‘चित्रशाला – 7 (विशेष प्रस्तुति)
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विश्व के सर्वोच्च मिलिटरी ज़ोन सियाचेन पर तैनात भारतीय जवान |
सियाचेन में शहीद हुए हमारे जवानों की शान में इनसे बेहतर शायद कोई पंक्तियाँ नहीं! विविध भारती की उद्घोषक ममता सिंह कहती हैं, “हमें अपने बच्चों को सिखाना चाहिए कि जब हम चॉकलेट केक पोपकोर्न खा रहे हैं, टेलीविज़न पर नोबिता, छोटा भीम, मिकी माउस देख रहे हैं, उस वक़्त कुछ बच्चों के पापा सरहद पर तैनात हैं और देश की हिफ़ाज़त कर रहे हैं। वो फोन पर उनसे कहते हैं, अगली बार आना तो हेलीकॉप्टर ले आना। अगली बार न हेलीकॉप्टर आता है। न पापा।”
यूनुस ख़ान के शब्दों में, “आम जिंदगी में कितनी बार याद आता है कि हमारे फौजी सरहदों पर बेहद मुश्किल हालात में अपना फ़र्ज़ निभा रहे हैं। मुश्किल ड्यूटी, अकेलापन, तकलीफें और परिवार की याद। हम विलाप करते हैं, नारेबाज़ी करते हैं, शहीद का दर्जा देते हैं और अपने सुखों में जिये चले जाते हैं। पल भर का अफ़सोस। पल भर की आह। पल भर का विलाप। हनुमंतप्पा को आखिरी सलाम! उन फौजियों को भी सैल्यूट जो इस वक्त खंदकों में, पहाड़ों पर, रेगिस्तानों में, बर्फ पर तैनात हैं। अपने सुख में डूबे जीते हुए हमें हर पल याद रहे, बंदूक और रेडियो के संग पैनी निगाहें आपकी हिफ़ाज़त कर रही हैं।”
इस लेख को लिखते हुए शब्द नहीं मिल रहे हैं क्या लिखें, सिवाय इसके कि ईश्वर उन दस वीर शहीदों की आत्माओं को शान्ति दे, उनके परिवार को इस क्षति से उबरने का साहस व मौक़ा दे, उनके बच्चों को अपने पैरों पर खड़े होने का अवसर दे!
सुबेदार नागेश, हवल्दार एलुमलाई, हवल्दार एस. कुमार, लैन्स नाइक सुधीश बी, लैन्स नाइक हनुमन्तप्पा, सिपाही महेश, सिपाही गणेशन, सिपाही रामामूर्ति, सिपाही मुश्ताक्ज़ अहमद, और नर्सिंग् ऐसिस्टैण्ट सूर्यवंशी एस.वी – इन सभी शहीद सिपाहियों की पुण्य स्मृति में इनकी आत्माओं की शान्ति कामना करते हुए ईश्वर से प्रार्थना करें एक भक्ति रचना से जिसे मन्ना डे ने गाया है और लिखा है राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ’बापू’ ने।
यह महज़ एक प्रार्थना गीत नहीं है, इसका एक ऐतिहासिक महत्व है। यह ना कोई गीत है, ना भजन और ना ही कोई कविता। बल्कि यह एक चिट्ठी है, एक पत्र है जिसे महात्मा गांधी ने लिखा था सरदार वल्लभ भाई पटेल की पुत्री मणिबेन पटेल के कुछ सवालों के जवाब स्वरूप। उस बच्ची ने बापू से पूछा था कि ईश्वर दिखते कैसे हैं, वो कहाँ रहते हैं, उन्हें कैसे खोजा जाए? उनसे क्या पूछा जाए? बापू ने बड़े प्यार से इन प्रश्नों के उत्तर इस तरह से दिया था –
“हे नम्रता के सम्राट, दीन भंगी की हीन कुटिया के निवासी,
गंगा यमुना गोदावरी के जलों से सिंचित इस सुन्दर देश में
तुझे सब जगह खोजने में हमें मदद दें
हमें ग्रहणशीलता और खुला दिल दें तेरी अपनी नम्रता दे
भारत की जनता से एकरूप होने की शक्ति और उतकण्ठा दे
हे भगवन,
तू तभी मदद के लिए आता है जब मनुष्य शून्य बनकर तेरी शरण लेता है
हमें वरदान दें कि सेवक और मित्र के नाते इस जनता की हम सेवा करना चाहते हैं
उससे कभी अलग न पड़ जाएँ हमें त्याग भक्ति की मूर्ति बना
ताकि इस देश को हम ज़्यादा समझें और ज़्यादा चाहें हमें वरदान दें
हे भगवन!
गांधी जी की यह चिट्ठी 1968 में महाराष्ट्र सरकार के मन्त्री श्री मधुकर राव चौधरी को मिला था। वो उस समय Gandhi Centenary Committee के प्रेसिडेण्ट भी थे। उन दिनों संगीतकार वसन्त देसाई महाराष्ट्र सरकार के सांस्कृतिक व संगीत विभाग से जुड़े होने के कारण चौधरी जी ने उन्हें इस चिट्ठी को दिखा कर इसके लिए एक धुन तैयार करने का अनुरोध किया जो वो गांधी जी की शताब्दी कार्यक्रम के लिए रेकॉर्ड करवाना चाहते थे। इस तरह से वसन्त देसाई के संगीत में मन्ना डे की आवाज़ में गांधी जी का लिखा यह गीत 1969 में रेकॉर्ड हुआ। कोई फ़िल्मी गीत ना होने की वजह से धीरे धीरे इस गीत को लोग भूल गए, और कालान्तर में परित्यक्त सामान के रूप में इस गीत के रेकॉर्ड्स की प्रतियाँ किसी गोडाउन में चला गया, और वहाँ से बम्बई के चोर बाज़ार में। रेकॉर्ड कलेक्तर डॉ. सुरेश चाँदवन्कर दुर्लभ ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड्स की तलाश में ऐसे चोर बाज़ारों की ख़ाक छाना करते थे। और उनके हाथों ये रेकॉर्ड्स लग गए। इनकी ऐतिहासिक महत्व को भाँप कर वो सारी प्रतियाँ वहाँ से उठा लाए और इस तरह से इस गीत का पुनर्जनम हुआ। जब मन्ना डे को यह रेकॉर्ड फ़ोन पर सुनाया गया, तो वो भावुक हो उठे और उनकी आँखों से आँसू टपकने लगे।
आइए हम और आप मिल कर इस प्रार्थना गीत को सुनें और सियाचेन में हमारे शहीद हुए दस वीर सपूतों की आत्माओं की शान्ति कामना करें! जय हिन्द!!!
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श्रद्धांजलि!