स्वरगोष्ठी – 228 में आज


आज का द्दूसरा राग है, मीरा मल्हार अथवा मीराबाई की मल्हार। यह भी मल्हार अंग का राग है। यह माना जाता है कि इस राग की रचना सुप्रसिद्ध भक्त कवयित्री मीराबाई ने की थी। यह काफी थाट का सम्पूर्ण जाति का राग है, अर्थात इस राग के आरोह और अवरोह में सभी सात स्वर प्रयोग किये जाते हैं। राग मीरा मल्हार में गान्धार, धैवत और निषाद स्वर के दोनों रूप (शुद्ध और कोमल) प्रयोग किये जाते हैं। राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। इससे पूर्व आपने राग रामदासी मल्हार के जिस रचना का रसास्वादन किया है, उसमें और राग मीरा मल्हार के थाट, जाति, वादी और संवादी समान होते हैं। आरोह और अवरोह के स्वर भी लगभग समान होते हैं। केवल कोमल धैवत स्वर का अन्तर होता है। राग रामदासी मल्हार में केवल शुद्ध धैवत का प्रयोग होता है, जबकि राग मीरा मल्हार में दोनों धैवत का प्रयोग किया जाता है। आमतौर पर राग मीरा मल्हार के गायन-वादन का समय मध्यरात्रि माना जाता है, किन्तु वर्षा ऋतु में इसे किसी भी समय गाया-बजाया जा सकता है। राग के स्वरूप का अनुभव करने के लिए अब हम आपको 1979 में प्रदर्शित गुलज़ार की फिल्म ‘मीरा’ से एक गीत सुनवा रहे हैं। यह गीत ही नहीं, बल्कि इस राग की संरचना भी स्वयं भक्त कवयित्री मीराबाई की है। फिल्म ‘मीरा’ के संगीत पर मैं अपने प्रिय मित्र और फिल्म संगीत के सुपरिचित इतिहासकार सुजॉय चटर्जी के आलेख का एक अंश उद्धृत कर रहा हूँ।






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Varsha Ritu ke sambandh me ye post man me hi sahi baarish ka ehsaas kar rahi hai lekin geet ke link play nahin ho rahe hain