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उस्ताद राशिद खाँ |
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उस्ताद अमीर खाँ |
“रेडियो
प्लेबैक इण्डिया” के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी
श्रृंखला “पूर्वी थाट के राग” की दूसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब
संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत के अन्तर्गत
आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट-व्यवस्था है। भारतीय
संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग
होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5
स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट, रागों के वर्गीकरण की पद्धति है।
सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट
कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72
मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग
किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ
किया था। वर्तमान समय में रागों के वर्गीकरण के लिए यही पद्धति प्रचलित है।
भातखण्डे जी द्वारा प्रचलित ये 10 थाट हैं- कल्याण, बिलावल, खमाज, भैरव,
पूर्वी, मारवा, काफी, आसावरी, तोड़ी और भैरवी। इन्हीं 10 थाटों के अन्तर्गत
प्रचलित-अप्रचलित सभी रागों को सम्मिलित किया गया है। भारतीय संगीत में
थाट, स्वरों के उस समूह को कहते हैं जिससे रागों का वर्गीकरण किया जा सकता
है। पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में ‘राग तरंगिणी’ ग्रन्थ के लेखक
लोचन कवि ने रागों के वर्गीकरण की परम्परागत ‘ग्राम और मूर्छना प्रणाली’ का
परिमार्जन कर मेल अथवा थाट प्रणाली की स्थापना की। लोचन कवि के अनुसार उस
समय सोलह हज़ार राग प्रचलित थे। इनमें 36 मुख्य राग थे। सत्रहवीं शताब्दी
में थाटों के अन्तर्गत रागों का वर्गीकरण प्रचलित हो चुका था। थाट प्रणाली
का उल्लेख सत्रहवीं शताब्दी के ‘संगीत पारिजात’ और ‘राग विबोध’ नामक
ग्रन्थों में भी किया गया है। लोचन कवि द्वारा प्रतिपादित थाट प्रणाली का
प्रयोग लगभग 300 सौ वर्षों तक होता रहा। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम और
बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों में पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे ने
भारतीय संगीत के बिखरे सूत्रों को न केवल संकलित किया बल्कि संगीत के कई
सिद्धान्तों का परिमार्जन भी किया। भातखण्डे जी द्वारा निर्धारित दस थाट
में से पाँचवाँ थाट भैरव है। प्रत्येक थाट का एक आश्रय अथवा जनक राग होता
है और शेष जन्य राग कहलाते हैं। इस श्रृंखला में हम पूर्वी थाट के जनक और
जन्य रागों पर चर्चा करेंगे। आज के अंक में पूर्वी थाट के जन्य राग पूरिया
धनाश्री पर चर्चा करेंगे। आज हम श्रृंखला के इस दूसरे अंक में पहले हम आपको
सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ उस्ताद राशिद खाँ से इस राग में निबद्ध एक रचना
प्रस्तुत करेंगे और फिर इसी राग पर केन्द्रित एक फिल्मी गीत उस्ताद अमीर
खाँ के स्वर में सुनवाएँगे। 1952 में प्रदर्शित फिल्म “बैजू बावरा” से शकील
बदायूनी रचित और नौशाद का संगीतबद्ध किया एक गीत – “तोरी जय जय करतार…”
का रसास्वादन भी आप करेंगे।
के अन्तर्गत आने वाले कुछ प्रमुख राग हैं- ‘पूरिया धनाश्री’, ‘जैतश्री’,
‘परज’, ‘श्री’, ‘गौरी’, ‘वसन्त’ आदि। पूर्वी थाट के विभिन्न रागों में राग
पूरिया धनाश्री एक अत्यन्त लोकप्रिय राग है। राग पूर्वी की तरह राग पूरिया
धनाश्री भी सम्पूर्ण जाति का राग है, अर्थात इस राग के आरोह और अवरोह में
सभी सात स्वर इस्तेमाल किये जाते हैं। इसका ऋषभ और धैवत स्वर कोमल होता है
तथा मध्यम स्वर तीव्र होता है। आरोह के स्वर- नि, रे(कोमल), ग, म॑(तीव्र),
प, ध(कोमल), प, नि, सां और अवरोह के स्वर- रे(कोमल), नि, ध, प, म॑(तीव्र),
ग, म॑(तीव्र), रे, ग, रे, सा होते हैं। राग का वादी स्वर पंचम और संवादी
स्वर ऋषभ होता है। राग पूरिया धनाश्री के गायन-वादन का समय सायंकाल माना
जाता है। अब आप रामपुर सहसवान घराने की गायकी में दक्ष उस्ताद राशिद खाँ के
स्वर में राग पूरिया धनाश्री, तीनताल में निबद्ध एक लोकप्रिय खयाल रचना; “पायलिया झनकार मोरी…” सुनिए। इस प्रस्तुति में तबले पर विजय घाटे और हारमोनियम पर सुधीर नायक ने संगति की है।
आप राग पूरिया धनाश्री पर केन्द्रित एक फिल्मी गीत सुनिए। यह गीत हमने
फिल्म ‘बैजू बावरा’ से लिया है। अकबर के समकालीन कुछ ऐतिहासिक तथ्यों और
कुछ दन्तकथाओं के मिश्रण से बुनी 1952 में फिल्म- ‘बैजू बावरा’ प्रदर्शित
हुई थी। ऐतिहासिक कथानक और उच्चस्तर के संगीत से युक्त अपने समय की यह एक
सफलतम फिल्म थी। इस फिल्म को आज छह दशक बाद भी केवल इसलिए याद किया जाता है
कि इसका गीत-संगीत भारतीय संगीत के रागों पर केन्द्रित था। फिल्म के कथानक
के अनुसार अकबर के समकालीन सन्त-संगीतज्ञ स्वामी हरिदास के शिष्य तानसेन
सर्वश्रेष्ठ थे। परन्तु उनके संगीत पर दरबारी प्रभाव आ चुका था। उन्हीं के
समकालीन स्वामी हरिदास के ही शिष्य माने जाने वाले बैजू अथवा बैजनाथ थे,
जिसका संगीत मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण था। फिल्म के कथानक का निष्कर्ष
यह था कि संगीत जब राज दरबार की दीवारों से घिर जाता है, तो उसका लक्ष्य
अपने स्वामी की प्रशस्ति तक सीमित हो जाता है, जबकि मुक्त प्राकृतिक परिवेश
में पनपने वाला संगीत ईश्वरीय शक्ति से परिपूर्ण होता है। राग पूरिया
धनाश्री के स्वरों से पगा जो गीत आज हमारी चर्चा में है, उसका फिल्मांकन
अकबर के दरबारी संगीतज्ञ तानसेन को अपने महल में रियाज़ करते दिखाया गया था।
यह फिल्म का शुरुआती प्रसंग है। इसी गीत पर फिल्म की नामावली प्रस्तुत की
गई है। राग पूरिया धनाश्री में निबद्ध यह गीत सुविख्यात संगीतज्ञ उस्ताद
अमीर खाँ के स्वर में है। फिल्म के संगीतकार नौशाद थे। इस रचना में भी
तानसेन का नाम आया है। आप यह गीत सुनिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम
देने की अनुमति दीजिए।
के 442वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको वर्ष 1961 में प्रदर्शित एक
फिल्म के गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको दो अंक
अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के सही
उत्तर देना आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों
का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। इस वर्ष की
अन्तिम पहेली का उत्तर प्राप्त होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक
होंगे, उन्हें वर्ष 2019 के पाँचवें सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके
साथ ही पूरे वर्ष के प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में
महाविजेताओं की घोषणा की जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा।
पर ही शनिवार, 16 नवम्बर, 2019 की मध्यरात्रि तक भेज सकते हैं। इसके बाद
आपका उत्तर स्वीकार नहीं किया जाएगा। आपको यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक
प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते
हैं। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। “फेसबुक” पर पहेली का उत्तर
स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, प्रदेश और देश के नाम
के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के अंक संख्या 444 में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में
