स्वरगोष्ठी – 164 में आज
संगीत वाद्य परिचय श्रृंखला – 2
पाश्चात्य और भारतीय संगीतकारों में समान रूप से लोकप्रिय है यह तंत्रवाद्य


‘संगीत वाद्य परिचय श्रृंखला’ की दूसरी कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, सभी
संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, इस लघु श्रृंखला में
हम आपसे भारतीय संगीत के कुछ कम प्रचलित, लुप्तप्राय अथवा अनूठे वाद्यों
की चर्चा कर रहे हैं। वर्तमान में प्रचलित अनेक वाद्य हैं जो प्राचीन वैदिक
परम्परा से जुड़े हैं और समय के साथ क्रमशः विकसित होकर हमारे सम्मुख आज भी
उपस्थित हैं। कुछ ऐसे भी वाद्य हैं जिनकी उपयोगिता तो है किन्तु धीरे-धीरे
अब ये लुप्तप्राय हो रहे हैं। इस श्रृंखला में हम कुछ लुप्तप्राय और कुछ
प्राचीन वाद्यों के परिवर्तित व संशोधित स्वरूप में प्रचलित वाद्यों का
उल्लेख करेंगे। श्रृंखला की आज की कड़ी में हम आपसे एक ऐसे अत्याधुनिक
भारतीय तंत्रवाद्य की चर्चा करेंगे, जो पाश्चात्य हवाइयन गिटार जैसा दिखाई
देता है, परन्तु इस पर भारतीय संगीत के रागों को बड़े ही प्रभावी ढंग से
बजाया जा सकता है। यह वाद्य है, मोहन वीणा, जिसके प्रवर्तक और वादक
विश्वविख्यात संगीतज्ञ पण्डित विश्वमोहन भट्ट हैं। आज के अंक में आपको इस
वाद्य और इसके वादक के बारे में चर्चा करेंगे।


देश की आज़ादी के बाद गिटार फिल्म संगीत और सुगम संगीत का हिस्सा तो बन चुका था किन्तु अभी भी यह शास्त्रीय संगीत के मंच पर प्रतिष्ठित नहीं हुआ था। पश्चिम का हवाइयन गिटार रागों के वादन के लिए पूर्ण नहीं था। कुछ संगीतज्ञों ने गिटार वाद्य को रागदारी संगीत के अनुकूल बनाने का प्रयास किया जिनमें सर्वाधिक सफलता जयपुर के पण्डित विश्वमोहन भट्ट को मिली। आज हम ‘मोहन वीणा’ के नाम से जिस तंत्रवाद्य को पहचानते हैं, वह पश्चिम के हवाइयन गिटार या स्लाइड गिटार का संशोधित रूप है। पण्डित विश्वमोहन भट्ट इस वाद्य के प्रवर्तक और विश्वविख्यात वादक हैं। आगे बढ़ने से पहले आइए सुनते है, मोहन वीणा पर उनका बजाया राग हंसध्वनि। तबला संगति रामकुमार मिश्र ने की है।
मोहन वीणा वादन : राग हंसध्वनि : आलापचारी और तीनताल की गत : पण्डित विश्वमोहन भट्ट
आपने मोहन वीणा पर राग हंसध्वनि की मोहक गत का रसास्वादन किया। यह मूलतः दक्षिण भारतीय संगीत पद्यति का राग है, जो उत्तर भारतीय संगीत में भी बेहद लोकप्रिय है। मोहन वीणा के वादक पण्डित विश्वमोहन भट्ट, सर्वोच्च भारतीय सम्मान ‘भारतरत्न’ से विभूषित पण्डित रविशंकर के शिष्य हैं। विश्वमोहन भट्ट का परिवार अकबर के दरबारी संगीतज्ञ तानसेन के गुरु स्वामी हरिदास से सम्बन्धित है। प्रारम्भ में उन्होंने सितार वादन की शिक्षा प्राप्त की, किन्तु 1966 की एक रोचक घटना ने उन्हें एक नये वाद्य के सृजन की ओर प्रेरित कर दिया। एक बातचीत में श्री भट्ट ने बताया था- ‘1966 के आसपास एक जर्मन हिप्पी लड़की अपना गिटार लेकर मेरे पास आई और मुझसे आग्रह करने लगी कि मैं उसे उसके गिटार पर ही सितार बजाना सिखा दूँ। उस लड़की के इस आग्रह पर मैं गिटार को इस योग्य बनाने में जुट गया कि इसमें सितार के गुण आ जाए’। श्री भट्ट के वर्तमान ‘मोहन वीणा’ में केवल सितार और गिटार का ही नहीं बल्कि प्राचीन वैदिककालीन तंत्र वाद्य विचित्र वीणा और सरोद के गुण भी हैं।


मोहन वीणा और गिटार जुगलबन्दी : वादक – पण्डित विश्वमोहन भट्ट और रे कूडर
आज की पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ के 164वें अंक की पहेली में आज हम आपको कम प्रचलित वाद्य पर एक रचना की प्रस्तुति का अंश सुनवा रहे है। इसे सुन कर आपको दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। 170वें अंक की पहेली के सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – संगीत रचना इस अंश को सुन कर वाद्य को पहचानिए और बताइए कि यह कौन सा वाद्य है?
2 – इस रचना में आपको किस राग का आभास हो रहा है?
आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 166वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ की 162वीं कड़ी की पहेली में हमने आपको एक कम प्रचलित वाद्य जलतरंग वादन का अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- वाद्य जलतरंग और दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- राग किरवानी। इस अंक के दोनों प्रश्नो के सही उत्तर जबलपुर से क्षिति तिवारी, चंडीगढ़ से हरकीरत सिंह और हैदराबाद की डी. हरिणा माधवी ने दिया है। तीनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के
साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के आज के अंक में हमने संगीत वाद्य परिचय
श्रृंखला के दूसरे अंक में एक विकसित तंत्रवाद्य मोहन वीणा पर चर्चा की।
अगले अंक में हम एक लुप्तप्राय और संशोध्त किये वितत वाद्य पर चर्चा
करेंगे। इस प्राचीन किन्तु कम प्रचलित वाद्य की बनावट और वादन शैली हमारी
चर्चा के केन्द्र में होगा। आप भी अपनी पसन्द के गीत-संगीत की फरमाइश हमे
भेज सकते हैं। हमारी अगली श्रृंखलाओं के लिए आप किसी नए विषय का सुझाव भी
दे सकते हैं। अगले रविवार को प्रातः 9 बजे एक नए अंक के साथ हम
‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर सभी संगीत-प्रेमियों की प्रतीक्षा करेंगे।
साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के आज के अंक में हमने संगीत वाद्य परिचय
श्रृंखला के दूसरे अंक में एक विकसित तंत्रवाद्य मोहन वीणा पर चर्चा की।
अगले अंक में हम एक लुप्तप्राय और संशोध्त किये वितत वाद्य पर चर्चा
करेंगे। इस प्राचीन किन्तु कम प्रचलित वाद्य की बनावट और वादन शैली हमारी
चर्चा के केन्द्र में होगा। आप भी अपनी पसन्द के गीत-संगीत की फरमाइश हमे
भेज सकते हैं। हमारी अगली श्रृंखलाओं के लिए आप किसी नए विषय का सुझाव भी
दे सकते हैं। अगले रविवार को प्रातः 9 बजे एक नए अंक के साथ हम
‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर सभी संगीत-प्रेमियों की प्रतीक्षा करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
1 comment
I like yourSwargoshti website which is very interesting . There is no such medium where people can discuss about music and increase their knowledge . thank you for posting it inSangeet Sabha.
Vijaya Rajkotia