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तू कहे अगर जीवन भर मैं गीत सुनाता जाऊं…उम्र भर तो गाया मुकेश ने पर अफ़सोस ये उम्र बेहद कम रही

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 188

ज एक बार फिर से हम वापस रुख़ करते हैं ४० के दशक की आख़िर की तरफ़। १९४९ का साल संगीतकार नौशाद के लिए बेहद फ़ायदेमंद साबित हुआ था। महबूब ख़ान का ‘अंदाज़’, ए. आर. कारदार की ‘दिल्लगी’ और ‘दुलारी’, तथा ताज महल पिक्चर्स की ‘चांदनी रात’, ये सभी फ़िल्में ख़ूब चली, और इनका संगीत भी ख़ूब हिट हुआ। हालाँकि इसके पिछले साल, यानी कि १९४८ में महबूब साहब की फ़िल्म ‘अनोखी अदा’ का संगीत हिट हुआ था, नौशाद साहब के संगीत ने कोई कसर नहीं छोड़ी आम जनता के होठों तक पहुँचने के लिए, लेकिन बद-क़िस्मती से बॉक्स ऑफिस पर फ़िल्म असफल रही थी। यही नहीं, १९४७ की महबूब साहब की फ़िल्में ‘ऐलान’ और ‘एक्स्ट्रा गर्ल’ भी पिट चुकी थी। इन सब के मद्देनज़र महबूब साहब ने आख़िरकार यह निर्णय लिया कि सिवाय नौशाद साहब के, बाक़ी पूरी टीम में कुछ फेर-बदल की जाए। गीतकार शक़ील बदायूनी के जगह मजरूह सुल्तानपुरी को चुना गया। मेरा ख़याल यह है कि ऐसा महबूब साहब ने इसलिए नहीं किया होगा कि मजरूह शक़ील से बेहतर लिख सकते थे, बल्कि इसलिए कि वो शायद कुछ नया प्रयोग करना चाह रहे होंगे, अपनी फ्लॉप फ़िल्मों की कतार से बाहर निकलने के लिए। अच्छा, तो गायकों में उमा देवी और सुरेन्द्र की जगह आ गये लता मंगेशकर और जी हाँ, मुकेश। और वह फ़िल्म थी ‘अंदाज़’। नरगिस, दिलीप कुमार और राज कपूर अभिनीत इस फ़िल्म में सब कुछ नया नया सा था, और संगीत भी उस ज़माने की प्रचलित धारा से अलग हट के थी। नतीजा यह कि फ़िल्म सुपर डुपर हिट, और साथ ही इसका गीत संगीत भी। आज ‘१० गीत जो थे मुकेश को प्रिय’ में सुनिए इसी फ़िल्म से उनका गाया “तू कहे अगर जीवन भर मैं गीत सुनाता जाऊँ, मनबीन बजाता जाऊँ”। यहाँ पर यह बताना ज़रूरी है कि ‘अंदाज़’ वह एकमात्र फ़िल्म है जिसमें शक़ील बदायूनी ने अपनी १८ साल के कैरीयर में नौशाद साहब के किसी फ़िल्म में गीत नहीं लिखा।

प्रस्तुत गीत अपने ज़माने का एक मशहूर गीत तो रहा ही है, साथ ही यह मुकेश के शरुआती कामयाब गीतों में से भी एक है। हालाँकि उस समय मुकेश की आवाज़ से सहगल साहब की आवाज़ का असर धीरे धीरे ख़तम हो रही थी और मुकेश अपनी अलग पहचान बनाते जा रहे थे, फिर भी इस गीत में कहीं कहीं सहगल साहब का रंग दिखाई पड़ता है। मसलन, जब वो एक अंतरे में गाते हैं “मैं राग हूँ तू वीना है”, तो जिस तरह से वो “वीना है” गाते हैं, हमें सहगल साहब की याद आ ही जाती है। इसी फ़िल्म का मुकेश का गाया एक दूसरा बेहद मशहूर गीत है “झूम झूम के नाचो आज, गायो ख़ुशी के गीत”। मुकेश का गाया हुआ एक और गीत है “टूटे ना दिल टूटे ना साथ हमारा छूटे ना”, जिसमें भी वही सहगल साहब और न्यु थियटर्स का ज़माना याद आ जाता है। उन दिनों सहगल साहब का प्रभाव फ़िल्म संगीत पर इस क़दर छाया हुआ था कि हर संगीतकार उनकी शैली पर गीत बनाने का ख़्वाब देखा करते थे। ‘अंदाज़’ में मुकेश का ही गाया हुआ एक और गीत भी है “क्यों फेरी नज़र देखो तो इधर” जिसे फ़िल्म में शामिल नहीं किया गया था। इस फ़िल्म में दिलीप कुमार और राज कपूर दोनों थे, और आगे चलकर मुकेश बने राज साहब की आवाज़। लेकिन मज़े की बात यह है कि इस फ़िल्म में नौशाद साहब ने मुकेश की आवाज़ का दिलीप साहब के लिए इस्तेमाल किया था, न कि राज कपूर के लिए। आगे चलकर नौशाद साहब ने ज़्यादातर गानें रफ़ी साहब से ही गवाये, लेकिन मुकेश से उन्होने जितने गानें उस दौर में गवाये, वे सभी आज गुज़रे ज़माने के अनमोल नग़में बन चुके हैं, और आज का प्रस्तुत गीत भी उन्ही में से एक अनमोल रतन है। सुनते हैं फ़िल्म ‘अंदाज़’ का यह गीत और सलाम करते हैं मजरूह, नौशाद और मुकेश के अंदाज़ को।

गीत के बोल (सौजन्य – बी एस पाबला)

तू कहे अगर, तू कहे अगर
तू कहे अगर जीवन भर
मैं गीत सुनाता जाऊं
मन बीन बजाता जाऊं
तू कहे अगर

मैं साज़ हूँ तू सरगम है – 2
देती जा सहारे मुझको – 2
मैं राग हूँ तू वीणा है – 2
इस दम जो पुकारे तुझको
आवाज़ में तेरी हर दम
आवाज़ मिलाता जाऊं
आकाश पे छाता जाऊं
तू कहे अगर…

इन बोलों में, तू ही तू है
मैं समझूँ या तू जाने, हो जाने
इनमें है कहानी मेरी, इनमें है तेरे अफ़साने
इनमें है तेरे अफ़साने
तू साज़ उठा उल्फ़त का
मैं झूम के गाता जाऊं
सपनों को जगाता जाऊं
तू कहे अगर…

और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला “ओल्ड इस गोल्ड” गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)”गेस्ट होस्ट”. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. इन्दीवर ने लिखा ये गीत जिसे मुकेश ने आवाज़ देकर अमर बना दिया.
२. इस फिल्म में देसी-विदेशी द्वंद में फंसे दिखे नायक नायिका.
३. दूसरे अंतरे की पहली पंक्ति में शब्द है -“शर्त”.

पिछली पहेली का परिणाम –
पराग जी उठे देर से हैं पर जब जागते हैं सवेरा कर देते हैं. सही जवाब और २० अंक पूरे हुए आपके. दिलीप आप रोज़ गायें और आपकी ओब्सेर्वेशन के क्या कहने बहुत बढ़िया जानकारी आपने दी. पाबला जी बोलों के लिए एक बार फिर धन्येवाद… अन्य सभी श्रोताओं का भी आभार.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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