आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं आशा गुप्ता आशु लिखित लघुकथा ममता की छांव में, जिसे स्वर दिया है माधवी गणपुले ने।
इस कहानी मुक्ति का कुल प्रसारण समय 4 मिनट 20 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। इसका गद्य लेखिका के फेसबुक पृष्ठ पर उपलब्ध है।
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माना कि अभी नहीं जागे मेरे सोये हुये नसीब! हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी हिन्दी कहानी “मुझे उस दिन का इन्तजार था जब बच्चों के पंख ताकतवर हो जाते और वो परवाज़ भरते।” |
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#Eighth Story, Mamta Ki Chhaon Mein; Asha Gupta Ashu; Hindi Audio Book/2015/08. Voice: Madhavi Ganpule
3 comments
आपने कहानी लिखी है,मैने इस सच को जीया है,अपनी ही बालकनी में,वो बुलबुल का घोंसला और उसके बच़चे.डर से मैं पंखा नहीं चलाता था कि कहीं चोट न लग जाए या कहीं वे मर..नहीं नहीं.फिर एक दिन उनके माँ बाप देर रात तक नहीं पहुँचे,मन में अनहोनी की आशंका..खैर दुसरे दिन वो नजर आ गए.फिर एक दिन एक बच़चा मेरी पांचवी मंजिल से उड़ने की कोशिश में नीचे जमीन पर गिर गया,संयोग मैं घर पर था.मन में फिर डर कहीं बच़चे को कुछ हुआ तो नही् दौड़ कर नीचे गया,भगवान का शुकरिया बच़चा डरा हुआ पर ठीक था.मैने उसे वापस घोंसले में लाकर रख दिया.2 दिन बाद सच में उनके पंख मजबूत हो गए थे और एक दिन वो फुरर उड़ चले मन खुशी से झूम उठा.
सूर्यांश प्रिया जी बहुत शुक्रिया आपका… यह कहानी मेरी अपनी भोगी हुई ही है आपकी तरह…… वाकई नन्हें पक्षियों की पीड़ा कितना मन को झकझोर देती है…. पीड़ा शायद सबकी एक सी ही होती है
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