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विदुषी गिरिजा देवी |
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पण्डित छन्नूलाल मिश्र |
“रेडियो
प्लेबैक इण्डिया” के साप्ताहिक स्तम्भ “स्वरगोष्ठी” के मंच पर जारी हमारी
श्रृंखला – “वर्षा ऋतु के राग” की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप
सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आपको स्वरों के माध्यम से
बादलों की उमड़-घुमड़, बिजली की कड़क और रिमझिम फुहारों में भींगने के लिए
आमंत्रित करता हूँ। यह श्रृंखला, वर्षा ऋतु के रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत
पर केन्द्रित है। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपसे वर्षा ऋतु में
गाये-बजाए जाने वाले रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं पर चर्चा
करेंगे। इसके साथ ही सम्बन्धित राग के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी
प्रस्तुत करेंगे। भारतीय संगीत के अन्तर्गत मल्हार अंग के सभी राग पावस ऋतु
के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में समर्थ हैं। आम तौर पर इन रागों का
गायन-वादन वर्षा ऋतु में अधिक किया जाता है। इसके साथ ही कुछ ऐसे
सार्वकालिक राग भी हैं जो स्वतंत्र रूप से अथवा मल्हार अंग के मेल से भी
वर्षा ऋतु के अनुकूल परिवेश रचने में सक्षम होते हैं। यहाँ यह स्पष्ट कर
देना आवश्यक है कि केवल मल्हार नाम से कोई राग नहीं है। दरअसल मल्हार एक
अंग का नाम है। जब कोई राग इस अंग से संचालित होता है तब इसे मल्हार अंग का
राग कहलाता है। राग मेघ मल्हार, मियाँ मल्हार, गौड़ मल्हार सूर मल्हार,
रामदासी मल्हार आदि मल्हार अंग के प्रचलित राग हैं। इस श्रृंखला की सातवीं
कड़ी में आज हम आपसे कजरी गायन शैली पर चर्चा करेंगे। कजरी अथवा कजली मूलतः
लोक संगीत की विधा है, किन्तु इसके कुछ विशेष गुणों के कारण उपशास्त्रीय
संगीत के मंचों पर भी यह प्रतिष्ठित हुई। आज के अंक में हम कजरी गीतों के
उपशास्त्रीय रूप की चर्चा करेंगे। आज के अंक में हम आपको काशी के सुविख्यात
विद्वान बड़े रामदास की एक कजरी रचना को चार सुप्रसिद्ध संगीतज्ञों; विदुषी
गिरजा देवी, पण्डित रवि किचलू, पण्डित छन्नूलाल मिश्र और पण्डित विद्याधर
मिश्र के स्वरों में प्रस्तुत करेंगे।
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पण्डित विद्याधर मिश्र |
भारतीय संगीत की
प्रत्येक विधाओं में वर्षा ऋतु के गीत-संगीत उपस्थित हैं। लोक संगीत के
क्षेत्र में कजरी एक सशक्त विधा है। भारतीय पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास से
लेकर आश्विन मास तक पूरे चार महीने उत्तर प्रदेश के ब्रज, बुन्देलखण्ड, अवध
और पूरे पूर्वांचल और बिहार के प्रायः सभी हिस्से में कजरी गीतों की धूम
मची रहती है। मूल रूप से कजरी लोक-संगीत की विधा है, किन्तु उन्नीसवीं
शताब्दी के आरम्भ में जब बनारस (अब वाराणसी) के संगीतकारों ने ठुमरी को एक
शैली के रूप में अपनाया, उसके पहले से ही कजरी परम्परागत लोकशैली के रूप
विद्यमान रही। उपशास्त्रीय संगीत के रूप में अपना लिये जाने पर कजरी, ठुमरी
का एक अटूट हिस्सा बनी। इस प्रकार कजरी के मूल लोक-संगीत का स्वररोप और
ठुमरी के साथ रागदारी संगीत का हिस्सा बने स्वररोप का समानान्तर विकास हुआ।
आज के अंक में हम आपसे कजरी के रागदारी संगीत के कलासाधकों द्वारा अपनाए
गए स्वरूप पर चर्चा करेंगे।
लोक-संगीत के समृद्ध भण्डार में कुछ ऐसी संगीत शैलियाँ हैं, जिनका विस्तार
क्षेत्रीयता की सीमा से बाहर निकल कर, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर
पर हुआ है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी और मीरजापुर जनपद तथा उसके आसपास के
पूरे पूर्वाञ्चल क्षेत्र में कजरी गीतों की बहुलता है। वर्षा ऋतु के परिवेश
और इस मौसम में उपजने वाली मानवीय संवेदनाओं की अभियक्ति में कजरी गीत
पूर्ण समर्थ लोक-शैली है। शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत के कलासाधकों
द्वारा इस लोक-शैली को अपना लिये जाने से कजरी गीत आज
राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर सुशोभित है। आज की संगोष्ठी का
प्रारम्भ हम विश्वविख्यात गायिका विदुषी गिरिजा देवी की गायी, वर्षा ऋतु के
रस-रंग से अभिसिंचित एक कजरी से करते है। यह प्रस्तुति युगल गीत रूप में
है, जिसमें विदुषी गिरिजा देवी के साथ गायक पण्डित रवि किचलू के स्वर भी
है।
मूलतः
लोक-परम्परा से विकसित कजरी आज गाँव के चौपाल से लेकर प्रतिष्ठित
शास्त्रीय मंचों पर सुशोभित है। कजरी-गायकी को ऊँचाई पर पहुँचाने में अनेक
लोक-कवियों, साहित्यकारों और संगीतज्ञों का स्तुत्य योगदान है। कजरी गीतों
की प्राचीनता पर विचार करते समय जो सबसे पहला उदाहरण हमें उपलब्ध है, वह
है- तेरहवीं शताब्दी में हज़रत अमीर खुसरो रचित कजरी-‘अम्मा मोरे बाबा को
भेजो जी कि सावन आया…’। अन्तिम मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर की एक रचना-
‘झूला किन डारो रे अमरैया…’, आज भी गायी जाती है। कजरी को समृद्ध करने
में कवियों और संगीतज्ञों योगदान रहा है। भोजपुरी के सन्त कवि लक्ष्मीसखि,
रसिक किशोरी, शायर सैयद अली मुहम्मद ‘शाद’, हिन्दी के कवि अम्बिकादत्त
व्यास, श्रीधर पाठक, द्विज बलदेव, बदरीनारायण उपाध्याय ‘प्रेमधन’ की कजरी
रचनाएँ उच्चकोटि की हैं। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने तो ब्रज, भोजपुरी के
