शंकर-जयकिशन
के पसन्दीदा रागों में एक महत्वपूर्ण राग रहा है भैरवी। उनके सहायक रह चुके दत्ताराम जब स्वतंत्र रूप से संगीत देने लगे, तब उन्होंने भी राग भैरवी का अपने गीतों में ख़ूब प्रयोग किया। 60 के दशक के अन्त तक आते-आते फ़िल्म संगीत की धारा काफ़ी बदल चुकी थी। पाश्चात्य संगीत काफ़ी हद तक इसमें अपने लिए जगह बना चुका था। 50-60 के दशकों के दिग्गज संगीतकार ढलान पर थे, और कल्याणजी-आनन्दजी, लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल और राहुल देव बर्मन के गाने सर चढ़ कर बोलने लगे थे। ऐसे में ना केवल पिछले दौर के बड़े संगीतकार पीछे लुढ़कते गए बल्कि उस दौर के अन्य कमचर्चित संगीतकारों को भी बी और सी-ग्रेड फ़िल्मों से ही गुज़ारा करना पड़ा। और इनमें एक नाम दत्ताराम का है। 1969 में ’कला मण्डल’ के बैनर तले बी. के. आदर्श निर्देशित एक कम बजट की फ़िल्म आयी थी ’बालक’, जिसमें ’बालक’ की भूमिका में परदे पर नज़र आयीं बेबी सारिका। ये वोही बेबी सारिका हैं जो आगे चल कर सारिका के नाम से नायिका बनीं। पर फ़िल्म में उनका किरदार एक बालक का होने की वजह से उनका नाम फ़िल्म की नामावली में बेबी सारिका के बजाय मास्टर सूरज लिखा गया। फ़िल्म के गीतकार थे पंडित भरत व्यास और संगीतकार दत्ताराम। फ़िल्म में बस चार ही गीत थे, चारों एकल गीत और चार अलग-अलग आवाज़ों में – मोहम्मद रफ़ी, आशा भोसले, सुमन कल्याणपुर और शान्ति माथुर। इनमें से जो देशभक्ति गीत है, वह सुमन कल्याणपुर की आवाज़ में है। फ़िल्म के ना चलने से इन गीतों पर किसी का ख़ास ध्यान नहीं गया, पर प्रस्तुत गीत बड़ा प्रभावशाली गीत है, जिसके बोल है “सुन ले बापू ये पैग़ाम, मेरी चिट्ठी तेरे नाम”। गीत में तीन अन्तरे हैं जिनमें वर्तमान समाज की दयनीय स्थिति का वर्णन किया गया है। बालक महात्मा गांधी जी को पत्र लिख कर दु:ख व्यक्त कर रहा है कि किस तरह से उनके मूल्यों और आदर्शों की दज्जियाँ उड़ायी जा रही हैं। काला धन, काला बाज़ार, रिश्वतखोरी, हिंसा, घेराव, प्रान्तीयता, विदेशी चीज़ों में आसक्ति, चोरी-जमाखोरी, नेताओं की अनैतिकता, बच्चों का तोड़-फोड़, युवाओं का नशे में मत्त होना, इन सब का ज़िक्र है इस गीत में। तीसरे अन्तरे का समापन बड़ा सशक्त है जब गीतकार इस बात की ओर इशारा करते हैं कि एक तरफ़ जहाँ बापू के आदर्शों को ख़ाक में मिलाया जा रहा हैं, वहीं दूसरी तरफ़ उनके समाधि स्थल राजघाट में सुबह-शाम फूल चढ़ाये जा रहे हैं। इस विरोधाभास को बड़ी सुन्दरता से व्यक्त किया गया है गीत में।![]() ![]() |
पंडित रामभाउ बीजापुरे |
अभी आपने जो गीत सुना, उसमें राग भैरवी के स्वर लगे हैं। स्वरों के माध्यम से प्रत्येक रस का सृजन करने में राग भैरवी सर्वाधिक उपयुक्त राग है। संगीतज्ञ इसे ‘सदा सुहागिन राग’ तथा ‘सदाबहार’ राग के विशेषण से अलंकृत करते हैं। सम्पूर्ण जाति का यह राग भैरवी थाट का आश्रय राग माना जाता है। राग भैरवी में ऋषभ, गान्धार, धैवत और निषाद सभी कोमल स्वरों का प्रयोग किया जाता है। इस राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। राग भैरवी के आरोह स्वर हैं, सा, रे॒ (कोमल), ग॒ (कोमल), म, प, ध॒ (कोमल), नि॒ (कोमल), सां तथा अवरोह के स्वर, सां, नि॒ (कोमल), ध॒ (कोमल), प, म ग (कोमल), रे॒ (कोमल), सा होते हैं। यूँ तो इस राग के गायन-वादन का समय प्रातःकाल, सन्धिप्रकाश बेला है, किन्तु आमतौर पर इसका गायन-वादन किसी संगीत-सभा अथवा समारोह के अन्त में किये जाने की परम्परा बन गई है। राग भैरवी मानसिक शान्ति प्रदान करता है। इसकी अनुपस्थिति से मनुष्य डिप्रेशन, उलझन, तनाव जैसी असामान्य मनःस्थितियों का शिकार हो सकता है। प्रातःकाल सूर्योदय का परिवेश परमशान्ति का सूचक होता है। ऐसी स्थिति में भैरवी के कोमल स्वर- ऋषभ, गान्धार, धैवत और निषाद, मस्तिष्क की संवेदना तंत्र को सहज ढंग से ग्राह्य होते है। इस राग के गायन-वादन का सर्वाधिक उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। भैरवी के स्वरों की सार्थक अनुभूति कराने के लिए अब हम प्रस्तुत कर रहे हैं पंडित रामभाउ बीजापुरे द्वारा हारमोनियम पर बजाया हुआ राग भैरवी। तबले पर उनके साथ संगत की है नारायण गणचारी ने और तानपुरे पर हैं श्रीधर कुलकर्णी। इस रचना के माध्यम से राग भैरवी के मिठास का अनुभव कीजिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए। ’स्वरगोष्ठी’ का अगला अंक 500-वाँ अंक है। यह एक विशेषांक होगा जिसमें हम वर्ष 2020 के महाविजेताओं की घोषणा के साथ-साथ उनकी प्रस्तुतियाँ शामिल करेंगे। ’देशभक्ति गीतों में शास्त्रीय राग’ श्रृंखला 501-वीं कड़ी से जारी रहेगी।
रेडियो प्लेबैक इण्डिया