भाग-3




थी एक के बाद एक। मुझे अफ़सोस हो रहा था कि उनका माली नुकसान हो रहा है, उस वक़्त वो स्ट्रगल ही कर रहे थे। एक दिन मेरी उनके साथ रेकॉर्डिंग् थी और मैंने उ्नसे इस बारे में बात की। शुरु शुरु में तो वो हिचकिचा रहे थे मुझे बताने से, लेकिन फिर बोले। उसकी नाभी खिसक रही थी। मैंने पूछा कि क्या सिर्फ़ यही बात है? इसका हल आपके घर के औरतों को ज़रूर पता होगा। औरतों में यह आम बीमारी है। मैंने उनसे कहा, हार पिरोने वाला सूत सात दफ़ा इकट्ठा करो और पैर के बड़े अंगूठे से लूज़-टाइट बाँध दो। यह नुसखा उनके काम आ गई। और उन्होंने मुझे इस इलाज के लिए शुक्रिया भी कहा। मैं हमेशा लोगों की मदद करना चाहती थी। मैंने चित्रगुप्त जी के करीयर को भी दुबारा उपर लाना चाहा उनके लिए स्टण्ट फ़िल्मों में गा गा कर जैसे कि ’सिंदबाद जहाज़ी’, हालाँकि लोगों ने मुझे चेतावनी दी थी कि ऐसा करना मेरे लिए अच्छा नहीं होगा क्योंकि मेन-स्ट्रीम सिंगर्स के लिए ऐसी फ़िल्मों में गाना करीयर के लिए ठीक नहीं। इस तरह की फ़िल्मों में दूसरी स्तर की गायिकाएँ गाती हैं। नाशाद ने भी बुरा वक़्त देखा है। मैंने उनके लिए ’दादा’ में गाया था। 1953 में मैंने उनके लिए ’नगमा’ फ़िल्म के लिए बूकिंग् दी थी जिसने उनके करीयर को बढ़ावा दिया। आज तक वो मेरे उस गीत “काहे जादू किया जादूगर बालमा” के लिए याद किए जाते हैं!
शुक्रिया अदा किया, लेकिन बाद में बहुत सालों के बाद जब मिले तो अफ़सोस ज़ाहिर की और माफ़ी भी माँगी कि उन्होंने मेरे लिए कुछ कर नहीं सके। मैंने मदन मोहन, सी. रामचन्द्र, ओ. पी. नय्यर और भी कई नए नए संगीतकारों की शुरुआती फ़िल्मों में गाया। इन संगीतकारों के इन शुरुआती गीतों ने उन्हें इंडस्ट्री में स्थापित किया। मैं ख़ुशक़िस्मत हूँ कि अल्लाह ने मुझे मौक़ा दिया कि दूसरों की मदद करूँ, बिना किसी ख़ुद के फ़ायदे के।
एक बार नहीं बल्कि दो बार बढ़ावा दिया था। पहली बार की बात तो मम्मी बता चुकी हैं। मेरे डैडी का 1955 में अचानक इन्तकाल हो गया, जिससे मेरी मम्मी को बहुत बड़ा शौक लगा। वो हमेशा रोती रहती थीं, अल्लाह को याद करती रहती थीं। लगभग एक साल तक उन्होंने कोई गाना नहीं गाया। उस समय महबूब ख़ान ’मदर इण्डिया’ पर काम कर रहे थे। उनकी इच्छा थी कि बस मम्मी ही उनकी फ़िल्म के लिए गाए। नौशाद साहब ने उन्हें बताया कि मम्मी तो आजकल गा नहीं रही हैं, फिर भी महबूब साहब ने नौशाद साहब से कहा कि आप उनसे दरख्वास्त कीजिए कि वो गाने के लिए तैयार हो जाएँ। लेकिन मम्मी ने नौशाद साहब को ना कह दिया। उस पर नौशाद साहब ने कहा कि अगर आप नहीं चलेंगी तो मैं आपको ज़बरदस्ती उठा ले जाऊँगा।
ज़िद करने लगी कि रेकॉर्डिंग् पे जाएगी। मैंने पूछा कि ऐसी क्या मजबूरी है ऐसी हालत में रेकॉर्डिंग् पे जाने की? क्या आपको पैसों की ज़रूरत है? तो वो हँसने लगी और कहा कि बेटा, मैं वहाँ म्युज़िशियनों के लिए जा रही हूँ। जब रेकॉर्डिंग् कैन्सल हो जाती है तो उन्हें ख़ाली हाथ घर लौटना पड़ता है और भूखे पेट भी कई दफ़ा रहने पड़ते हैं। उनके दिल में मेरे लिए बहुत इज़्ज़त है और मेरे रेकॉर्डिंग् पर बजा कर उन्हें बहुत ख़ुशी मिलती है। वो कहते कि अगर आज वो आ रही हैं तो हमें भी आज खाना मिलेगा। उन लोगों ने मुझे ऐसी इज़्ज़त दी है कि मैं उन्हें निराश या तकलीफ़ नहीं पहुँचा सकती। इसलिए मैं हमेशा रेकॉर्डिंग् पर जाती हूँ, यह ज़रूरी नहीं कि मैं क्या फ़ील कर रही हूँ। इस तरह की इंसान हैं ये। इन्होंने हमेशा सादगी भरी ज़िन्दगी जी है और पूरे समर्पण के साथ काम किया है।
पुरस्कार ग्रहण करवाने दिल्ली ले गए थे तब ये बहुत ख़ुश थीं और बहुत सुन्दर तरीके से इसे प्राप्त किया। पर जैसी उनकी प्रोफ़ेशनल आदत थी कि रेकॉर्डिंग् स्टुडियो से सीधे घर चली आती थी, वहाँ भी पुरस्कार लेने के बाद वापस चले आने के लिए अधीर हो उठीं। वहाँ बहुत से लोग आए उन्हें बधाई देने के लिए। गुरशरण कौर (प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह की पत्नी) बहुत अच्छे से हमसे मिलीं। अक्षय कुमार और ऐश्वर्या राय को भी पद्म पुरस्कार मिला था, वो दोनों आए मम्मी से आशिर्वाद लेने। एक मज़ेदार क़िस्सा भी उस पार्टी में आगे चलकर। मम्मी को फ़िल्में देखने का ज़्यादा शौक़ नहीं था। अगर आप ’मुग़ल-ए-आज़म’ या ’मदर इण्डिया’ के प्रीमियर की बात करें तो उसमें उन फ़िल्मों से जुड़े सभी लोग शामिल थे एक मम्मी को छोड़ कर। जया बच्चन जी उन्हें बधाई देने के लिए आए और कहा कि मैं आपकी बहुत बड़ी फ़ैन हूँ, जिसके जवाब में मम्मी ने फ़ौरन कहा कि मैं भी आपकी बड़ी फ़ैन हूँ। और यह मम्मी दिल से और ईमानदारी से बोल रही थीं। मम्मी जो आम तौर पर फ़िल्में नहीं देखती, जया जी की अदाकारी की वजह से ’ख़ामोशी’ पूरे तीन बार देखी थी।
इस साक्षात्कार के 16 महीने बाद, 23 अप्रैल 2013 के दिन 94 वर्ष की आयु में शमशाद बेगम ने इस दुनिया-ए-फ़ानी को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। आज शमशाद बेगम ज़िन्दा हैं अपने गीतों के ज़रिए और हमेशा ज़िन्दा रहेंगी!
अनुवाद एवं प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी