

प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर इन दिनों
हमारी श्रृंखला – ‘मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन’ जारी है। श्रृंखला की
छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र अपने साथी सुजॉय चटर्जी के साथ आप सभी
संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। यह श्रृंखला आप तक पहुँचाने
के लिए हमने फिल्म संगीत के सुपरिचित इतिहासकार और ‘रेडियो प्लेबैक
इण्डिया’ के स्तम्भकार सुजॉय चटर्जी का सहयोग लिया है। हमारी यह श्रृंखला
फिल्म जगत के चर्चित संगीतकार मदन मोहन के राग आधारित गीतों पर केन्द्रित
है। श्रृंखला के प्रत्येक अंक में हम मदन मोहन के स्वरबद्ध किसी राग आधारित
गीत की चर्चा और फिर उस राग की उदाहरण सहित जानकारी दे रहे हैं। श्रृंखला
की छठी कड़ी में आज हम आपको राग पहाड़ी के स्वरों में पिरोये गए 1950 में
प्रदर्शित फिल्म ‘आँखें’ के एक गीत का रसास्वादन कराएँगे। इस राग आधारित
गीत को स्वर दिया है, तत्कालीन पार्श्वगायिका मीना कपूर ने। संगीतकार मदन
मोहन द्वारा राग पहाड़ी के स्वर में निबद्ध फिल्म ‘आँखें’ के इस गीत के साथ
ही राग का यथार्थ स्वरूप उपस्थित करने के लिए हम सुविख्यात गायिका विदुषी
परवीन सुलताना के स्वरों में राग पहाड़ी की एक मनभावन रचना भी प्रस्तुत कर
रहे हैं।
मोहन के संगीत सफ़र के शुरुआत की कहानी में हम पिछले अंक में आ पहुँचे थे
उस मुकाम पर जहाँ मदन जी सचिनदेव बर्मन और श्यामसुन्दर जैसे संगीतकारों के
सहायक के रूप में काम करने लगे थे। वह 1948-49 का समय था। इसके एक साल के
भीतर ही उन्हें मौक़ा मिल गया फ़िल्म में स्वतन्त्र रूप से संगीत देने का।
फ़िल्म थी 1950 की ’आँखें’। पूरी टीम नई थी। फ़िल्म के नायक थे शेखर जो मदन
जी के दिल्ली के मित्र थे। फ़िल्म के निर्देशक थे देवेन्द्र गोयल, और वो भी
इस फ़िल्म से अपने पारी की शुरुआत कर रहे थे। देवेन्द्र गोयल फ़िल्म के
निर्माता भी थे। बिल्कुल नई अनभिज्ञ टीम होने की वजह से मदन मोहन को इस
फ़िल्म से ख़ास उम्मीद नहीं थी। यहाँ तक कि उन्हें लग रहा था कि फ़िल्म शायद
पूरी भी नहीं हो सकेगी। मदन मोहन कुछ फ़िल्म वितरकों को जानते थे। उन्होंने
एक तरीक़ा सोचा फ़िल्म को बेचने का। उन्होंने देवेन्द्र गोयल से कह कर उन
वितरकों को चर्चगेट के एक रेस्तोराँ में चाय पर बुलवाया और वहाँ से
चाय-पर्व समाप्त होने के बाद सब को लेकर मरीन ड्राइव के प्राचीर पर जा कर
बैठे और वहाँ बैठे-बैठे उन्होंने उन सभी को इस फ़िल्म के लिए उनके बनाए
गीतों को गा गा कर सुनाया। गीतों को सुन कर उन वितरकों को इतना अच्छा लगा
कि उनमें से कई वितरकों ने अपने अपने इलाकों के लिए फ़िल्म वितरण के अधिकार
के अनुबन्ध पर हस्ताक्षर कर दिए। इस तरह से ’आँखें’ का निर्माण पूरा हुआ।
अपनी गायकी और संगीत का नमूना पेश करने की वजह से ही देवेन्द्र गोयल अपनी
इस फ़िल्म को बेच सके, वरना फ़िल्म का क्या अंजाम होता कहना मुश्किल है।
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मीना कपूर |
फ़िल्म
’आँखें’ के गीतों के लिए मदन मोहन को भले मुकेश और मोहम्मद रफ़ी जैसे गायक
मिले, पर उनकी तीव्र इच्छा थी कि लता मंगेशकर भी उनकी फ़िल्म में गाए। यही
इच्छा लेकर मदन मोहन पहुँचे लता जी के घर। जैसा कि हम चर्चा कर चुके हैं कि
मदन मोहन और लता का इससे पहले सामना हो चुका है फ़िल्म ’शहीद’ के गीत की
रेकॉर्डिंग पर। इन तीन सालों में लता काफ़ी उपर जा चुकी थीं। मदन मोहन बताते
हैं, “जब ’आँखें’ निर्माणाधीन थी, तब हर किसी ने उन्हें हतोत्साहित
किया, स्टुडियो स्टाफ़ और इसी फ़िल्म के लिए काम कर रहे टेक्निशियन्स आदि ने
भी। जब वो लता जी के पास पहुँचे तो लता जी ने मेरे लिए गाने से मना कर
