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कवि प्रदीप, लता मंगेशकर, सी. रामचन्द्र |
“रेडियो प्लेबैक इण्डिया” के साप्ताहिक स्तम्भ “स्वरगोष्ठी” के मंच पर मैं सुजॉय चटर्जी, आप सब संगीत प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज मुझे यह अंक लिखते हुए प्रसन्नता कम और दु:ख अधिक हो रहा है। हम सब के चहेते कृष्णमोहन जी के अचानक चले जाने के बाद जैसे ’स्वरगोष्ठी’ का स्वर ही मूक हो गया है। समूचे हिन्दी ब्लॉग जगत में कृष्णमोहन मिश्र जी जैसा शास्त्रीय, उपशास्त्रीय और लोक संगीत विषयों पर नियमित स्तम्भ लिखने वाला और कोई दूसरा मौजूद नहीं रहा। उनकी इसी बेजोड़ प्रतिभा, नियमितता, लगन और अनुशासन की वजह से ’स्वरगोष्ठी’ का स्तर दिन प्रतिदिन ऊँचा उठता चला गया। आज उनके जाने के बाद यहाँ कोई नहीं जो उनके जैसे स्तर का लेख लिख सके। इसी कारण से ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की टीम ने यह निर्णय लिया था कि कृष्णमोहन जी के साथ ’स्वरगोष्ठी’ का सफ़र भी समाप्त कर दिया जाए। पर हमें बार-बार कृष्णमोहन जी के साथ वह अन्तिम टेलीफ़ोनिक बातचीत याद आ रही थी जिसमें वे ’स्वरगोष्ठी’ के दस वर्ष और 500 अंक पूरे होने पर बहुत उत्साहित सुनाई दे रहे थे। ऐसे में 495-वे अंक पर इस श्रृंखला को समाप्त करके उनके 500 अंक पूर्ति के सपने को तोड़ देना हमें अनुचित लगा। यही नहीं, जिस श्रृंखला को वे 31-वें अंक से लगातार, बिना किसी रुकावट के, 495 अंक तक लेकर आए, उनके प्रति हमारा यह कर्तव्य बन जाता है कि किसी रिले-रेस की तरह, बैटन को उनके हाथ से अपने हाथ में लेकर उनकी दौड़ को आगे बढ़ाएँ। और तो और, कृष्णमोहन जी ने ’स्वरगोष्ठी’ की अपनी अन्तिम कड़ी (अंक-495) में इस श्रृंखला की दस वर्ष पूर्ति के उपलक्ष्य पर इसका जो इतिहास बयाँ किया है, उसमें उन्होंने मेरा नाम कम से कम छ: बार लिया है। उनके इस अत्यन्त विनयी आचरण की उपेक्षा करना असम्भव है।
कृष्णमोहन जी जैसा शास्त्रीय संगीत और लेखन शैली व भाषा पर दखल हमारा नहीं है और ना ही हम उनके जैसा लिख सकते हैं। उनकी अनुपस्थिति में 500-वें अंक तक ’स्वरगोष्ठी’ के सफ़र को जारी रखने का हमारा उद्देश्य केवल उन्हें श्रद्धांजलि देना है। हम आशा करते हैं कि हमारे इस उद्देश्य को सफल बनाने में आप सभी श्रोता-पाठकों का भरपूर साथ व सहयोग हमें मिलेगा, और कृष्णमोहन जी की छत्रछाया के अभाव में हमसे जो भूल-चूक हो जाए, उन्हें आप क्षमा कर देंगे। इसी उम्म्मीद के साथ आइए जारी रखें ’स्वरगोष्ठी’ का सफ़र।![]() ![]() |
27 जनवरी 1963, नेशनल स्टेडियम, नई दिल्ली – पंडित नेहरु के साथ लता मंगेशकर |
’स्वरगोष्ठी’ की नई श्रृंखला
“देशभक्ति गीतों में शास्त्रीय राग” की पहली कड़ी में सुजॉय चटर्जी और “रेडियो प्लेबैक इण्डिया” परिवार की ओर से आपका हार्दिक स्वागत है। इस श्रृंखला में हम आने वाले सप्ताहों में कुछ ऐसे लोकप्रिय देशभक्ति गीतों की चर्चा करेंगे जो किसी न किसी शास्त्रीय राग पर आधारित हैं। आज इसकी पहली कड़ी के लिए हमने जो गीत चुना है, वह किसी तार्रुफ़ का मोहताज नहीं। कवि प्रदीप का लिखा, सी. रामचन्द्र का संगीतबद्ध किया हुआ और लता मंगेशकर द्वारा 27 जनवरी 1963 को पहली बार नई दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में गाया हुआ यह गीत है “ऐ मेरे वतन के लोगों, ज़रा आँख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो क़ुर्बानी”। यह गीत और इस गीत से जुड़ी तमाम बातें आज इतिहास बन चुकी हैं जो सभी जानते हैं। इसलिए हम इस गीत से जुड़ी बस दो-चार तथ्य आपके साथ साझा करने जा रहे हैं, हो सकता है कि ये बातें आपको मालूम ना हो। भारत-चीन युद्ध में चीन से परास्त होना किसी भी भारतीय के गले नहीं उतर रहा था और इनमें राष्ट्रवादी कवि प्रदीप भी शामिल थे। इसी बात से विक्षुब्ध होकर 1962 के दिसम्बर की एक शाम कवि प्रदीप बम्बई के माहिम की सड़कों पर टहल रहे थे। उन्होंने इधर-उधर देखा, वे कुछ लिखना चाह रहे थे पर उनके पास का न काग़ज़ था ना कलम। जब वहाँ से गुज़रने वाले किसी भी व्यक्ति से उन्हें कागज़ नसीब नहीं हुई, तब आख़िरकार उन्होंने एक पान बेचने वाले से सिगरेट की ख़ाली पैकिट ली और पास खड़े एक आदमी से कलम लेकर और सिगरेट की उस ख़ाली पैकिट को खोल कर उस पर लिख डाला बस एक पंक्ति – “जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो क़ुर्बानी”। फिर घर वापस आकर देर रात तक उन्होंने पूरा गीत लिख डाला। “ऐ मेरे वतन के लोगों” का संगीतकार सी. रामचन्द्र द्वारा संगीतबद्ध होना, लता जी के साथ उनके अन-बन के बावजूद कवि प्रदीप द्वारा दोनों में सुलह होना, आशा भोसले का गीत में शुरू-शुरू में शामिल होना और फिर बाद में रिहर्सल के दौरान निकल भी जाना, ऐसी कई बातें सुनने को मिलती हैं जिनकी ठीक-ठीक पुष्टि हो पाना सम्भव नहीं। पर हाल ही में पार्श्वगायिका उषा तिमोथी ने एक बहुत बड़ा ख़ुलासा किया है जिसे नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता। उन्होंने सोशल मीडिया पर यह लिखा है कि “ऐ मेरे वतन के लोगों” गीत के तैयार होने के बाद और लता जी द्वारा नई दिल्ली में 27 जनवरी 1963 के दिन गाये जाने से पहले उन्होंने स्वयम् महेन्द्र कपूर के साथ मिल कर इस गीत को गुजरात के एक स्टेज शो में संगीतकार सी. रामचन्द्र के निर्देशन में गाया था। इस तरह से यह अत्यन्त महत्वपूर्ण तथ्य है कि इस कालजयी रचना को मंच पर पहली बार लता मंगेशकर ने नहीं बल्कि उषा तिमोथी ने गाया था। उषा जी ने उस जलसे का चित्र भी अपने फ़ेसबूक पृष्ठ पर साझा किया है।![]() ![]() |
लता और सी. रामचन्द्र |
