स्वरगोष्ठी – 161 में आज
लोक संगीत का रस-रंग जब उपशास्त्रीय मंच पर बिखरा
‘चैत मासे चुनरी रंगइबे हो रामा, पिया घर लइहें…’




बार पुनः आप सब संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, आज हम
आपसे संगीत की एक ऐसी शैली पर चर्चा करेंगे जो मूलतः ऋतु प्रधान लोक संगीत की शैली है, किन्तु अपनी सांगीतिक गुणबत्ता के कारण इस शैली को उपशास्त्रीय मंचों पर भी अपार
लोकप्रियता प्राप्त है। भारतीय संगीत की कई ऐसी लोक–शैलियाँ हैं, जिनका प्रयोग उपशास्त्रीय संगीत के रूप में भी किया जाता है। होली पर्व के बाद, आरम्भ होने वाले चैत्र मास से ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो जाता है। इस परिवेश में चैती गीतों
का गायन आरम्भ हो जाता है। गाँव की चौपालों से लेकर मेलों में, मन्दिरों में चैती के स्वर गूँजने लगते हैं। आज के
अंक से हम
आपसे चैती गीतों के विभिन्न
प्रयोगों पर चर्चा आरम्भ करेंगे।
उत्तर भारत में इस गीत के
प्रकारों को
चैती, चैता और घाटो के नाम से जाना जाता है। चैती गीतों की प्रकृति-प्रेरित धुनें, इनका श्रृंगार रस से ओतप्रोत साहित्य और चाँचर ताल के
स्पन्दन में निबद्ध होने के कारण यह लोक गायकों के साथ-साथ उपशास्त्रीय
गायक-वादकों के बीच समान रूप से लोकप्रिय है। आज के अंक में हम सबसे
पहले चैती गीतों के उपशास्त्रीय स्वरूप और फिर फिल्मों में इसके प्रयोग के कुछ
उदाहरण सुनेंगे।


चैती गीत : ‘चैत मासे चुनरी रंगइबे हो रामा…’ : विदुषी गिरिजा देवी


चैती गीत : ‘यही ठइयाँ मोतिया हेरा गइल रामा…’ : गायिका निर्मला देवी


चैती गीत : ‘हिया जरत रहत दिन रैन हो रामा…’ : फिल्म – गोदान : गायक – मुकेश : संगीत – पण्डित रविशंकर : गीतकार – अनजान
आज की पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ के 161वें अंक की संगीत पहेली में हम आपको देश के पूर्वाञ्चल में प्रचलित लोक संगीत का एक अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 170वें अंक तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – संगीत के इस अंश को सुन कर इस प्रसिद्ध लोक गायिका को पहचानिए और हमें उनका नाम लिख भेजिए।
2 – रचना के इस अंश में किस ताल / तालों का प्रयोग किया गया है? ताल / तालों का नाम लिख भेजिए।
आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 163वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ की 159वीं संगीत पहेली में हमने आपको ठुमरी अंग में प्रस्तुत फिल्म ‘सरदारी बेगम’ के होली गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग पीलू और दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल दादरा। इस अंक के दोनों प्रश्नो के सही उत्तर जबलपुर से क्षिति तिवारी और हैदराबाद की डी. हरिणा माधवी ने दिया है। दोनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के इस अंक में हमने चैती गीतों के उपशास्त्रीय स्वरूप को प्रदर्शित करने का प्रयास किया है। अगले अंक में हम चैती गीतों के कुछ और उदाहरण प्रस्तुत करेंगे। साथ ही चैती गीतों के साहित्य पर भी हम आपसे चर्चा करेंगे। आगामी श्रृंखलाओं के लिए आप अपनी पसन्द के कलासाधकों, रागों या रचनाओं की फरमाइश कर सकते हैं। हम आपके सुझावों और फरमाइशों का स्वागत करेंगे। अगले अंक में रविवार को प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इस मंच पर आप सभी संगीत-रसिकों की हमें प्रतीक्षा रहेगी।