स्वरगोष्ठी – 176 में आज
वर्षा ऋतु के राग और रंग – 2 : राग मियाँ मल्हार
पावस ऋतु की चरम अवस्था के सौन्दर्य की अनुभूति कराने पूर्ण समर्थ राग मियाँ की मल्हार


लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की दूसरी कड़ी में, मैं कृष्णमोहन
मिश्र, एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन
करता हूँ। मित्रों, इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और
गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में
गाये-बजाए जाने वाले रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं पर चर्चा
करेंगे। इसके साथ ही सम्बन्धित राग के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी
प्रस्तुत कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत मल्हार अंग के सभी राग पावस
ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में समर्थ हैं। आम तौर पर इन रागों
का गायन-वादन वर्षा ऋतु में अधिक किया जाता है। इसके साथ ही कुछ ऐसे
सार्वकालिक राग भी हैं जो स्वतंत्र रूप से अथवा मल्हार अंग के मेल से भी
वर्षा ऋतु के अनुकूल परिवेश रचने में सक्षम होते हैं। इस श्रृंखला की पहली
कड़ी में गत सप्ताह हमने आपसे राग मेघ मल्हार पर चर्चा की थी। आज के अंक में
हम मल्हार अंग के ही सबसे लोकप्रिय राग मियाँ मल्हार पर चर्चा करेंगे। राग
मियाँ मल्हार भी एक प्राचीन राग है। ऐसी मान्यता है कि अकबर के दरबारी
संगीतज्ञ तानसेन ने इस राग को परिष्कृत कर लोकप्रिय किया था। इसीलिए
वर्तमान में मल्हार अंग के इस राग का नामकरण उनके नाम से ही प्रचलित है। आज
के अंक में हम आपके लिए राग मियाँ मल्हार में निबद्ध एक मोहक खयाल रचना
सुविख्यात गायिका और विदुषी किशोरी अमोनकर के स्वरों में प्रस्तुत कर रहे
हैं। इसके अलावा 1971 में प्रदर्शित हिन्दी फिल्म ‘गुड्डी’ से इसी राग में
पिरोया एक मधुर गीत भी सुपरिचित पार्श्वगायिका वाणी जयराम की आवाज़ में
सुनवा रहे हैं।


राग मियाँ की मल्हार तानसेन के प्रिय रागों में से एक है। कुछ विद्वानों का मत है कि तानसेन ने कोमल गान्धार तथा शुद्ध और कोमल निषाद का प्रयोग कर इस राग का सृजन किया था। अकबर के दरबार में तानसेन को सम्मान देने के लिए उन्हें ‘मियाँ तानसेन’ नाम से सम्बोधित किया जाता था। इस राग से उनके जुड़ाव के कारण ही मल्हार के इस प्रकार को ‘मियाँ मल्हार’ कहा जाने लगा। इस राग के बारे में चर्चा को आगे बढ़ाने से पहले आइए सुनते हैं, राग मियाँ की मल्हार में एक भावपूर्ण रचना। आपके लिए हम प्रस्तुत कर रहे हैं, विदुषी किशोरी अमोनकर के स्वर में द्रुत एक ताल में निबद्ध, मियाँ की मल्हार की एक रचना-
राग मियाँ मल्हार : ‘उमड़ घुमड़ गरज गरज बरसन को आए मेघा…’ : किशोरी अमोनकर : द्रुत एकताल
राग मियाँ मल्हार में वर्षा ऋतु के प्राकृतिक सौन्दर्य को स्वरों के माध्यम से अभिव्यक्त करने की अनूठी क्षमता होती है। इसके साथ ही इस राग का स्वर-संयोजन, पावस के उमड़ते-घुमड़ते मेघ द्वारा विरहिणी नायिका के हृदय में मिलन की आशा जागृत होने की अनुभूति भी कराते हैं। यह काफी थाट का और षाड़व-सम्पूर्ण जाति का राग है। अर्थात; आरोह में छह और अवरोह में सात स्वर प्रयोग किये जाते हैं। आरोह में शुद्ध गान्धार का त्याग, अवरोह में कोमल गान्धार का प्रयोग तथा आरोह और अवरोह दोनों में शुद्ध और कोमल दोनों निषाद का प्रयोग किया जाता है। आरोह में शुद्ध निषाद से पहले कोमल निषाद तथा अवरोह में शुद्ध निषाद के बाद कोमल निषाद का प्रयोग होता है। राग के स्वरों में प्रकृति के मनमोहक चित्रण की और विरह की पीड़ा को हर लेने की अनूठी क्षमता होती है। महाकवि कालिदास रचित ‘मेघदूत’ के पूर्वमेघ के नौवें श्लोक का काव्यानुवाद करते हुए हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि डॉ. ब्रजेन्द्र अवस्थी ने लिखा है-
गिनती दिन जोहती बाट जो व्याकुल अर्पित जीवन सारा लिये,
प्रिया को लखोगे घन निश्चय ही गतिमुक्त अबाधित धारा लिये,
सुमनों सा मिला ललनाओं को है मन प्रीतिमरंद जो प्यारा लिये,
विरहानल में जल के रहता मिलनाशा का एक सहारा लिये।


राग – मियाँ की मल्हार : ‘बोले रे पपीहरा…’ : फिल्म – गुड्डी : स्वर – वाणी जयराम : ताल – कहरवा
आज की पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ के 176वें अंक की पहेली में आज हम आपको नारी कण्ठ संगीत में एक रागबद्ध खयाल रचना का अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। 180वें अंक की पहेली के सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – बन्दिश के इस अंश को सुन कर राग पहचाइए और हमे राग का नाम बताइए।
2 – गीत का यह अंश सुन कर गायिका के स्वर को पहचानिए और हमे उनका नाम बताइए।
आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 178वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ की 174वीं कड़ी की पहेली में हमने आपको एक खयाल रचना का अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग मेघ मल्हार और पहेली के दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- गायक पण्डित अजय चक्रवर्ती। इस अंक के दोनों प्रश्नों के सही उत्तर पेंसिलवानिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, चण्डीगढ़ के हरकीरत सिंह, जबलपुर से क्षिति तिवारी और हैदराबाद की डी. हरिणा माधवी ने दिया है। चारो प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ के अन्तर्गत आज के अंक में हमने आपसे राग मियाँ मल्हार पर चर्चा की। इसके साथ ही हमने इस राग में निबद्ध एक खयाल रचना और एक फिल्म संगीत का एक उदाहरण भी सुनवाया। अगले अंक में भी हम एक और ऋतु प्रधान राग की चर्चा करेंगे। यह अंक आपको कैसा लगा, हमें अवश्य बताइए। आप भी अपनी पसन्द के विषय और गीत-संगीत की फरमाइश हमें भेज सकते हैं। हमारी अगली श्रृंखलाओं के लिए आप किसी नए विषय का सुझाव भी दे सकते हैं। अगले रविवार को प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर सभी संगीतानुरागियों की प्रतीक्षा करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र