर माह के पहले और तीसरे रविवार को “रविवार सुबह की कॉफी” शृंखला के तहत. आलेख हिंदी या फिर रोमन में टंकित होने चाहिए. हिंदी में लिखना बेहद सरल है मदद के लिए यहाँ जाएँ. अधिक जानकारी ये लिए ये आलेख पढें.
पिछली पहेली का परिणाम –
स्वप्न जी आप बस दो जवाब दूर हैं हमारी दूसरी विजेता बनने से. एक बार स्वप्न जी विजेता बन जाए उसके बाद हमें लगता है कि पराग जी और दिशा जी में जम कर टक्कर होने वाली है. रोहित जी हौंसला अफजाई के लिए धन्येवाद. शरद जी आपकी पैरोडी पढ़कर तो मज़ा आ गया. दरअसल जैसा कि उपर सुजॉय ने लिखा भी है, प्रेम पत्र हम सभी ने लिखा होगा कभी न कभी. लिखने के बाद जो सोच सबसे पहले जेहन में आती है उसे ये गीत बहुत सुंदर अभिव्यक्ति देता है. शायद ही कोई होगा जिसे ये गीत पसंद न हो.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
