यूं तो रफ़ी साहब का हर गीत दिल के तार झनझना जाता है. पर उनके नन्हें मुन्ने बच्चों को संबोधित कर गाये हुए गीतों को सुनकर तो लगता है जैसे बचपन लौट आया हो. तो आईये आधे घंटे के लिए अपनी दौड़ भाग वाली ज़िन्दगी को ज़रा सा थाम कर बचपन की गलियों में फेरा लगा आईये, रफ़ी साहब की आवाज़ के साथ. यक़ीनन आप अच्छा महसूस करेगें. स्किप्ट है सजीव सारथी की और प्रस्तुति है विवेक श्रीवास्तव की
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