दिया। कुछ ऐसा हुआ था कि कुछ लोगों ने उनके कान भर दिए थे कि मैं ना तो कोई
अच्छा संगीतकार हूँ और फ़िल्म भी बेकार है, इसलिए उन्हें इस फ़िल्म में नहीं
गाना चाहिए।” मदन मोहन उस दिन लता जी को राज़ी करवाने में असमर्थ रहे।
लेकिन जैसे ही इस फ़िल्म के गाने रेडियो पर बजने लगे, लता जी को यह अहसास हो
गया कि वो ग़लत थीं। मदन मोहन की दूसरी फ़िल्म ’मदहोश’ से ही लता और उनका
ऐसा रिश्ता जमा कि बाकी इतिहास है। ’मदहोश’ के गानें हिट होने के बाद लता
जी ने मदन मोहन को ना सिर्फ़ बधाई दी बल्कि उनसे माफ़ी भी माँगी। और दोनों ने
एक दूसरे से यह वादा किया कि हमेशा उनकी यह भाई-बहन की जोड़ी कायम रहेगी।
ख़ैर, फ़िल्म ’आँखें’ के गीतों के लिए शमशाद बेगम का नाम चुना गया। पर एक गीत
ऐसा था जिसमें राग पहाड़ी की छाया थी। इस गीत के लिए गायिका मीना कपूर को
चुना गया जो उन दिनों कई फ़िल्मों में गीत गा रही थीं। इस तरह से फ़िल्म
’आँखें’ का यह गीत रेकॉर्ड हुआ। आगे चलकर मदन मोहन ने राग पहाड़ी पर कई गीत
रचे, जैसे कि फ़िल्म ’हीर-राँझा’ का “दो दिल टूटे, दो दिल हारे…” या ’वो कौन थी’ का मशहूर गीत “लग जा गले कि फिर यह हसीं रात हो ना हो…”। पर फ़िल्म ’आँखें’ का यह गीत उनके लिए बहुत ख़ास रहा क्योंकि यह उनकी पहली फ़िल्म की पहली राग आधारित रचना थी।
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परवीन सुलताना |
यह
मान्यता है की प्रकृतिजनित, नैसर्गिक रूप से लोक कलाएँ पहले उपजीं,
परम्परागत रूप में उनका क्रमिक विकास हुआ और अपनी उच्चतम गुणवत्ता के कारण
ये शास्त्रीय रूप में ढल गईं। प्रदर्शनकारी कलाओं पर भरतमुनि प्रवर्तित
ग्रन्थ ‘नाट्यशास्त्र’ को पंचमवेद माना जाता है। नाट्यशास्त्र के प्रथम
भाग, पंचम अध्याय के श्लोक संख्या 57 में ग्रन्थकार ने स्वीकार किया है कि
लोक जीवन में उपस्थित तत्वों को नियमों में बाँध कर ही शास्त्र प्रवर्तित
होता है। श्लोक का अर्थ है कि इस चर-अचर में उपस्थित जो भी दृश्य-अदृश्य
विधाएँ, शिल्प, गतियाँ और चेष्टाएँ हैं, वह सब शास्त्र रचना के मूल तत्त्व
हैं। भारतीय संगीत के कई रागों का उद्गम लोक संगीत से हुआ है। इन्हीं में
से एक है, राग पहाड़ी, जिसकी उत्पत्ति भारत के पर्वतीय अंचल में प्रचलित लोक
संगीत से हुई है। यह राग बिलावल थाट के अन्तर्गत माना जाता है। राग पहाड़ी
में मध्यम और निषाद स्वर बहुत अल्प प्रयोग किया जाता है। इसीलिए राग की
जाति का निर्धारण करने में इन स्वरों की गणना नहीं की जाती और इसीलिए इस
राग को औड़व-औड़व जाति का मान लिया जाता है। राग का वादी स्वर षडज और संवादी
स्वर पंचम होता है। इसका चलन चंचल है और इसे क्षुद्र प्रकृति का राग माना
जाता है। इस राग में ठुमरी, दादरा, गीत, ग़ज़ल आदि रचनाएँ खूब मिलती हैं। आम
तौर पर गायक या वादक इस राग को निभाते समय रचना का सौन्दर्य बढ़ाने के लिए
विवादी स्वरों का उपयोग भी कर लेते हैं। मध्यम और निषाद स्वर रहित राग
भूपाली से बचाने के लिए राग पहाड़ी के अवरोह में शुद्ध मध्यम स्वर का प्रयोग
किया जाता है। मन्द्र धैवत पर न्यास करने से राग पहाड़ी स्पष्ट होता है। इस
राग के गाने-बजाने का सर्वाधिक उपयुक्त समय रात्रि का पहला प्रहर माना
जाता है। राग पहाड़ी के स्वरूप को स्पष्ट रूप से अनुभव करने के लिए अब आप
इसी राग में सुनिए, कण्ठ संगीत की एक आकर्षक रचना। इसे प्रस्तुत कर रही
हैं, सुप्रसिद्ध गायिका विदुषी बेगम परवीन सुलताना। आप राग पहाड़ी की यह
ठुमरी अंग की रचना सुनिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की
अनुमति दीजिए।
के 273वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको फिर एक बार मदन मोहन के राग
आधारित फिल्मी गीत का एक अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको
निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं।
‘स्वरगोष्ठी’ के 280वें अंक की पहेली के सम्पन्न होने के बाद जिस प्रतिभागी
के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष के तीसरे सत्र (सेगमेंट) का विजेता
घोषित किया जाएगा।
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम
‘स्वरगोष्ठी’ के 275वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और
प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
क्रमांक 271 की संगीत पहेली में हमने आपको वर्ष 1959 में प्रदर्शित फिल्म
‘चाचा ज़िन्दाबाद’ से राग आधारित फिल्मी गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे तीन
प्रश्न पूछा था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। पहेली के
पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग – ललित, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल – तीनताल और तीसरे प्रश्न का उत्तर है- पार्श्वगायक – लता मंगेशकर और मन्ना डे।
बार की संगीत पहेली में अधिकतर प्रतिभागियों ने तीनों प्रश्नों का सही
उत्तर देकर विजेता बनने का गौरव प्राप्त किया है। ये विजेता हैं – हैदराबाद
से डी. हरिणा माधवी, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी और वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया। पहेली के सभी पाँच विजेताओं को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ में आप हमारी
श्रृंखला ‘मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन’ का रसास्वादन कर रहे हैं। इस
श्रृंखला में हम फिल्म संगीतकार मदन मोहन के कुछ राग आधारित गीतों को चुन
कर आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। आज की इस कड़ी में हमने आपसे राग पहाड़ी के
बारे में चर्चा की। ‘स्वरगोष्ठी’ साप्ताहिक स्तम्भ के बारे में हमारी एक
पाठक और श्रोता मुंबई से शैलजा शितुत ने हमसे एक सवाल किया है-
mukesh ji mujase rag hemavati kebareme jankari chahiye kaunsa that hai
hindi gana jayeye ao kaha jate ho .ragka chalan aur kisragse najadik hai
please batayeye muje gana bajana hai sitarpar aur rag bajana hai”
पद्यति का राग है। यह इसी नाम से प्रचलित 58वाँ मेलकर्ता राग है। इस राग
में गान्धार और निषाद स्वर कोमल और शेष सभी स्वर शुद्ध लगते हैं। इसके आरोह
के स्वर हैं – सा रे ग(कोमल) म प ध नि(कोमल) सां तथा अवरोह के स्वर हैं – सां नि(कोमल) ध प म ग(कोमल)
रे सा। इस राग पर आधारित एक फिल्मी गीत का उल्लेख भी मिलता है। 1965 में
प्रदर्शित फिल्म ‘मेरे सनम’ का गीत है- “जाइए आप कहाँ जाएंगे, ये नज़र लौट
के फिर आएगी…”। गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी और संगीतकार ओ.पी. नैयर हैं।
सुप्रसिद्ध सितार वादक उस्ताद अब्दुल हलीम जाफ़र खाँ के अनुसार इस गीत में
राग हेमवती के साथ राग ‘सिंहेन्द्र मध्यम’ और राग ‘सरस्वती’ का स्पर्श भी
है। कुछ विद्वान इस गीत को राग ‘पीलू’ के निकट मानते हैं। राग हेमवती अथवा हेमावती का स्वरूप स्पष्ट करने के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें।
पर आप भी अपने सुझाव और फरमाइश हमें भेज सकते है। हम आपकी फरमाइश पूर्ण
करने का हर सम्भव प्रयास करेंगे। आपको हमारी यह श्रृंखला कैसी लगी? हमें
ई-मेल अवश्य कीजिए। अगले रविवार को एक नई श्रृंखला के नए अंक के साथ प्रातः
8 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत
करेंगे।
3 comments
बहुत ही ज्ञान वर्धक व प्रशंसनीय पहल ,आभार ।
Very beautifully presented Raag Hemavati. Thank you for sharing.
जैसा चाहता था वैसा ब्लॉग जुड़ने को मिल गया…. बहुत ही उपयोगी और रसपूर्ण जानकारी