तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी – 02
’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार। दोस्तों, किसी ने सच ही कहा है कि यह ज़िन्दगी एक पहेली है जिसे समझ पाना नामुमकिन है। कब किसकी ज़िन्दगी में क्या घट जाए कोई नहीं कह सकता। लेकिन कभी-कभी कुछ लोगों के जीवन में ऐसी दुर्घटना घट जाती है या कोई ऐसी विपदा आन पड़ती है कि एक पल के लिए ऐसा लगता है कि जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया। पर निरन्तर चलते रहना ही जीवन-धर्म का निचोड़ है। और जिसने इस बात को समझ लिया, उसी ने ज़िन्दगी का सही अर्थ समझा, और उसी के लिए ज़िन्दगी ख़ुद कहती है कि ‘तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी’। इसी शीर्षक के अन्तर्गत इस नई श्रृंखला में हम ज़िक्र करेंगे उन फ़नकारों का जिन्होंने ज़िन्दगी के क्रूर प्रहारों को झेलते हुए जीवन में सफलता प्राप्त किये हैं, और हर किसी के लिए मिसाल बन गए हैं। आज का यह अंक समर्पित है अभिनेता और निर्देशक कमल सदाना को।
पार्टी का आयोजन चल रहा है। कमल के पिता थे बृज सदाना जो एक फ़िल्म
निर्माता थे और ’दो भाई’, ’यह रात फिर ना आएगी’, ’विक्टोरिया नंबर 203′,
‘उस्तादों के उस्ताद’, ’नाइट इन लंदन’, ’यकीन’, और ’प्रोफ़ेसर प्यारेलाल’
उनके द्वारा निर्मित चर्चित फ़िल्में थीं। तो उस शाम बृज सदाना और उनकी
पत्नी सईदा ख़ान बेटे के जनमदिन की पार्टी की देख-रेख करने उस होटल में
पहुँचे जहाँ पार्टी होनी थी। मिया-बीवी में अक्सर झगड़ा हुआ करता था, और उस
दिन भी किसी बात को लेकर दोनों में मनमुटाव हो गया। बात इतनी बढ़ गई कि
होटल में लगभग तमाशा खड़ा हो गया। दोनों घर वापस आए और जम कर बहस और लड़ाई
होने लगी। बृज सदाना शराब के नशे में थे और बीवी के साथ गरमा-गरमी इतनी
ज़्यादा हो गई कि उन्होंने अपना रिवॉल्वर निकाला और बीवी पर गोली चला दी।
सईदा ख़ान पल भर में गिर पड़ीं और उनकी मौत हो गई। बगल के कमरे में बेटी
नम्रता पार्टी में जाने के लिए तैयार हो रही थीं। गोली की आवाज़ सुन कर वह दौड़ी आईं और नज़ारा देख कर ज़ोर ज़ोर से चीख पड़ीं। पिता ने पुत्री को भी नहीं
बख्शा। रिवॉल्वर का निशाना बेटी पर लगाया और एक बार फिर गोली चला दी। बेटी
की भी पल भर में जीवन लीला समाप्त हो गई। बीवी और बेटी के बेजान शरीर को
देख कर बृज सदाना के होश वापस आ गए। शराब का पूरा नशा उतर गया। पर बहुत
देर हो चुकी थी। उनके पास बस एक ही रास्ता बचा था और उन्होंने वही किया।
रिवॉल्वर अपने सर पर तान कर तीसरी गोली चला दी।
ख़ुशियाँ दोस्तों के साथ मनाने के बाद युवा कमल सदाना घर वापस पहुँचे। अपने
माता-पिता और बहन की लाशों का नज़ारा देख कर वो पत्थर हो गए। पलक झपकते ही
उनका पूरा हँसता-खेलता परिवार बिखर चुका था, सब तहस-नहस हो गया था। जन्मदिन
पर माँ-बाप और बहन की मृत्यु के दर्द को सह पाना कोई आसान काम नहीं था।
बृज सदानाह अपने बेटे को जल्द ही फ़िल्म में लौन्च करने वाले थे। उससे पहले
ही सब ख़त्म हो गया। परिवार के जाने का ग़म तो एक बोझ था ही उनके दिल पर,
साथ ही उनका भविष्य, उनका करीयर भी अंधकारमय हो गया। ग़लत राह पर चल निकलना
बहुत आसान था एक बीस वर्षीय युवक के लिए। पर ऐसा नहीं हुआ। जो सपना पिता ने
अपने बेटे के लिए देखा था, बेटा उसी राह पर चल निकला और पूरी जान लगा दी
फ़िल्मों में मौका पाने के लिए। जब 1992 में राहुल रवैल निर्देशित फ़िल्म
’बेख़ुदी’ से सैफ़ अली ख़ान किसी कारणवश निकल गए तो नायक के रोल के लिए कमल
सदाना को मौका मिल गया और यहीं से उनका फ़िल्मी सफ़र शुरू हो गया। ’बेख़ुदी’
के बाद ’रंग’, ’बाली उमर को सलाम’, ’हम हैं प्रेमी’, ’हम सब चोर हैं’,
’अंगारा’, ’निर्णायक’, ’मोहब्बत और जंग’, ’करकश’, और ’विक्टोरिया नं 203′
जैसी फ़िल्मों में वो नज़र आए। ’विक्टोरिया नं 203’ का उन्होंने ही निर्माण
किया 2007 में अपने पिता को श्रद्धांजलि स्वरूप। हाल ही में उन्होंने
निर्देशित की महत्वाकांक्षी फ़िल्म ’Roar – Tigers of the Sundarbans’, जिसे
दुनिया भर से वाह-वाही मिली। कमल सदाना बिना किसी सहारे के अपने करीयर को
निखारते चले जा रहे हैं। बीस साल के जन्मदिन की उस भयानक दुर्घटना के दर्द
पर काबू पा कर अपनी ज़िन्दगी को आगे बढ़ाया और आज एक ऐसे मुकाम पर आ गए हैं
कि हम वाक़ई यह कहते हैं कि कमल जी, तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी। रेडियो
प्लेबैक इण्डिया की तरफ़ से कमल सदाना को झुक कर सलाम।
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