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उस्ताद अलाउद्दीन खाँ |
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लता मंगेशकर |
‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी
श्रृंखला “राग से रोगोपचार” की आठवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, इस
श्रृंखला के लेखक, संगीतज्ञ और इसराज तथा मयूरवीणा के सुविख्यात वादक
पण्डित श्रीकुमार मिश्र के साथ आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत
करता हूँ। मानव का शरीर प्रकृति की अनुपम देन है। बाहरी वातावरण के
प्रतिकूल प्रभाव से मानव के तन और मन में प्रायः कुछ विकृतियाँ उत्पन्न हो
जाती हैं। इन विकृतियों को दूर करने के लिए हम विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों
की शरण में जाते हैं। पूरे विश्व में रोगोपचार की अनेक पद्धतियाँ प्रचलित
है। भारत में हजारों वर्षों से योग से रोगोपचार की परम्परा जारी है।
प्राणायाम का तो पूरा आधार ही श्वसन क्रिया पर केन्द्रित होता है। संगीत
में स्वरोच्चार भी श्वसन क्रिया पर केन्द्रित होते हैं। भारतीय संगीत में 7
शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है।
इन्हीं स्वरों के संयोजन से राग की उत्पत्ति होती है। स्वर-योग या श्रव्य
माध्यम से गायन या वादन के सुरीले, भावप्रधान और प्रभावकारी नाद अर्थात
संगीत हमारे मस्तिष्क के संवेदनशील भागों में प्रवेश करता है। मस्तिष्क में
नाद के प्रभाव का विश्लेषण होता है। ग्राह्य और उपयोगी नाद को मस्तिष्क
सुरक्षित कर लेता है जहाँ नाद की परमाणु ऊर्जा के प्रभाव से सशक्त और उत्तम
कोटि के हारमोन्स का सृजन होता है। यह हारमोन्स शरीर की समस्त कोशिकाओं
में व्याप्त हो जाता है। इसकी ऊर्जा से अनेक मानसिक और मनोदैहिक समस्याओं
का उपचार सम्भव हो सकता है। इसके साथ ही चिकित्सक के सुझावानुसार औषधियों
का सेवन भी आवश्यक हो सकता है। मन की शान्ति, सकारात्मक तथा मृदु संवेदना
और भक्ति में एकाग्रता के लिए राग भैरवी के कोमल स्वर प्रभावकारी सिद्ध
होते हैं। इसी प्रकार विविध रागों के गातन-वादन के माध्यम से प्रातःकाल से
रात्रिकालीन परिवेश में प्रभावकारी होता है। अलग-अलग स्वर-भावों और गीत के
साहित्य के रसों के अनुसार उत्पन्न सशक्त भाव-प्रवाह के द्वारा डिप्रेशन,
तनाव, चिन्ताविकृति आदि मानसिक समस्याओं का उपचार सम्भव है। इस श्रृंखला
में हम विभिन्न रागो के स्वरो से उत्पन्न प्रभावों का क्रमशः विवेचन कर रहे
हैं। श्रृंखला की आठवीं कड़ी में आज हम राग मालगुंजी के स्वरो से विभिन्न
रोगों के उपचार पर चर्चा करेंगे और आपको उस्ताद अलाउद्दीन खाँ का वायलिन पर बजाया राग मालगुंजी एक दुर्लभ गत सुनवाएँगे।
इसके साथ ही “स्वरगोष्ठी” की परम्परा के अनुसार 1961 में प्रदर्शित फिल्म
“छोटे नवाब” से इसी राग में पिरोया एक मधुर गीत लता मंगेशकर के स्वर में
प्रस्तुत करेंगे।
के मुख्य स्वर हैं; रे, नि॒, सा, रे, ग, म। इनसे इस राग का प्रारम्भिक
दर्शन हो जाता है। इस राग को राग रागेश्वरी और राग बागेश्री का मिश्रण माना
जाता है। आरोह में कहीं-कहीं रागेश्वरी तो अवरोह में कहीं-कहीं बागेश्री
का आभास होता है। संगीत मार्तण्ड पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर के मतानुसार इस राग की
प्रकृति न गम्भीर है और न तरल है। वैचारिक अन्तर्द्वन्द्व, उलझन की
स्थितियों में इस राग के स्वर संवेदनात्मक रूप में प्रेरणा तथा मनोबल को
सुदृढ़ करने के साथ-साथ उन कष्टदायक स्थितियों का समाधान करने में सहयोगी
सिद्ध हो सकते हैं। उलझनों तथा मानसिक अन्तर्द्वन्द्व की स्थितियों के
साथ-साथ इनके प्रभावानुसार उत्पन्न मनोभौतिक समस्याओं; उच्चरक्तचाप का
बढ़ना, भूंख न लगना, अनिद्रा आदि का उपचार इस राग से सम्भव हो सकता है। राग
मालगुंजी के शास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए अब हम आपके लिए मैहर घराने
के संस्थापक उस्ताद अलाउद्दीन खाँ का वायलिन वादन प्रस्तुत कर रहे हैं।
यू-ट्यूब के सौजन्य से प्रस्तुत इस दुर्लभ वीडियो का अब आप रसास्वादन करें।
मालगुंजी का सम्बन्ध काफी थाट से माना जाता है। इसमें दोनों गान्धार और
दोनों निषाद प्रयोग किये जाते हैं। शुद्ध निषाद का प्रयोग अति अल्प किया
जाता है। अन्य स्वर शुद्ध प्रयोग होते हैं। आरोह में पंचम स्वर वर्जित होता
है और अवरोह में सातो स्वर प्रयोग किये जाते हैं। इसलिए यह षाडव-सम्पूर्ण
जाति का राग है। राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। इस
राग के गायन-वादन का अनुकूल समय रात्रि का दूसरा प्रहर है। सामान्यतः आरोह
में शुद्ध गान्धार और शुद्ध निषाद तथा अवरोह में कोमल गान्धार और कोमल
निषाद का प्रयोग किया जाता है। शुद्ध निषाद का अति अल्प प्रयोग केवल तार
सप्तक के साथ आरोह में किया जाता है। मन्द्र सप्तक के आरोहात्मक और
अवरोहात्मक दोनों प्रकार के स्वरों में कोमल निषाद का प्रयोग किया जाता है।
कुछ विद्वान केवल कोमल निषाद प्रयोग करते हैं, शुद्ध निषाद लगाते ही नहीं।
