स्वरगोष्ठी – 191 में आज
फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – 10 : ठुमरी भैरवी
‘आ जा साँवरिया तोहें गरवा लगा लूँ, रस के भरे तोरे नैन…’


पिछले दस सप्ताह से जारी ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’
श्रृंखला के इस समापन अंक में आज आप सब संगीत-प्रेमियों का एक बार पुनः
कृष्णमोहन मिश्र और संज्ञा टण्डन की ओर से हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन है।
इस श्रृंखला के अन्तर्गत हमने आपको कुछ ऐसी पारम्परिक ठुमरियों का
रसास्वादन कराया जिन्हें फिल्मों में भी शामिल किया जा चुका है। पिछले अंक
में हमने आपसे एक ऐसी ठुमरी पर चर्चा की थी, जिसमें नायिका की आँखों के
सौन्दर्य का बखान किया गया है। परन्तु आज की ठुमरी में नायक की आँखों के
आकर्षण का रसपूर्ण चित्रण किया गया है। आज हम जिस ठुमरी पर चर्चा करेंगे,
वह है- ‘आ जा साँवरिया तोहे गरवा लगा लूँ, रस के भरे तोरे नैन…’।
प्रत्यक्ष रूप से तो यह ठुमरी श्रृंगार रस प्रधान है किन्तु कुछ समर्थ
गायक-गायिकाओं ने इसे कृष्णभक्ति से तो कुछ ने नायिका के विरह भाव से जोड़ा
है। इन सभी भावों की अभिव्यक्ति के लिए राग भैरवी के अलावा भला और कौन सा
राग हो सकता है? इस श्रृंखला में हमने आपके लिए पारम्परिक ठुमरी के एक या
दो उदाहरण तथा उसके फिल्मी संस्करण का एक उदाहरण प्रस्तुत किया है, किन्तु
श्रृंखला की इस समापन कड़ी में आज की ठुमरी- ‘रस के भरे तोरे नैन…’ के
परम्परागत स्वरूप के हम चार उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। दरअसल 1905 में
गौहर जान की गायकी से लेकर आधुनिक काल में गिरिजा देवी की गायकी के उदाहरण
प्रस्तुत करते हुए हम पिछली पूरी एक शताब्दी के दौरान ठुमरी गायकी की
यात्रा को रेखांकित भी कर रहे हैं। आप इस ठुमरी का रसास्वादन गौहर जान,
रसूलन बाई, सिद्धेश्वरी देवी, गिरिजा देवी और हीरादेवी मिश्र की आवाज़ों में
करेंगे।


ठुमरी भैरवी : ‘रस के भरे तोरे नैन…’ : गायिका गौहर जान


ठुमरी भैरवी : ‘रस के भरे तोरे नैन…’ : गायिका रसूलन बाई


ठुमरी भैरवी : ‘रस के भरे तोरे नैन…’ : गायिका सिद्धेश्वरी देवी


ठुमरी भैरवी : ‘रस के भरे तोरे नैन…’ : विदुषी गिरिजा देवी


ठुमरी भैरवी : ‘रस के भरे तोरे नैन…’ : फिल्म गमन : हीरादेवी मिश्र : संगीत – जयदेव


अब प्रस्तुत है, इस श्रृंखला ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक
ठुमरी’ के दसवें अंक के आलेख और गीतों का समन्वित श्रव्य संस्करण। ‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ परिवार की सक्रिय सदस्य संज्ञा टण्डन ने अपनी भावपूर्ण
आवाज़ से सुसज्जित किया है। आप इस प्रस्तुति का रसास्वादन कीजिए और हमे आज
के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
ठुमरी भैरवी : ‘रस के भरे तोरे नैन…’ : फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी : वाचक स्वर – संज्ञा टण्डन
आज की पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ के 191वें अंक की पहेली में आज हम आपको सात दशक से भी पहले की
एक फिल्म के एक राग आधारित गीत का अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको
निम्नलिखित दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। 200वें अंक की पहेली के सम्पन्न
होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला
(सेगमेंट) और वर्ष 2014 का विजेता घोषित किया जाएगा।
एक फिल्म के एक राग आधारित गीत का अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको
निम्नलिखित दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। 200वें अंक की पहेली के सम्पन्न
होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला
(सेगमेंट) और वर्ष 2014 का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – गीत के इस अंश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग का आधार है?
2 – यह रचना किस ताल में निबद्ध है?
आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार, 1 नवम्बर, 2014 को मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 193वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत किये गए गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस मंच पर स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ की 189वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ की गायी एक लोकप्रिय ठुमरी का अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग सिन्धु भैरवी और पहेली के दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- गायक उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ। इस बार की पहेली में पूछे गए दोनों प्रश्नो के सही उत्तर मिन्नेसोटा, अमेरिका से दिनेश कृष्णजोइस, जबलपुर से क्षिति तिवारी, पेंसिलवानिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, और हैदराबाद की डी. हरिणा माधवी ने दिया है। चारो प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के
मंच पर इन दिनों हम पारम्परिक ठुमरी और उसके फिल्मी प्रयोग पर चर्चा कर रहे
हैं। आज इस श्रृंखला की यह समापन प्रस्तुति थी। इस श्रृंखला के स्वरूप पर
हमे अनेक पाठकों और श्रोताओ के बहुमूल्य सुझाव प्राप्त हुए है। इन सभी
सुझाव पर हम नये वर्ष से अपनी प्रस्तुतियों में आवश्यक संशोधन करने जा रहे
हैं। यदि आपने अभी तक अपने सुझाव और फरमाइशें नहीं भेजी हैं तो आविलम्ब
हमें भेज दें। अगले रविवार 2 नवम्बर 2014 को प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के
नये अंक के साथ उपस्थित होंगे। अगले अंक भी हमें आपकी प्रतीक्षा रहेगी।
मंच पर इन दिनों हम पारम्परिक ठुमरी और उसके फिल्मी प्रयोग पर चर्चा कर रहे
हैं। आज इस श्रृंखला की यह समापन प्रस्तुति थी। इस श्रृंखला के स्वरूप पर
हमे अनेक पाठकों और श्रोताओ के बहुमूल्य सुझाव प्राप्त हुए है। इन सभी
सुझाव पर हम नये वर्ष से अपनी प्रस्तुतियों में आवश्यक संशोधन करने जा रहे
हैं। यदि आपने अभी तक अपने सुझाव और फरमाइशें नहीं भेजी हैं तो आविलम्ब
हमें भेज दें। अगले रविवार 2 नवम्बर 2014 को प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के
नये अंक के साथ उपस्थित होंगे। अगले अंक भी हमें आपकी प्रतीक्षा रहेगी।
वाचक स्वर : संज्ञा टण्डन
आलेख व प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र