

स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर इन दिनो हमारी नई लघु श्रृंखला, ‘शास्त्रीय
संगीतज्ञों के फिल्मी गीत’ जारी है। फिल्म संगीत के क्षेत्र में चौथे से
लेकर आठवें दशक के बीच शास्त्रीय संगीत के कई विद्वानों और विदुषियों ने
अपना योगदान किया है। इस श्रृंखला में हमने कुछ ऐसे ही फिल्मी गीतों का
चुनाव किया है, जिन्हें रागदारी संगीत के प्रयोक्ताओं और विशेषज्ञों ने रचा
है। इन रचनाओं में राग के स्पष्ट स्वरूप की उपस्थिति मिलती है। श्रृंखला
के तीसरे अंक में आज हम आपसे 1956 में प्रदर्शित फिल्म ‘बसन्त बहार’ के एक
गीत- ‘केतकी गुलाब जूही चम्पक बन फूलें…’ पर चर्चा करेंगे। फिल्म के इस
गीत में राग ‘बसन्त बहार’ के स्वरों का उपयोग किया गया है। विश्वविख्यात
संगीतज्ञ पण्डित भीमसेन जोशी ने इस गीत को स्वर दिया था और संगीत रचने में
भी अपना योगदान किया था। इस युगल गीत में पण्डित जी के साथ जाने-माने
पार्श्वगायक मन्ना डे ने भी अपना स्वर दिया है। इसके साथ ही राग ‘बसन्त
बहार’ के यथार्थ स्वरूप को अनुभव करने के लिए हम आपके लिए सुविख्यात
संगीतज्ञ डॉ. लालमणि मिश्र का विचित्र वीणा पर बजाया राग ‘बसन्त बहार’ की
एक रचना भी प्रस्तुत करेंगे।
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मन्ना डे : रेखांकन – सुवायु नंदी |
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भीमसेन जोशी : रेखांकन – उदय देव |
फिल्म-संगीत-जगत में समय-समय पर कुछ ऐसे गीतों की रचना हुई है, जो आज हमारे लिए अनमोल धरोहर बन गए हैं। एक ऐसा ही गीत 1956 में प्रदर्शित फिल्म ‘बसन्त बहार’ में रचा गया था। यूँ तो इस फिल्म के सभी गीत अपने समय में हिट हुए थे, किन्तु फिल्म का एक गीत- ‘केतकी गुलाब जूही चम्पक वन फूलें…’ कई कारणों से फिल्म-संगीत-इतिहास के पृष्ठों में दर्ज़ हुआ। इस गीत की मुख्य विशेषता यह है कि पहली बार किसी वरिष्ठ शास्त्रीय गायक (पण्डित भीमसेन जोशी) और फिल्मी पार्श्वगायक (मन्ना डे) ने मिल कर एक ऐसा युगल गीत गाया, जो राग बसन्त बहार के स्वरों में ढला हुआ था। यही नहीं, फिल्म के प्रसंग के अनुसार राज-दरबार में आयोजित प्रतियोगिता में नायक गोपाल (भारतभूषण) को गायन में दरबारी गायक के मुक़ाबले में विजयी होना था। आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि दरबारी गायक के लिए भीमसेन जी ने और नायक के लिए मन्ना डे ने पार्श्वगायन किया था। फिल्म से जुड़ा तीसरा रेखांकन योग्य तथ्य यह है कि फिल्म की संगीत-रचना में सुप्रसिद्ध सारंगी वादक पण्डित रामनारायण का उल्लेखनीय योगदान था।
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डॉ. लालमणि मिश्र |
अब हम आपको एक प्राचीन और लुप्तप्राय तंत्रवाद्य विचित्रवीणा पर राग ‘बसन्त बहार’ सुनवाते हैं। इसे प्रस्तुत किया है, बहुआयामी प्रतिभा के धनी कलासाधक, शिक्षक और शोधकर्त्ता डॉ. लालमणि मिश्र ने। कृतित्व से पूर्व इस महान कलासाधक के व्यक्तित्व पर एक दृष्टिपात करते चलें।
‘स्वरगोष्ठी’ के 194वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक बार फिर लगभग छः दशक पुरानी एक फिल्म के गीत का अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 200वें अंक की समाप्ति तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला का विजेता घोषित किया जाएगा तथा वर्ष 2014 में सर्वाधिक अंक अर्जित करने वाले प्रतिभागी को वार्षिक विजेता घोषित किया जाएगा।