स्वरगोष्ठी – 358 में आज
![]() ![]() |
डॉ. प्रभा अत्रे |
![]() ![]() |
लता मंगेशकर |
‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी
श्रृंखला – “पाँच स्वर के राग” की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब
संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला में हम आपसे
भारतीय संगीत के कुछ ऐसे रागों पर चर्चा कर रहे हैं, जिनमें केवल पाँच
स्वरों का प्रयोग होता है। भारतीय संगीत में रागों के गायन अथवा वादन की
प्राचीन परम्परा है। संगीत के सिद्धान्तों के अनुसार राग की रचना स्वरों पर
आधारित होती है। विद्वानों ने बाईस श्रुतियों में से सात शुद्ध अथवा
प्राकृत स्वर, चार कोमल स्वर और एक तीव्र स्वर; अर्थात कुल बारह स्वरो में
से कुछ स्वरों को संयोजित कर रागों की रचना की है। सात शुद्ध स्वर हैं;
षडज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद। इन स्वरों में से षडज और
पंचम अचल स्वर माने जाते हैं। शेष में से ऋषभ, गान्धार, धैवत और निषाद
स्वरों के शुद्ध स्वर की श्रुति से नीचे की श्रुति पर कोमल स्वर का स्थान
होता है। इसी प्रकार शुद्ध मध्यम से ऊपर की श्रुति पर तीव्र मध्यम स्वर का
स्थान होता है। संगीत के इन्हीं सात स्वरों के संयोजन से रागों का आकार
ग्रहण होता है। किसी राग की रचना के लिए कम से कम पाँच और अधिक से अधिक सात
स्वर की आवश्यकता होती है। जिन रागों में केवल पाँच स्वर का प्रयोग होता
है, उन्हें औड़व जाति, जिन रागों में छः स्वर होते हैं उन्हें षाडव जाति और
जिनमें सातो स्वर प्रयोग हों उन्हें सम्पूर्ण जाति का राग कहा जाता है।
रागों की जातियों का वर्गीकरण राग के आरोह और अवरोह में लगने वाले स्वरों
की संख्या के अनुसार कुल नौ जातियों में किया जाता है। इस श्रृंखला में हम
आपसे कुछ ऐसे रागों पर चर्चा कर रहे हैं, जिनके आरोह और अवरोह में
पाँच-पाँच स्वरों का प्रयोग होता है। ऐसे रागों को औड़व-औड़व जाति का राग कहा
जाता है। श्रृंखला की छठी कड़ी में आज हम आपके लिए औड़व-औड़व जाति के राग
चन्द्रकौंस का परिचय प्रस्तुत करेंगे। इसके साथ ही सुविख्यात गायिका विदुषी
प्रभा अत्रे के स्वरों में राग चन्द्रकौंस की एक बन्दिश के माध्यम से राग
के शास्त्रीय स्वरूप का दर्शन करा रहे हैं। राग चन्द्रकौंस के स्वरों का
फिल्मी गीतों में बहुत कम उपयोग किया गया है। राग चन्द्रकौंस के स्वरों पर
आधारित एक फिल्मी गीत का हमने चयन किया है। आज की कड़ी में हम आपको 1961 में
प्रदर्शित फिल्म “सम्पूर्ण रामायण” से वसन्त देसाई का स्वरबद्ध किया एक
गीत –“सन सनन सनन जा री ओ पवन…”, लता मंगेशकर के स्वर में सुनवा रहे हैं।
का राग “चन्द्रकौंस” है। इस राग में हम आपको दो रचनाएँ सुनवाएँगे। सबसे
पहले आप 1961 में प्रदर्शित “सम्पूर्ण रामायण” फिल्म से राग चन्द्रकौंस पर
आधारित एक मोहक गीत सुनेंगे। गीतकार भरत व्यास का लिखा और संगीतकार वसन्त
देसाई का स्वरबद्ध किया यह गीत है। फिल्मी गीतों में रागों का प्रयोग और इस
मामले में कभी भी समझौता न करने में संगीतकर वसन्त देसाई अग्रणी थे। फिल्म
संगीत की बदलती प्रवृत्तियों के बावजूद उन्होने अपने शुरुआती दौर से लेकर
वर्ष 1975 तक अपनी अन्तिम फिल्म “शक” तक अपने संगीत में रागों का साथ नहीं
छोड़ा। इस प्रतिबद्धता के कारण लोकप्रियता को एक कसौटी के र्रोप में बहुत
महत्वपूर्ण नहीं समझा गया और यही कारण है कि उनके लोकप्रिय गीतों की संख्या
बहुत अधिक नहीं है। आज का गीत लता मंगेशकर का गाया हुआ है। परन्तु वसन्त
देसाई कभी भी लता मंगेशकर पर आश्रित नहीं थे। लता मंगेशकर के बिना भी उनके
राग आधारित संगीत के बल पर आठवें दशक की फिल्म “गुड्डी” का गीत –“बोले रे पपीहरा…”
वाणी जयराम के स्वर में अत्यन्त लोकप्रिय हुआ था। ऐसे ही सिद्धान्तवादी,
स्वाभिमानी और आत्मविश्वास से परिपूर्ण संगीतकार वसन्त देसाई द्वारा
स्वरबद्ध राग चन्द्रकौंस पर आधारित गीत –“सन सनन सनन जा री ओ पवन…” लता मंगेशकर के स्वर में सुनिए।
रे प वर्जित, कोमल ग नि, औड़व कर विस्तार,
चन्द्रकौंस को भैरवी थाट का जन्य राग माना जाता है। इस राग में गान्धार और
धैवत स्वर कोमल लगाए जाते हैं। ऋषभ और पंचम स्वर पूर्णतः वर्जित होता है।
केवल पाँच स्वर का राग होने से इस राग की जाति औड़व-औड़व होती है। राग का
वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। राग चन्द्रकौंस का गायन-वादन
मध्यरात्रि के समय सर्वाधिक उपयुक्त माना जाता है। राग मधुवन्ती की तरह यह
भी आधुनिक राग है जिसकी रचना राग मालकौंस के कोमल निषाद को शुद्ध निषाद में
परिवर्तित करने से हुई है। यह राग भैरवी थाट के अन्तर्गत माना जाता है,
