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मेरी जन्म-तारीख 22 अगस्त 1924 छपती है। यह भूल है। तारीख ठीक है। सन् गलत है। सही सन् 1922 है। । ~ हरिशंकर परसाई (22 अगस्त, 1922 – 10 अगस्त, 1995) हर सप्ताह “बोलती कहानियाँ” पर सुनें एक नयी कहानी “जितना लाइट और लाउडस्पीकर वालों को दोगे, कम से कम उतना मुझ गरीब शास्ता* को दे देना।” |
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शर्म की बात पर ताली पीटना MP3
#Nineteenth Story, Purana Khiladi: Harishankar Parsai/Hindi Audio Book/2019/19. Voice: Sheetal Maheshwari
4 comments
शर्म की बात पर ताली पीट कर शायद लोग अपनी शर्म को ढांकना चाहते हैं..रोने की बात पर हँस कर अपना दुःख भुलाना..
बहुत सुंदर स्पष्ट वाचन… परसाई जी को नमन!
शीतल व रेडियो प्ले बैक इंडिया को बहुत बहुत बधाई व शुभकामनाएं
तो यह है शीतल की मौलिक आवाज . इतनी खुली आवाज और स्पष्ट उच्चारण ..वाह . परसाई जी के लिये तो करता कहें उन जैसा हास्य व्यंग्य दुर्लभ है .
परसाई जी के पास मनोविज्ञान नापने का पैमाना था। उनकी कलम आम आदमी के प्रत्येक क्षण का बुखार जानती थी। सहज भाषा में उनकी प्रस्तुति हास्य व्यंग साहित्य का सौंदर्य भी प्रकट करती थी। ऐसे साहित्यकार विरले होते हैं। किंतु परसाई जी के बाद हुए भी कहां..? शत शत नमन।