

एक नए अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आप सब संगीत-प्रेमियों
का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, पिछली पाँच कड़ियों से हम बसन्त ऋतु
के मदमाते रागों पर चर्चा कर रहे हैं और फाल्गुनी परिवेश के अनुकूल
गायन-वादन का आनन्द ले रहे हैं। फाल्गुन मास में शीत ऋतु का क्रमशः अवसान
और ग्रीष्म ऋतु की आगमन होता है। यह परिवेश उल्लास और श्रृंगार भाव से
परिपूर्ण होता है। प्रकृति में भी परिवर्तन परिलक्षित होने लगता है। रस-रंग
से परिपूर्ण फाल्गुनी परिवेश का एक प्रमुख राग काफी होता है। स्वरों के
माध्यम से फाल्गुनी परिवेश, विशेष रूप से श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति के लिए
राग काफी सबसे उपयुक्त राग है। पिछले अंकों में हमने इस राग में ठुमरी,
टप्पा, खयाल, तराना और भजन प्रस्तुत किया था। राग, रस और रगों का पर्व होली
अब मात्र एक सप्ताह की दूरी पर है, अतः आज के अंक में हम आपसे राग काफी की
कुछ होरी प्रस्तुत करेंगे, जिसे क्रमशः गायिका अच्छन बाई, विदुषी गिरिजा
देवी और पण्डित भीमसेन जोशी की आवाज़ में प्रस्तुत किया गया है।


भारत में ग्रामोफोन रिकार्ड के निर्माण का आरम्भ 1902 से हुआ था। सबसे पहले ग्रामोफोन रिकार्ड में उस समय की मशहूर गायिका गौहर जान की आवाज़ थी। संगीत की रिकार्डिंग के प्रारम्भिक दौर में ग्रामोफोन कम्पनी को बड़ी कठिनाई से गायिकाएँ उपलब्ध हो पातीं थीं। प्रारम्भ में व्यावसायिक गायिकाएँ ठुमरी, दादरा, कजरी, होरी, चैती आदि रिकार्ड कराती थीं। 1902 से गौहर जान ने जो सिलसिला आरम्भ किया था, 1910 तक लगभग 500 व्यावसायिक गायिकाओं ने अपनी आवाज़ रिकार्ड कराई। इन्हीं में एक किशोर आयु की गायिका अच्छन बाई भी थीं, जिनके गीत 1908 में ग्रामोफोन कम्पनी ने रिकार्ड किये थे। अच्छन बाई के रिकार्ड की उन दिनों धूम मच गई थी। उस दौर में अच्छन बाई के स्वर में बने रिकार्ड में से आज कुछ ही रिकार्ड उपलब्ध हैं, जिनसे उनकी गायन-प्रतिभा का सहज ही अनुभव हो जाता है। अच्छन बाई के उपलब्ध रिकार्ड में से एक में उन्होने राग काफी होरी को पुराने अंदाज़ में प्रस्तुत किया है। इस होरी को अब आप भी सुनिए।
‘स्वरगोष्ठी’ के 158वें अंक की पहेली में आज हम आपको कण्ठ संगीत की एक रचना का अंश सुनवा रहे है। इसे सुन कर आपको दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। 160वें अंक की पहेली के सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – संगीत के इस अंश को सुन कर बताइए कि यह संगीत की कौन सी शैली है? इस संगीत शैली का नाम बताइए।
2 – इस प्रस्तुति-अंश को सुन कर राग पहचानिए और उसका नाम लिख भेजिए।
आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 160वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
‘‘स्वरगोष्ठी’ की 156वीं कड़ी की पहेली में हमने आपको पण्डित कुमार गन्धर्व की आवाज़ में प्रस्तुत राग काफी के तराना का एक अंश प्रस्तुत कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- तराना और दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- पण्डित कुमार गन्धर्व। इस अंक के दोनों प्रश्नो के सही उत्तर हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी, जबलपुर से क्षिति तिवारी और चण्डीगढ़ से हरकीरत सिंह ने दिया है। तीनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
इन दिनों फाल्गुनी रस-रंग का प्रभाव है। इस फाल्गुनी परिवेश में गाये-बजाए
वाले रागों पर चर्चा जारी है। हमारा अगला अंक ठीक होली के दिन प्रस्तुत
होगा। इस विशेष अंक में हम होली के कुछ विशेष तचनाओं के साथ उपस्थित होंगे।
इस लघु श्रृंखला के बाद हम शीघ्र ही एक नई श्रृंखला प्रस्तुत करेंगे। अगली
श्रृंखलाओं के लिए विषय का सुझाव आप भी दे सकते हैं। अगले रविवार को
प्रातः 9 बजे एक नए अंक के साथ हम ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर सभी
संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।
1 comment
राग काफी का नाम ही काफी है।