किन्तु सत्य तो यह है की राग चन्द्रकौंस पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे
द्वारा प्रवर्तित दस थाट में से किसी भी थाट के अन्तर्गत नहीं आता।
उच्चस्तर के कई राग हैं, जैसे अहीर भैरव, आनन्द भैरव, मधुवन्ती, चन्द्रकौंस
आदि, जो दस थाट में से किसी भी थाट के अन्तर्गत नहीं आते। राग चन्द्रकौंस
तीनों सप्तकों में समान रूप से प्रयोग किया जाता है और तीनों सप्तकों में
खिलता है। इस राग में विलम्बित व द्रुत खयाल, तराना आदि गाया जाता है,
किन्तु ठुमरी नहीं गायी जाती। इस राग को गाते-बजाते समय बीच-बीच में शुद्ध
निषाद प्रयोग करने की आवश्यकता होती है, इससे एक ओर राग चन्द्रकौंस के
स्वरूप की स्थापना होती है तो दूसरी ओर राग मालकौंस से बचाव भी होता रहता
है। राग के शास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए अब हम प्रस्तुत कर रहे हैं,
विदुषी प्रभा अत्रे के स्वर में भक्तिरस से परिपूर्ण एक खयाल रचना। यह रचना
एकताल में निबद्ध है। आप इस खयाल रचना का रसास्वादन कीजिए और मुझे आज के
इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
के 358वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक रागबद्ध फिल्मी गीत का
अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको दो अंक अर्जित करने के
लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के उत्तर देने आवश्यक हैं।
यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों का उत्तर ज्ञात हो तो भी
आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। 360वें अंक की ‘स्वरगोष्ठी’ तक जिस
प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें वर्ष 2018 के प्रथम सत्र का
विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के प्राप्तांकों की गणना
के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की जाएगी और उन्हें सम्मानित
भी किया जाएगा।
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर,
प्रदेश और देश के नाम के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 360वें अंक
में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक
के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना
चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे
दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
की 356वीं कड़ी में हमने आपको वर्ष 1966 में प्रदर्शित फिल्म “दिल दिया
दर्द लिया” के एक रागबद्ध फिल्मी गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से कम
से कम दो सही उत्तर की अपेक्षा की थी। पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर
है; राग – वृन्दावनी सारंग, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – तीनताल व कहरवा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – आशा भोसले और मुहम्मद रफी।
उपरोक्त सभी चार प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से
हार्दिक बधाई। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नये प्रतिभागी भी हिस्सा ले
सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के सही उत्तर
ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक उत्तर भी ज्ञात हो तो भी आप इसमें भाग
ले सकते हैं।
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी
श्रृंखला “पाँच स्वर के राग” की छठी कड़ी में आपने राग चन्द्रकौंस का परिचय
प्राप्त किया। इसके साथ ही राग के शास्त्रीय स्वरूप को समझने लिए विदुषी
डॉ. प्रभा अत्रे के स्वर में राग चन्द्रकौंस के एक द्रुत खयाल का रसास्वादन
किया था। साथ ही आपने फिल्म “सम्पूर्ण रामायण” से राग चन्द्रकौंस के
स्वरों में पिरोया एक मधुर गीत लता मंगेशकर के स्वर में सुना। पिछले अंक
में संगीतकार चाँद परदेशी का चित्र हम सबके लिए उपलब्ध कराने वाले पाठक
बीकानेर, राजस्थान के लक्ष्मीनारायण सोनी अब हमारे नियमित पाठक बन गए हैं।
हमें विश्वास है कि श्री सोनी “स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते
रहेंगे और अपनी प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेगे। आज के अंक के बारे में यदि
आपको कुछ कहना हो तो हमें अवश्य लिखें। अगले अंक में पाँच स्वर के एक अन्य
राग पर आपसे चर्चा करेंगे। इस नई श्रृंखला “पाँच स्वर के राग” अथवा आगामी
श्रृंखलाओं के लिए यदि आपका कोई सुझाव या फरमाइश हो तो हमें swargoshthi@gmail.com
पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के
इसी मंच पर एक बार फिर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।
रेडियो प्लेबैक इण्डिया