प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
के 440वें अंक की पहेली में हमने आपके लिए एक रागबद्ध गीत का एक अंश सुनवा
कर तीन प्रश्नों में से पूर्ण अंक प्राप्त करने के लिए कम से कम दो
प्रश्नों के सही उत्तर की अपेक्षा आपसे की थी। पहेली के पहले प्रश्न का सही
उत्तर है; राग – पूर्वी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – सितारखानी अथवा पंजाबी ठेका तथा तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – वाणी जयराम।
उपरोक्त सभी प्रतिभागियों को दो-दो अंक मिलते हैं। सभी विजेताओं को
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई। सभी प्रतिभागियों से
अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर ई-मेल से ही भेजा करें। इस
पहेली प्रतियोगिता में हमारे नये प्रतिभागी भी हिस्सा ले सकते हैं। यह
आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के सही उत्तर ज्ञात हो।
यदि आपको पहेली का कोई एक भी उत्तर ज्ञात हो तो भी आप इसमें भाग ले सकते
हैं।
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी
श्रृंखला “पूर्वी थाट के राग” की दूसरी कड़ी में आज आपने पूर्वी थाट के
जन्य राग पूरिया धनाश्री का परिचय प्राप्त किया। साथ ही इस शैली के
शास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए आपने सुविख्यात गायक उस्ताद रशीद खाँ से
इस राग में एक खयाल रचना का रसास्वादन किया। राग पूरिया धनाश्री पर
केन्द्रित रचे गए फिल्मी गीत के उदाहरण के लिए हमने आपके लिए सुप्रसिद्ध
संगीतज्ञ उस्ताद अमीर खाँ के स्वर में फिल्म “बैजू बावरा” का एक गीत
प्रस्तुत किया। अगले अंक में हम पूर्वी थाट के नए राग का परिचय प्रस्तुत
करेंगे। कुछ तकनीकी समस्या के कारण “स्वरगोष्ठी” की पिछली कुछ कड़ियाँ हम
“फेसबुक” पर अपने कुछ मित्र समूह पर साझा नहीं कर पा रहे थे।
संगीत-प्रेमियों से अनुरोध है कि हमारी वेबसाइट https://radioplaybackindia.com अथवा http://139.59.14.115/rpi/wordpress
पर क्लिक करके हमारे सभी साप्ताहिक स्तम्भों का अवलोकन करते रहें।
“स्वरगोष्ठी” पर हमारी पिछली कड़ियों के बारे में हमें अनेक पाठकों की
प्रतिक्रिया लगातार मिल रही है। हमें विश्वास है कि हमारे अन्य पाठक भी
“स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी प्रतिक्रिया
हमें भेजते रहेगे। आज के अंक और श्रृंखला के बारे में यदि आपको कुछ कहना हो
तो हमें अवश्य लिखें। हमारी वर्तमान अथवा अगली श्रृंखला के लिए यदि आपका
कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com
पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के
इसी मंच पर एक बार फिर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।
रेडियो प्लेबैक इण्डिया
राग पूरिया धनाश्री : SWARGOSHTHI – 442 : RAG PURIYA DHANASHRI : 10 नवम्बर, 2019
5 comments
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10 -11-2019) को दोनों पक्षों को मिला, उनका अब अधिकार (चर्चा अंक 3516) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (11-11-2019) को "दोनों पक्षों को मिला, उनका अब अधिकार" (चर्चा अंक 3516) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
"चर्चा अंक" में सम्मिलित करने पर आपका हार्दिक आभार, रवीन्द्र सिंह यादव जी।
कृष्णमोहन मिश्र
सम्पादक
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जी हाँ, बन्धुवर, "स्वरगोष्ठी" के लिए भारतीय संगीत पर हिन्दी में लिखने वालों का हार्दिक स्वागत है। कृपया अपना ई-मेल आईडी पोस्ट में दिए गए ई-मेल आईडी पर भेजिए या उक्त ई-मेल पर हमसे सम्पर्क भी कर सकते हैं। आपका स्वागत है।
सम्पादक