पंचम स्वर आरोह में वर्जित है और अवरोह में अल्प है। धैवत से मध्यम को आते
समय पंचम का कण लिया जाता है। शुद्ध निषाद का अल्पत्व, कोमल निषाद की
अधिकता, मध्यम स्वर का बहुत्व और पंचम स्वर का अल्पत्व तथा लगभग राग
बागेश्री के समान चलन होने के कारण इसे बागेश्री अंग का राग कहा जाता है।
राग मालगुंजी का वादी-संवादी क्रमशः मध्यम और षडज होने के कारण इसे रात्रि
12 बजे के बाद गाना-बजाना चाहिए, किन्तु इसे रात्रि 12 बजे से पूर्व
गाया-बजाया जाता है। अब हम प्रस्तुत कर रहे हैं; राग मालगुंजी पर आधारित एक
फिल्मी गीत। इसे हमने वर्ष 1961 में प्रदर्शित फिल्म “छोटे नवाब” से लिया
है। लता मंगेशकर के स्वर में प्रस्तुत उस गीत के संगीतकार राहुलदेव बर्मन
हैं। आप यह गीत सुनिए और हमें आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति
दीजिए।
के 379वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको वर्ष 1971 में प्रदर्शित एक
फिल्म से रागबद्ध गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको
दो अंक अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के
उत्तर देने आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों
का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। 380वें अंक
की ‘स्वरगोष्ठी’ तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें वर्ष 2018
के तीसरे सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के
प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की
जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा।
पर ही शनिवार, 11 अगस्त, 2018 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि
उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली
प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। “फेसबुक” पर पहेली का उत्तर
स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, प्रदेश और देश के नाम
के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 381वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में
प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
की 377वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको वर्ष 1953 में प्रदर्शित
फिल्म “अनारकली” के एक रागबद्ध गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से किसी
दो प्रश्न के उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग – रागेश्वरी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल कहरवा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – लता मंगेशकर।
की इस पहेली प्रतियोगिता में तीनों अथवा तीन में से दो प्रश्नो के सही
उत्तर देकर विजेता बने हैं; वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, नांदेड़ से भास्कर अमृतवार, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, कोटा, राजस्थान से तुलसीराम वर्मा, कल्याण, महाराष्ट्र से शुभा खाण्डेकर, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, मेरीलैण्ड, अमेरिका से विजया राजकोटिया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी।
उपरोक्त सभी प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक
बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर
ई-मेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नये प्रतिभागी भी
हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के
सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक उत्तर भी ज्ञात हो तो भी आप
इसमें भाग ले सकते हैं।
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी
महत्त्वाकांक्षी श्रृंखला “राग से रोगोपचार” की आठवीं कड़ी में आपने कुछ
शारीरिक और मनोशारीरिक रोगों के उपचार में सहयोगी राग मालगुंजी का परिचय
प्राप्त किया। आपने उस्ताद अलाउद्दीन खाँ द्वारा वायलिन पर प्रस्तुत राग
मालगुंजी का रसास्वादन किया। साथ ही आपने लता मंगेशकर की आवाज़ में इस राग
पर आधारित एक फिल्मी गीत फिल्म “छोटे नवाब” से सुना। हमें विश्वास है कि
हमारे अन्य पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और
अपनी प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेगे। आज के अंक के बारे में यदि आपको कुछ
कहना हो तो हमें अवश्य लिखें। हमारी वर्तमान अथवा अगली श्रृंखला के लिए यदि
आपका कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com
पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के
इसी मंच पर एक बार फिर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।
सम्पादन व प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
रेडियो प्लेबैक इण्डिया
1 comment
Ahaa, its good discussion on the topic of this piece of writing at this
place at this website, I have read all that,
so at this time me also commenting here.