![]() ![]() |
वसन्त देसाई व आशा भोसले (सूत्र: hamaraphotos.com) |
व्ही. शान्ताराम
ने वर्ष 1966 में राजकमल कलामन्दिर के बैनर तले ’लड़की सह्याद्री की’ शीर्षक से फ़िल्म बनायी और स्वयम् इसे निर्देशित भी किया। यह एक हिन्दी-मराठी द्वैभाषी फ़िल्म थी जिसमें मुख्यत: मराठी सिनेमा व रंगमंच के कलाकारों ने काम किया। संध्या, शालिनी अभ्यंकर, वत्सला देशमुख, कुमार दिघे, केशवराव दाते और बाबूराव पेंढरकर द्वारा अभिनीत इस फ़िल्म के गीत-संगीत का पक्ष भी काफ़ी उच्चस्तरीय था। उच्चस्तरीय क्यों ना हो जब पंडित जसराज जैसे शास्त्रीय संगीत के दिग्गज कलाकार फ़िल्म के लिए गीत गाने को तैयार हों! उनका गाया राग अहिरभैरव में भजन “वन्दना करो, अर्चना करो” फ़िल्म संगीत के धरोहर का एक मूल्यवान हीरा है। और यह और भी अधिक महत्वपूर्ण बन जाता है जब हमें यह पता चलता है कि पंडित जी ने इस गीत के अलावा केवल तीन और फ़िल्मों में ही गीत गाये। ये तीन फ़िल्में हैं ’बीरबल माइ ब्रदर’, ’1920’ और ’गौड़ हरि दर्शन’। हाँ, उन्होंने मीरा नायर की फ़िल्म ’सलाम बॉम्बे’ का संगीत भी तैयार किया था। फ़िल्म ’लड़की सह्याद्री की’ के गाने लिखे पंडित भरत व्यास ने और फ़िल्म के संगीतकार थे वसन्त देसाई। 1959 की फ़िल्म ’नवरंग’ में वसन्त देसाई ने पार्श्व-संगीत तैयार किया था, पर ’नवरंग’ के बाद आपसी मतभेद की वजह से वसन्त देसाई ने व्ही. शान्ताराम से किनारा कर लिया था। शान्ताराम जी के अनुरोध पर वसन्त देसाई फिर एक बार शान्ताराम कैम्प में वापस लौटे और ’गीत गाया पत्थरों ने’ तथा ’लड़की सह्याद्री की’ फ़िल्मों में संगीत दिया। यह जानकारी नीलू गव्हाणकर लिखित 2011 की पुस्तक ’The Desai Trio and the Movie Industry of India’ में दी गई है। ’लड़की सह्याद्री की’ फ़िल्म के कुल 9 गीतों में से 6 गीतों में आशा भोसले की आवाज़ है और इन 6 गीतों में से 4 गीत देशभक्ति रचनाएँ हैं। “मेरी झांसी नहीं दूंगी”, “तुम मुझे ख़ून दो”, “अंग्रेज़ों ने जीत ली झांसी” और चौथा देशभक्ति गीत है “करो सब निछावर, बनो सब फ़कीर, वक़्त मांगे रे तेरा धन कबीर”। राग मियाँ की मल्हार पर आधारित इसी चौथे गीत की चर्चा आज हम कर रहे हैं।![]() ![]() |
सरोद सम्राट उस्ताद अमजद अली ख़ाँ |
राग मियाँ की मल्हार काफी थाट का राग है। मल्हार अंग के रागों में राग मेघ मल्हार, मेघों का आह्वान करने, मेघाच्छन्न आकाश का चित्रण करने और वर्षा ऋतु के आगमन की आहट देने में सक्षम राग माना जाता है। वहीं दूसरी ओर राग मियाँ मल्हार, वर्षा ऋतु की चरम अवस्था के सौन्दर्य की अनुभूति कराने पूर्ण समर्थ है। यह राग वर्तमान में वर्षा ऋतु के रागों में सर्वाधिक प्रचलित और लोकप्रिय है। सुप्रसिद्ध इसराज और मयूरी वीणा वादक पण्डित श्रीकुमार मिश्र के अनुसार; राग मियाँ मल्हार की सशक्त स्वरात्मक परमाणु शक्ति, बादलों के परमाणुओं को झकझोरने में समर्थ है। राग मियाँ की मल्हार के स्वरों का ढाँचा कुछ इस प्रकार बनता है कि कोमल निषाद एक श्रुति ऊपर लगने लगता है। इसी प्रकार कोमल गान्धार, ऋषभ से लगभग ढाई श्रुति ऊपर की अनुभूति कराता है। इस राग में गान्धार स्वर का प्रयोग अत्यन्त सावधानी से करना पड़ता है। राग मियाँ की मल्हार को गाते-बजाते समय राग बहार से बचाना पड़ता है। परन्तु कोमल गान्धार का सही प्रयोग किया जाए तो इस दुविधा से मुक्त हुआ जा सकता है। इन दोनों रागों को एक के बाद दूसरे का गायन-वादन कठिन होता है, किन्तु उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ ने एक बार यह प्रयोग कर श्रोताओं को चमत्कृत कर दिया था। इस राग में गमक की तानें बहुत अच्छी लगती है। राग मियाँ की मल्हार तानसेन के प्रिय रागों में से एक है। कुछ विद्वानों का मत है कि तानसेन ने कोमल गान्धार तथा शुद्ध और कोमल निषाद का प्रयोग कर इस राग का सृजन किया था। अकबर के दरबार में तानसेन को सम्मान देने के लिए उन्हें ‘मियाँ तानसेन’ नाम से सम्बोधित किया जाता था। इस राग से उनके जुड़ाव के कारण ही मल्हार के इस प्रकार को ‘मियाँ मल्हार’ कहा जाने लगा। आइए राग मियाँ की मल्हार का आनन्द लिया जाए 1968 में रिकॉर्ड की हुई उस्ताद अमजद अली ख़ाँ के सरोद पर बजायी हुई रचना के माध्यम से।
रेडियो प्लेबैक इण्डिया
4 comments
नवरंग का संगीत सी. रामचन्द्र ने दिया था। उससे पहले 'दो आँखें बारह हाथ' का संगीत वसंत देसाई ने दिया था। ये दोनों संगीतकार बारी-बारी से वी. शांताराम जी की फिल्मों में संगीत देते रहे, ऐसे में झगड़े की घटना का क्या प्रामाणिकता है?
Vasant Desai ne Navrang ka background music taiyar kiya tha. Desai aur Shantaram ke beech ka matbhed Nilu Gavhankar ki kitaab 'The Desai Trio and the Movie Industry'naamak 2011 ki pustak mein milta hai.
This comment has been removed by a blog administrator.
मैं आपके इस ब्लॉग का प्रशंसक पुराना हूँ और एक गीत सौ कहानियाँ मेरा सबसे प्रिय खंड है। आपका धन्यवाद कि आपने न केवल मेरी पिछली टिप्पणी को प्रकाशित किया बल्कि उसका उत्तर भी दिया। इतना उदार ह्रदय बहुत कम लोगों का होता है। मैंने देखा कि आपने ऊपर दी गई जानकारी को संशोधित भी कर दिया है। लेकिन एक अन्य त्रुटि हो गई है। 'गीत गाया पत्थरों ने' का संगीत वसंत देसाई ने नहीं बल्कि रामलाल (सेहरा वाले) ने दिया था।