

प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर हमारे नई
श्रृंखला- “राग और गाने-बजाने का समय” की दूसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन
मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। है। उत्तर भारतीय
रागदारी संगीत की अनेक विशेषताओं में से एक विशेषता यह भी है कि संगीत के
प्रचलित राग परम्परागत रूप से ऋतु प्रधान हैं या प्रहर प्रधान। अर्थात
संगीत के प्रायः सभी राग या तो अवसर विशेष या फिर समय विशेष पर ही प्रस्तुत
किये जाने की परम्परा है। बसन्त ऋतु में राग बसन्त और बहार तथा वर्षा ऋतु
में मल्हार अंग के रागों के गाने-बजाने की परम्परा है। इसी प्रकार अधिकतर
रागों को गाने-बजाने की एक निर्धारित समयावधि होती है। उस विशेष समय पर ही
राग को सुनने पर आनन्द प्राप्त होता है। भारतीय कालगणना के सिद्धान्तों का
प्रतिपादन करने वाले प्राचीन मनीषियों ने दिन और रात के चौबीस घण्टों को आठ
प्रहर में बाँटा है। सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक के चार प्रहर को दिन
के और सूर्यास्त से लेकर अगले सूर्योदय से पहले के चार प्रहर को रात्रि के
प्रहर कहे जाते हैं। उत्तर भारतीय संगीत के साधक कई शताब्दियों से विविध
प्रहर में अलग-अलग रागों का परम्परागत रूप से प्रयोग करते रहे हैं। रागों
का यह समय-सिद्धान्त हमारे परम्परागत संस्कारों से उपजा है। विभिन्न रागों
का वर्गीकरण अलग-अलग प्रहर के अनुसार करते हुए आज भी संगीतज्ञ व्यवहार करते
हैं। राग भैरव का गायन-वादन प्रातःकाल और मालकौंस मध्यरात्रि में ही किया
जाता है। कुछ राग ऋतु-प्रधान माने जाते हैं और विभिन्न ऋतुओं में ही उनका
गायन-वादन किया जाता है। इस श्रृंखला में हम विभिन्न प्रहरों में बाँटे गए
रागों की चर्चा करेंगे। श्रृंखला की दूसरी कड़ी में आज हम आपसे दिन के
द्वितीय प्रहर के रागों पर चर्चा करेंगे और इस प्रहर के प्रमुख राग आसावरी
की एक बन्दिश महान संगीतज्ञ पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर के स्वरों में प्रस्तुत
करेंगे। इसके साथ ही राग तोड़ी पर आधारित, फिल्म ‘सन्त ज्ञानेश्वर’ का एक
गीत मन्ना डे की आवाज़ में सुनवा रहे हैं।
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एक संगीत सभा में पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर |
भारतीय
संगीत की एक प्रमुख विशेषता यह है कि प्रत्येक राग के गाने-बजाने का एक
निश्चित समय माना गया है। शास्त्रकारों ने विभिन्न स्वर-समूहों से उपजने
वाले भावों, अपने अनुभव, और मनोवैज्ञानिक आधार पर विभिन्न रागों के प्रयोग
का समय निर्धारित किया है। राग के समय निर्धारण के लिए कुछ सिद्धान्त बनाए
गए है। इस समय-चक्र सिद्धान्त के अनुसार ही रागों का गायन-वादन किया जाता
है। कुछ राग इस सिद्धान्त के अपवाद भी हैं तो कुछ राग सार्वकालिक भी हैं।
इसी प्रकार कुछ राग सन्धिप्रकाश बेला में ही गाये-बजाए जाते हैं तो कुछ राग
केवल ऋतु विशेष पर ही भले लगते हैं। समय के अनुसार रागों को दिन और रात के
कुल आठ प्रहरों में बाँटे गए हैं। पिछले अंक में हमने दिन के प्रथम प्रहर
के रागों पर चर्चा की थी और आपको सुबह के दो राग, भैरव और बिलावल का
रसास्वादन कराया था। आज हम आपको दिन के दूसरे प्रहर के रागों पर चर्चा
करेंगे। दिन का दूसरा प्रहर प्रातः 9 से मध्याह्न 12 बजे तक माना जाता है।
शास्त्रकारों ने रागों के समय-निर्धारण के लिए कुछ सिद्धान्त निश्चित किये
हैं। इन्हीं में से एक सिद्धान्त है, “अध्वदर्शक स्वर”। इस सिद्धान्त के
अनुसार राग का मध्यम स्वर महत्त्वपूर्ण हो जाता है। अध्वदर्शक स्वर
सिद्धान्त के अनुसार राग में यदि तीव्र मध्यम स्वर की उपस्थिति हो तो वह
राग दिन और रात्रि के पूर्वार्द्ध में गाया-बजाया जाएगा। अर्थात, तीव्र
मध्यम स्वर वाले राग 12 बजे दिन से रात्रि 12 बजे के बीच ही गाये-बजाए जा
सकते हैं। इसी प्रकार राग में यदि शुद्ध मध्यम स्वर हो तो वह राग रात्रि 12
बजे से दिन के 12 बजे के बीच का अर्थात उत्तरार्द्ध का राग माना गया। कुछ
राग इस सिद्धान्त के अपवाद भी होते हैं, जैसे- बसन्त, तोड़ी, भीमपलासी, देस
आदि।
के दूसरे प्रहार का एक अत्यन्त लोकप्रिय राग आसावरी है। इस राग में तीन
कोमल स्वर, गान्धार, धैवत और निषाद का प्रयोग किया जाता है। शेष सभी स्वर
शुद्ध प्रयोग होते हैं। राग आसावरी में शुद्ध मध्यम स्वर की उपस्थिति होने
से अध्वदर्शक स्वर सिद्धान्त के अनुसार यह राग मध्याह्न 12 बजे से पूर्व
गाया-बजाया जा सकता है। यह औड़व-सम्पूर्ण जाति का राग है, जिसका वादी स्वर
धैवत और संवादी स्वर गान्धार होता है। अब हम आपके लिए संगीत-मार्तण्ड
पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर का गाया राग आसावरी प्रस्तुत करते हैं। तीनताल में
निबद्ध इस बन्दिश में आपको पण्डित बलवन्त राव भट्ट के कण्ठ–स्वर और विदुषी
एन. राजम् की वायलिन संगति का आनन्द भी मिलेगा।
