स्वरगोष्ठी – 186 में आज
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जन्मदिन पर शताधिक शुभकामना |
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी
हमारी श्रृंखला ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ के पाँचवें
अंक में आज हम फिर एक और पारम्परिक ठुमरी और उसके फिल्मी संस्करण के साथ
उपस्थित हैं। इस श्रृंखला में आप सुन रहे हैं, कुछ ऐसी पारम्परिक ठुमरियाँ,
जिन्हें फिल्मों में पूरे आन, बान और शान के साथ शामिल किया गया। इस
स्तम्भ के वाहक कृष्णमोहन मिश्र और संज्ञा टण्डन की ओर से आप सब
संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन है। यह पूर्व में प्रकाशित /
प्रसारित श्रृंखला का परिमार्जित रूप है। ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के कुछ
स्तम्भ केवल श्रव्य माध्यम से प्रस्तुत किये जाते हैं तो कुछ स्तम्भ आलेख
और चित्र, दृश्य माध्यम के साथ और गीत-संगीत श्रव्य माध्यम से प्रस्तुत
होते हैं। इस श्रृंखला से हम एक नया प्रयोग कर रहे हैं। श्रृंखला के अंकों
को हम प्रायोगिक रूप से दोनों माध्यमों में प्रस्तुत कर रहे हैं। ‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ की प्रमुख सहयोगी संज्ञा टण्डन की आवाज़ में पूरा आलेख और
गीत-संगीत श्रव्य माध्यम से भी प्रस्तुत किया जा रहा है। हमारे इस प्रयोग
पर आप अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दीजिएगा। आज का यह अंक हम विश्वविख्यात
गायिका लता मंगेशकर को उनके जन्मदिन (28 सितम्बर) से ठीक एक सप्ताह पूर्व उन्हें शुभकामनाएँ देते हुए प्रस्तुत
कर रहे हैं। 1954 में प्रदर्शित फिल्म ‘बाजूबन्द’ में उन्होने एक पारम्परिक
ठुमरी ‘बाजूबन्द खुल खुल जाय…’ का थोड़े परिवर्तन के साथ मोहक गायन प्रस्तुत किया था। इस ठुमरी
के माध्यम से हम उन्हें जन्मदिन की अग्रिम बधाई देते हैं। इसके साथ ही इस ठुमरी का
पारम्परिक गायन हम उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ और पण्डित भीमसेन जोशी के
स्वरों में भी प्रस्तुत कर रहे हैं।




आज हम जिस गायन शैली को ठुमरी गीत के रूप में जानते हैं, उसे एक शैली के रूप में पहचान मिली, अवध के नवाबी दरबार में। उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में अवध के नवाब वाजिद अली शाह के दरबार में ठुमरी को नई पहचान तो मिली किन्तु इसका विकास बनारस के समृद्ध सांगीतिक परिवेश में हुआ। आज की ठुमरी ‘बाजूबन्द खुल खुल जाय…’ का उपयोग 1954 में ‘बाजूबन्द’ नाम से ही प्रदर्शित फिल्म में किया गया था। इस फिल्म के संगीतकार मोहम्मद शफ़ी थे। फिल्म के एक नृत्य प्रसंग में इस ठुमरी का प्रयोग किया गया था। रामानन्द सागर निर्देशित फिल्म ‘बाजूबन्द’ में एक कम चर्चित संगीतकार मोहम्मद शफ़ी ने भैरवी की इस ठुमरी को लता मंगेशकर से गवाया था। आप लता मंगेशकर जी को उनके जन्मदिन की बधाई देते हुए उन्हीं के मधुर स्वरों में यह ठुमरी सुनिए।


मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’
के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी है हमारी लघु श्रृंखला
‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’। इस श्रृंखला में हमने एक
नया प्रयोग किया है। ‘स्वरगोष्ठी’ के परम्परागत आलेख, चित्र और गीत-संगीत
के आडियो रूप के साथ-साथ सम्पूर्ण आलेख, गीतों के साथ श्रव्य माध्यम से भी
प्रस्तुत किया जा रहा है। आपको हमारा यह प्रयोग कैसा लगा? हमें अपनी प्रतिक्रिया अवश्य
लिखिएगा। 7 सितम्बर को प्रकाशित / प्रसारित ‘स्वरगोष्ठी’ के 183वें अंक के
बारे में हमारे कई पाठकों / श्रोताओं ने कुछ सार्थक टिप्पणियाँ की है-
Sunil Bajpai – मोरे राजा ~ फुलवन गेंद से ~ ना मारो ~ लगत करेजवा में चोट ~ ~ फुल गेंदवा ना मारो ~ लगत करेजवा में चोट ~
Vijaya Rajkotia – Rasoolan bai is well known for Thumri singing. Thanks for posting.
Abhijeet Kondekar – Sheer delight to listen to this version, thanks for the post!
Ananth Rao – Phul gendavan na maro…..a lovely tumri. Thanks for sharing.
भी इस अंक पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। आप अपनी पसन्द के विषय
और गीत-संगीत की फरमाइश अथवा अगली श्रृंखलाओं के लिए आप किसी नए विषय का
सुझाव भी दे सकते हैं। अगले रविवार को प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी
मंच पर सभी संगीतानुरागियों की हम प्रतीक्षा करेंगे।