स्वरगोष्ठी – 206 में आज


श्रृंखला ‘भारतीय संगीत शैलियों का परिचय’ की चौथी कड़ी के साथ मैं
कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ।
पाठकों और श्रोताओं के अनुरोध पर आरम्भ की गई इस लघु श्रृंखला के अन्तर्गत
हम भारतीय संगीत की उन परम्परागत शैलियों का परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं, जो
आज भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमारे बीच उपस्थित हैं। भारतीय संगीत की एक समृद्ध
परम्परा है। वैदिक युग से लेकर वर्तमान तक इस संगीत-धारा में अनेकानेक
धाराओं का संयोग हुआ। इनमें से जो भारतीय संगीत के मौलिक सिद्धांतों के
अनुकूल धारा थी उसे स्वीकृति मिली और वह आज भी एक संगीत शैली के रूप
स्थापित है और उनका उत्तरोत्तर विकास भी हुआ। विपरीत धाराएँ स्वतः नष्ट भी
हो गईं। भारतीय संगीत की सबसे प्राचीन और वर्तमान में उपलब्ध संगीत शैली
है, ध्रुपद अथवा ध्रुवपद। पिछली कड़ियों में हमने आपके लिए ध्रुपद और धमार
का सोदाहरण परिचय प्रस्तुत किया है। आज के अंक में हम आपसे ध्रुपद शैली के
संगीत से अभिन्न रूप से जुड़ा प्राचीन तंत्रवाद्य रुद्रवीणा और ताल के लिए
उपयोगी वाद्य पखावज की चर्चा करेंगे और विश्वविख्यात रुद्रवीणा वादक उस्ताद
असद अली खाँ द्वारा प्रस्तुत राग आसावरी का और राजा छत्रपति सिंह द्वारा
पखावज पर प्रस्तुत चौताल का रसास्वादन भी कराएँगे।
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उस्ताद असद अली खाँ |
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राजा छत्रपति सिंह |
ध्रुपद संगीत में ताल के लिए सर्वाधिक उपयुक्त वाद्य पखावज अथवा मृदंग है। यह खोखली बेलनाकार लकड़ी का बना हुआ होता है, जिसके दोनों सिरों पर चमड़े से मढ़ा होता है। यह अत्यन्त श्रमसाध्य वाद्य है। ध्रुपद संगीत में इस तालवाद्य की संगति से अनूठी गम्भीरता और भव्यता आती है। गायन और वादन में संगति के साथ-साथ शास्त्रीय नृत्य शैलियों में भए इसका उपयोग होता है। समर्थ कलासाधक पखावज का स्वतंत्र अर्थात एकल वादन भी कुशलता से करते हैं। आम तौर पर पखावज पर चौताल, तीव्रा, धमार, सूल आदि लघु तथा ब्रह्म, रुद्र, लक्ष्मी, सवारी, मत्त, शेष आदि दीर्घ ताल बजाए जाते हैं। आज के अंक में हम आपको स्वतंत्र अर्थात एकल पखावज वादन सुनवा रहे हैं। बीती शताब्दी के प्रमुख संगीतज्ञों में राजा छत्रपति सिंह (1919-1998) की गणना की जाती है। आज के उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच स्थित तत्कालीन बिजना राज परिवार में उनका जन्म हुआ था। इनके पितामह राजा मुकुन्ददेव सिंह जूदेव और पिता राजा हिम्मत सिंह जूदेव का नाम भारतीय संगीत के संरक्षकों में शुमार किया जाता है। राजा छत्रपति सिंह जूदेव ने बचपन से ही पखावज सीखना आरम्भ कर दिया था। अपने युग के जाने-माने दिग्गज पखावजी कुदऊ सिंह और स्वामी रामदास से उनकी ताल शिक्षा हुई। प्रस्तुत रिकार्डिंग में विद्वान पखावजी राजा छत्रपति सिंह पखावज पर चौताल प्रस्तुत कर रहे हैं। आप इस वादन का आनन्द लीजिए और हमे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
1 – संगीत का यह अंश सुन कर बताइए कि यह रचना किस राग में निबद्ध है?
2 – प्रस्तुति के इस अंश में किस ताल का प्रयोग किया गया है? ताल का नाम बताइए।
आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार 14 फरवरी, 2015 की मध्यरात्रि से पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 206वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
‘स्वरगोष्ठी’ की 204वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको चर्चित युगल ध्रुपद गायक गुण्डेचा बन्धुओं द्वारा प्रस्तुत धमार गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग केदार और पहेली के दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल धमार (14 मात्रा)। इस बार पहेली के दोनों प्रश्नो के सही उत्तर पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, जबलपुर से क्षिति तिवारी और हैदराबाद से डी. हरिना माधवी ने दिया है। इस बार हमारे एक नये प्रतिभागी ने भी पहेली में हिस्सा लेकर एक अंक अर्जित किया है। इन्होने उत्तर के साथ अपना नाम और स्थान का नाम नहीं लिखा है। इनके ई-मेल आई डी के आधार पर अनुमान है कि सम्भवतः प्रेषक का नाम पार्थ सोदानी है। आपसे अनुरोध है कि अपना पूरा नाम और स्थान का नाम हमे शीघ्र भेज दें। चारो प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर इन दिनों जारी है हमारी नई लघु श्रृंखला- ‘भारतीय संगीत शैलियों का परिचय’। इस श्रृंखला के अन्तर्गत वर्तमान में भारतीय संगीत की जो भी शैलियाँ प्रचलन में हैं, उनका सोदाहरण परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं। अभी तक आप ध्रुपद शैली का परिचय प्राप्त कर रहे थे। अगले अंक से हम खयाल शैली की चर्चा करेंगे। यदि आप भी संगीत के किसी भी विषय पर हिन्दी में लेखन की इच्छा रखते हैं तो हमसे सम्पर्क करें। हम आपकी प्रतिभा को निखारने का अवसर सहर्ष देंगे। आगामी श्रृंखलाओं के बारे में आपके सुझाव सादर आमंत्रित हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ स्तम्भ के आगामी अंकों में आप क्या पढ़ना और सुनना चाहते हैं, हमे आविलम्ब लिखें। अपनी पसन्द के विषय और गीत-संगीत की फरमाइश अथवा अगली श्रृंखलाओं के लिए आप किसी नए विषय का सुझाव भी दे सकते हैं। अगले रविवार को एक नए अंक के साथ प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे।