![]() ![]() |
आशा भोसले और दत्ताराम (Courtesy: hamaraphotos.com) |
‘देशभक्ति
गीतों में शास्त्रीय राग’ श्रृंखला की आज की कड़ी में प्रस्तुत है दो ऐसे गीत जिनका आधार कल्याण थाट के दो राग हैं। पहला गीत आधारित है राग कल्याण अथवा यमन पर और दूसरा गीत शुद्ध कल्याण पर। 1957 की फ़िल्म ’अब दिल्ली दूर नहीं’ में आशा भोसले, गीता दत्त और साथियों का गाया “ये चमन हमारा अपना है, इस देश पे अपना राज है” गीत राग कल्याण पर आधारित है। राग कल्याण अथवा यमन, कल्याण थाट का आश्रय राग है। इसके आरोह और अवरोह में सभी सात स्वर प्रयोग होते हैं। राग में मध्यम स्वर तीव्र और शेष सभी स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। राग कल्याण अथवा यमन का वादी स्वर गान्धार और संवादी स्वर निषाद होता है। इस राग का प्राचीन नाम कल्याण ही मिलता है। मुगल काल में राग का नाम यमन प्रचलित हुआ। वर्तमान में इसका दोनों नाम, कल्याण और यमन, प्रचलित है। यह दोनों नाम एक ही राग के सूचक हैं, किन्तु जब हम ‘यमन कल्याण’ कहते हैं तो यह एक अन्य राग का सूचक हो जाता है। राग यमन कल्याण, राग कल्याण अथवा यमन से भिन्न है। इसमें दोनों मध्यम का प्रयोग होता है, जबकि यमन में केवल तीव्र मध्यम का प्रयोग होता है। राग कल्याण अथवा यमन के चलन में अधिकतर मन्द्र सप्तक के निषाद से आरम्भ होता है और जब तीव्र मध्यम से तार सप्तक की ओर बढ़ते हैं तब पंचम स्वर को छोड़ देते हैं।![]() ![]() |
हंसराज बहल और मोहम्मद रफ़ी (Courtesy: hamaraphotos.com) |
राग कल्याण के कुछ प्रचलित प्रकार हैं; पूरिया कल्याण, शुद्ध कल्याण, जैत कल्याण आदि। राग कल्याण/यमन आधारित फ़िल्म ’अब दिल्ली दूर नहीं’ के इस गीत के बाद अब हम आते हैं राग कल्याण के एक अन्य प्रचलित प्रकार – शुद्ध कल्याण पर। इस राग पर आधारित जिस फ़िल्मी देशभक्ति गीत को हमने चुना है, वह एक ऐसा गीत है जिसे बजाये बग़ैर कोई भी राष्ट्रीय पर्व का उत्सव अधूरा है। यह गीत है 1965 की फ़िल्म ’सिकन्दर-ए-आज़म’ का मोहम्मद रफ़ी और साथियों का गाया, “जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़ियाँ करती हैं बसेरा, वो भारत देश है मेरा…”। इस देश की महानता के विभिन्न पक्षों का इससे सुन्दर चित्रण किसी अन्य फ़िल्मी गीत में मिलना मुश्किल है। गीतकार राजेन्द्र कृष्ण के अमर बोलों को शुद्ध कल्याण के स्वरों में पिरो कर प्रस्तुत किया है संगीतकार हंसराज बहल ने। विविध भारती को दिए सन् 1981 के एक साक्षात्कार में हंसराज बहल ने बताया कि उन्होंने बचपन में शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली थी। उन्हीं के शब्दों में – “लाहौर में बचपन से शौक़ था गाने का, और हमारे वहाँ एक पंडित जी का स्कूल था – पंडित चुन्नीलाल, शंकर विद्यालय। वहाँ से मैंने सीखा क्लासिकल म्युज़िक और इन्स्ट्रुमेण्ट्स वगेरह भी सीखा और कुछ एक साल रहा उनके पास। उसके बाद मैंने अपना कुछ स्कूल, मैंने भी खोला लहौर में। मगर मेरी जो रुचि थी ज़्यादा, मॉडर्ण संगीत में, तो मैं वो छोड़ के सीधा बॉम्बे चला आया।” मुंबई में हंसराज बहल ने अपने छोटे भाई, निर्माता गुलशन बहल के साथ मिल कर फ़िल्मों का निर्माण भी शुरू किया ’N C Films’ के बैनर तले। गुलशन बहल और हंसराज बहल की जोड़ी की पहली फ़िल्म बनी ’लाल परी’। बहल भाइयों ने कुल 15-16 फ़िल्मों का निर्माण किया जिनमें गुलशन बहल का नाम निर्माता के रूप में और हंसराज बहल का नाम संगीतकार के रूप में परदे पर दिखाई दिया। इन फ़िल्मों में ’मिलन’, ’सावन’ और ’सिकन्दर-ए-आज़म’ भी शामिल है।
गीत : “जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़ियाँ…” : फ़िल्म: सिकन्दर-ए-आज़म, गायक: मोहम्मद रफ़ी
आज ’स्वरगोष्ठी’ के मंच पर हम स्वागत कर रहे हैं हमारे नए साथी शिलाद चटर्जी का जो इस स्तम्भ का संचालन करने में हमारी सहायता करेंगे एक विशेष सलाहकार के रूप में। गीतों में रागों के प्रयोग और उनके विश्लेषण में हमारा ज्ञान बढ़ायेंगे दस वर्षीय शिलाद जो प्रयाग संगीत समिति, प्रयागराज (इलाहाबाद) के अधीन शास्त्रीय गायन विभाग के चौथे वर्ष का छात्र है। शिलाद को भारतीय शास्त्रीय संगीत में गहन रुचि है। जब हम रेडियो पर हिन्दी फ़िल्मी गीतों का आनन्द ले रहे होते हैं, शिलाद का मन करता है कि शास्त्रीय संगीत सुने। प्रतिदिन रात 10 बजे शिलाद आकाशवाणी गुवाहाटी केन्द्र से प्रसारित शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम सुनते हैं। शिलाद ऑल इण्डिया रेडियो के उर्दू सर्विस पर वर्ष 2019 में शास्त्रीय गायन का कार्यक्रम प्रस्तुत कर चुके हैं। राग देश में ख़याल गाकर श्रोताओं को चकित कर दिया था आठ-वर्षीय शिलाद ने। वर्ष 2020 में DPS Vasantkunj New Delhi द्वारा आयोजित NCR Inter-school Classical Instrumental प्रतियोगिता में हारमोनियम पर राग देश बजा कर शिलाद ने तीसरा पुरस्कार प्राप्त किया है। तो आइए हम सब शिलाद चटर्जी का ’स्वरगोष्ठी’ के मंच पर स्वागत करें।
रेडियो प्लेबैक इण्डिया
1 comment
शिलादजी आपका स्वागत है.
किरीट छाया