अब आते हैं “ऐ मेरे वतन के लोगों” गीत की संगीत संरचना पर। इस गीत के संगीत को तैयार करते हुए सी. रामचन्द्र ने इसमें देशभक्ति की कोई कोमल छटा नहीं बिखेरी, बल्कि इस गीत को राग आसावरी के सशक्त सुरों में पिरो कर ऐसी दिल छू लेने वाली धुनें तैयार की हैं कि जिन्हें जब भी हम सुनते हैं, रोंगटे तो खड़े होते ही हैं, आँखें भी नम हुए बिना नहीं रह पातीं। राग आसावरी में निबद्ध इस गीत का संगीत संयोजन बिलकुल सरल और सीधा है। इसमें शास्त्रीय संगीत गायन की कठिन हरकतें नहीं है, बल्कि हर अन्तरे के लिए राग की एक अलग प्रगति होती चली जाती है, और यही इस गीत की ख़ासियत है जो इसके साथ सुनने वाले को बह जाने और गीत समाप्त होने तक इसकी तरफ़ खींचे रखने पर मजबूर करती है। इस गीत के अन्तरों को ध्यानपूर्वक सुनने पर इसके chord progression का आभास होता है। कुछ एक अपवादों को छोड़ कर, आम तौर पर किसी गीत के सभी अन्तरों के उतार-चढ़ाव एक जैसे ही होते हैं, पर इस गीत के चार अन्तरों को चार अलग तरीके से आसावरी के सुरों में ढाला गया है।
“जब घायल हुआ हिमालय, ख़तरे में पड़ी आज़ादी” से शुरू होकर “जब देश में थी दीवाली, वो खेल रहे थे होली”, फिर उसके बाद “कोई सिख कोई जाट मराठा, कोई गुर्खा कोई मद्रासी” और अन्त में “थी ख़ून से लथपथ काया, फिर भी बन्दूक उठा के”, हर एक अन्तरे की पंक्तियों का उतार-चढ़ाव और गायन शैली उन पंक्तियों के भाव के अनुसार रखा गया है। जब लता जी ऊँची पट्टी पर गाती हैं “ख़ुश रहना देश के प्यारों, अब हम तो सफ़र करते हैं”, यह जैसे कलेजा चीर कर रख देती है। कवि प्रदीप के इन अनमोल बोलों को सी. रामचन्द्र की धुनों ने उचित सम्मान दिया है। शब्द और धुन जैसे आपस में मिल कर एकाकार हो गए हों, और उस पर लता जी का मनमोहक गायन इस गीत को पूर्णता प्रदान करती है। राग आसावरी पर आधारित कुछ अन्य प्रचलित हिन्दी फ़िल्मी गीत हैं “चले जाना नहीं नैना मिलाके हाय संइया बेदर्दी” (बड़ी बहन, 1949), “जादू तेरी नज़र, ख़ुशबू तेरा बदन” (डर, 1993), “लो आ गई उनकी याद, वो नहीं आए” (दो बदन, 1966), “मुझे गले से लगा लो बहुत उदास हूँ मैं” (आज और कल, 1963) और “पिया ते कहाँ”, (तूफ़ान और दीया, 1956)। फ़िल्हाल आइए लता मंगेशकर की आवाज़ में सुनते हैं “ऐ मेरे वतन के लोगों”।रेडियो प्लेबैक इण्डिया
3 comments
सुजॉय दा, लेख पूरा नहीं पढ़ पा रहा हूँ, मगर प्राक्कथन पढ़ के ही द्रवित हो गया मन। निःसन्देह बहुत ही हॄदयस्पर्शी श्रद्धाजंलि है यह और असीम आदर दिवंगत विभूति के लिये।
स्वरगोष्ठी के लक्ष्य की तरफ़ अग्रसर रहने की बधाई। जल्द ही लेख पूरा पढ़ूंगा और फिर सम्भवतः दूजी टिप्पणी लिखूँ।
स्वरगोष्ठी के तनाम सुधि पाठकों को और प्लेबैक इंडिया के गणमान्य कर्णधारों, सदस्यों को सादर अभिवादन।
मिश्रा जी की कमी को तो पूरा नहीं किया जा सकता और न ही उन्हें कभी भुलाया जा सकता है, लेकिन उनके अधूरे रह गए कार्य को आगे बढ़ाने का जो दायित्व सुजॉय ने अपने कंधों पर लिया है, उसका निर्वहन करने में वो पूरी तरह सफल रहे हैं। सुजॉय को बधाई और शुभकामनाएं।
बहुत बहुत धन्यवाद शिशिर जी!