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मन्ना डे |
राग
आसावरी के अलावा दिन के दूसरे प्रहर के कुछ अन्य प्रमुख राग हैं- कोमल
देसी, खट, गान्धारी, गारा, गौड़ सारंग, जौनपुरी, देव गान्धार, देसी, बरवा,
बिलासखानी तोड़ी, गुर्जरी तोड़ी, तोड़ी, मध्यमात सारंग, मियाँ की सारंग, शुद्ध
सारंग, सामन्त सारंग, वृन्दावनी सारंग, सुघराई आदि। आज के अंक में दूसरे
प्रहर के रागों में से हमने राग तोड़ी का चयन इसलिए किया है कि इस राग में
तीव्र मध्यम स्वर का प्रयोग होता है। अध्वदर्शक स्वर सिद्धान्त के अनुसार
तीव्र मध्यम स्वर वाले राग मध्याह्न 12 बजे से मध्यरात्रि 12 के बीच प्रयोग
किये जाने चाहिए। परन्तु यह राग इस सिद्धान्त का अपवाद है। राग तोड़ी में
तीन कोमल स्वरों- ऋषभ, गान्धार, और धैवत की उपस्थिति के कारण दिन के दूसरे
प्रहर मे गाने-बजाने कि परम्परा है। राग तोड़ी सम्पूर्ण-सम्पूर्ण जाति का
राग है। अर्थात इसके आरोह और अवरोह में सात-सात स्वर प्रयोग किये जाते हैं।
इस राग में मध्यम स्वर तीव्र तथा ऋषभ, गान्धार और धैवत स्वर कोमल प्रयोग
होते हैं। अन्य सभी स्वर शुद्ध लगते हैं। राग का वादी स्वर धैवत और संवादी
स्वर गान्धार होता है। यह तोड़ी थाट का आश्रय राग है। राग तोड़ी की झलक
दिलाने के लिए अब हम आपको फिल्म ‘सन्त ज्ञानेश्वर’ से एक गीत सुनवा रहे
हैं। इस गीत को संगीतकार लक्ष्मीकान्त – प्यारेलाल ने राग तोड़ी के स्वरों
में स्वरबद्ध किया है और इसे स्वर दिया है मन्ना डे और साथियों ने। आप यह
गीत सुनिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
के संगीत पहेली क्रमांक 302 में आज हम आपको एक राग आधारित फिल्मी गीत का
अंश सुनवा रहे हैं। इस गीतांश को सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से
किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। पहेली क्रमांक 310 के सम्पन्न होने
तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें वर्ष 2017 के पहले सत्र
का विजेता घोषित किया जाएगा।
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन अन्तिम तिथि के
बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ क्रमांक 304 में प्रकाशित
करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत किये गए गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक के बारे
में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते
हैं तो हम आपका इस मंच पर स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
के 300वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको 1956 में प्रदर्शित फिल्म
‘जागते रहो’ के एक गीत का अंश सुनवाया था और आपसे तीन में से किसी दो
प्रश्न का उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग – भैरव, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल – कहरवा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है- गायिका – लता मंगेशकर।
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर
हमारी लघु श्रृंखला “राग और गाने-बजाने का समय” जारी है। ‘स्वरगोष्ठी’ की
पहेली के महाविजेताओं को समर्पित हमारे पिछले दो अंको के बारे में पहेली की प्रथम
महाविजेता, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया ने अपनी प्रतिक्रिया
व्यक्त करते हुए लिखा है-
you very much for all your good work to promote classical music through
Swargoshthi having film songs based on classical music. That is a great
service to music exposing the general public to some knowledge of
classical music through film songs they love.
am not a well-known person in classical music although I grew up in
musical environment with also the training. My objective has been to
take classical music to deeper level and connect to spirituality in
meditation. I have spent all my extra time in learning and teaching
music, performing at times appropriate. I am very grateful to you for
considering me a winner on Swargoshthi.
जी के प्रति हम हार्दिक आभार प्रकट करते हैं। अगले अंक में हम दिन के तीसरे प्रहर के कुछ
रागों पर चर्चा करेंगे और आपको कुछ रागबद्ध रचनाएँ भी सुनवाएँगे। इस
श्रृंखला के लिए आप अपने पसन्द के गीत, संगीत और राग की फरमाइश कर सकते
हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के विभिन्न अंकों के बारे में हमें पाठकों, श्रोताओं और
पहेली के प्रतिभागियों की अनेक प्रतिक्रियाएँ और सुझाव मिलते हैं। प्राप्त
सुझाव और फरमार्इशों के अनुसार ही हम अपनी आगामी प्रस्तुतियों का निर्धारण
करते हैं। आप भी यदि कोई सुझाव देना चाहते हैं तो आपका स्वागत है। अगले
रविवार को प्रातः 8 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के नये अंक के साथ हम उपस्थित होंगे।
हमें आपकी प्रतीक्षा रहेगी।
रेडियो प्लेबैक इण्डिया