अलावा संस्कृत में भी कजरियों की रचना की है। भारतेन्दु की कजरियाँ विदुषी
गिरिजा देवी के स्वर में आज भी सुरक्षित है। आज के अंक में जो कजरी हम
प्रस्तुत कर रहे हैं, उसे बनारस घराने के विद्वान पण्डित बड़े रामदास ने रचा
है। विदुषी गिरिजा देवी और पण्डित रवि किचलू के युगल स्वरों में आपने बड़े
रामदास की रचना का रसास्वादन किया है। यही कजरी अब आप वर्तमान में विख्यात
गायक पण्डित छन्नूलाल मिश्र से सुनिए। श्री मिश्र ने अन्तिम अन्तरे में मल्हार अंग की झलक भी दिखाई है।
कवियों
और शायरों के अलावा कजरी को प्रतिष्ठित करने में अनेक संगीतज्ञों की
स्तुत्य भूमिका रही है। वाराणसी की संगीत परम्परा में बड़े रामदास जी का नाम
पूरे आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। उन्होने भी अनेक कजरियों की रचना
की थी। अब हम आपको बड़े रामदास जी द्वारा रचित उसी कजरी का एक बार फिर
रसास्वादन कराते है। इस कजरी को उन्हीं के प्रपौत्र और गायक पण्डित
विद्याधर मिश्र प्रस्तुत कर रहे हैं। विद्याधर जी बनारस घराने के
सुप्रसिद्ध विद्वान, बड़े रामदास जी के पौत्र और भातखण्डे संगीत
विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर पण्डित गणेशप्रसाद मिश्र के पुत्र हैं और
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। अब आप पण्डित विद्याधर मिश्र से
दादरा ताल में निबद्ध अपने प्रपितामह बड़े रामदास की यह कजरी सुनिए। इस कजरी
में आपको राग देस के साथ ही अन्य रागों की झलक भी मिलेगी आप यह कजरी सुनिए
और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
के 433वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको भारतीय वाद्य संगीत की एक
रचना अंश सुनवा रहे हैं। संगीत के इस अंश को सुन कर आपको दो अंक अर्जित
करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के सही उत्तर देना
आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों का उत्तर
ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। 440वें अंक की पहेली
का उत्तर प्राप्त होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें
वर्ष 2019 के चौथे सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष
के प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की
जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा।
पर ही शनिवार, 31 अगस्त, 2019 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि
उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली
प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। “फेसबुक” पर पहेली का उत्तर
स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, प्रदेश और देश के नाम
के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के अंक संख्या 435 में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में
प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
के 431वें अंक की पहेली में हमने आपसे वर्ष 1976 में प्रदर्शित फिल्म “शक”
के एक गीत का एक अंश सुनवा कर तीन प्रश्नों में से पूर्ण अंक प्राप्त करने
के लिए कम से कम दो प्रश्नों के सही उत्तर की अपेक्षा की थी। पहेली के
पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग – जयन्त मल्हार अथवा जयन्ती मल्हार, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – दादरा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – आशा भोसले।
उपरोक्त सभी प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक
बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर
ई-मेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नये प्रतिभागी भी
हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के
सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक भी उत्तर ज्ञात हो तो भी आप
इसमें भाग ले सकते हैं।
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी
श्रृंखला “वर्षा ऋतु के राग” की सातवीं कड़ी में आज आपने वर्षा ऋतु में
गाये जाने वाली संगीत शैली “कजरी” का परिचय प्राप्त किया। साथ ही इस राग के
उपशास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए आपको काशी के सुविख्यात विद्वान बड़े
रामदास की एक कजरी रचना को चार सुप्रसिद्ध संगीतज्ञों; विदुषी गिरजा देवी,
पण्डित रवि किचलू, पण्डित छन्नूलाल मिश्र और पण्डित विद्याधर मिश्र के
स्वरों में रसास्वादन किया। अगले अंक में हम कजरी गीतों अन्य विविध रूप की
चर्चा करेंगे। “स्वरगोष्ठी” पर हमारी पिछली कड़ियों के बारे में हमें अनेक
पाठकों की प्रतिक्रिया लगातार मिल रही है। हमें विश्वास है कि हमारे अन्य
पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी
प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेगे। आज के अंक और श्रृंखला के बारे में यदि आपको
कुछ कहना हो तो हमें अवश्य लिखें। हमारी वर्तमान अथवा अगली श्रृंखला के
लिए यदि आपका कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com
पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के
इसी मंच पर एक बार फिर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।
रेडियो प्लेबैक इण्डिय
कजरी गीत : SWARGOSHTHI – 433 : KAJARI SONGS : 1 सितम्बर, 2019
1 comment
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