स्वरगोष्ठी – 155 में आज
ऋतुराज बसन्त का अभिनन्दन राग बसन्त बहार से
‘माँ बसन्त आयो री…’


‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक के साथ मैं
कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-रसिकों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ।
मित्रों, पिछली दो कड़ियों से हम आपसे बसन्त ऋतु के रागों की चर्चा कर रहे
हैं। बसन्त ऋतु में मुख्य रूप से राग बसन्त और राग बहार गाया-बजाया जाता
है। परन्तु इन दोनों रागों के मेल से एक तीसरे राग ‘बसन्त बहार’ की सृष्टि
भी होती है, जिसमें राग का स्वतंत्र अस्तित्व भी रहता है और दोनों रागों की
छाया भी परिलक्षित होती है। दोनों रागों के सन्तुलित प्रयोग से राग ‘बसन्त
बहार’ का वास्तविक सौन्दर्य निखरता है। कभी-कभी समर्थ कलासाधक प्रयुक्त
दोनों रागों में से किसी एक को प्रधान बना कर दूसरे का स्पर्श देकर
प्रस्तुति को एक नया रंग दे देते हैं। आज के अंक में हम पहले इस राग का एक
अप्रचलित तंत्रवाद्य विचित्र वीणा पर वादन प्रस्तुत करेंगे। इसके बाद अनूठे
समूहगान के रूप में 2750 गायक-गायिकाओं के समवेत स्वर में राग बसन्त बहार
की प्रस्तुति होगी। आज की इस कड़ी के अन्त में राग बसन्त बहार पर आधारित एक
ऐतिहासिक फिल्मी गीत की प्रस्तुति भी की जाएगी जिसे पण्डित भीमसेन जोशी और
मन्ना डे ने स्वर दिया था।
आज की ‘स्वरगोष्ठी’ में हम राग बसन्त बहार पर चर्चा करेंगे। यद्यपि बसन्त ऋतु के मुख्य राग बसन्त और बहार हैं, किन्तु इन दोनों रागों के मेल से सृजित राग बसन्त बहार भी ऋतु का परिवेश रचने में समर्थ है। आज सबसे पहले हम आपको एक प्राचीन और लुप्तप्राय तंत्रवाद्य विचित्रवीणा पर राग ‘बसन्त बहार’ सुनवाते हैं। इसे प्रस्तुत किया है, बहुआयामी प्रतिभा के धनी कलासाधक, शिक्षक और शोधकर्त्ता डॉ. लालमणि मिश्र ने। कृतित्व से पूर्व इस महान कलासाधक के व्यक्तित्व को रेखांकित करना आवश्यक है।


राग बसन्त बहार : विचित्र वीणा : डॉ. लालमणि मिश्र


आज की इस संगीत-गोष्ठी में हम आपको राग ‘बसन्त बहार’ की एक और अनूठी प्रस्तुति सुनवा रहे हैं। दो वर्ष पूर्व पुणे में एक महत्वाकांक्षी सांगीतिक अनुष्ठान आयोजित हुआ था। सुप्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर जी के सान्निध्य में देश भर से आमंत्रित 2750 शास्त्रीय गायक कलासाधकों ने जाने-माने गायक बन्धु पण्डित राजन और साजन मिश्र के नेतृत्व में राग ‘बसन्त बहार’ और तीनताल में निबद्ध एक बन्दिश समवेत स्वर में प्रस्तुत किया गया था। यह प्रस्तुति ‘अन्तर्नाद’ संस्था की थी, जिसके लिए 27,000 वर्गफुट आकार का मंच बनाया गया था। आकाश तक गूँजती यह रचना बनारस के संगीतज्ञ पण्डित बड़े रामदास की है। आइए इसी अनूठी प्रस्तुति का रसास्वादन करते हैं।
राग बसन्त बहार : ‘माँ बसन्त आयो री…’ : पण्डित राजन-साजन मिश्र व 2750 स्वर


फिल्म बसन्त बहार : ‘केतकी गुलाब जूही चम्पक बन फूलें…’ : पं. भीमसेन जोशी और मन्ना डे
आज की पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ की 155वीं संगीत पहेली में हम आपको वाद्य संगीत का एक अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 160वें अंक तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – संगीत के इस अंश को सुन कर राग पहचानिए और हमें राग का नाम लिख भेजिए।
2 – यह रचना सुन कर क्या आप वाद्य यंत्र को पहचान रहे हैं? यदि हाँ तो तत्काल हमें उसका नाम लिख भेजिए।
आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 157वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ की 153वीं संगीत पहेली में हमने आपको पण्डित वी.जी. जोग के वायलिन वादन के एक पुराने रिकार्ड का एक अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग बहार और दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- तीनताल। इस अंक के दोनों प्रश्नो के सही उत्तर जबलपुर से क्षिति तिवारी, जौनपुर से डॉ. पी.के. त्रिपाठी, चंडीगढ़ से हरकीरत सिंह और हैदराबाद की डी. हरिणा माधवी ने दिया है। चारो प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर आज का हमारा यह अंक बसन्त ऋतु के रागों पर केन्द्रित था। यह सिलसिला आगामी अंक में भी जारी रहेगा। इस श्रृंखला की आगामी कड़ियों के लिए आप अपनी पसन्द के रागों या रचनाओं की फरमाइश कर सकते हैं। आप हमें एक नई श्रृंखला के विषय का सुझाव भी दे सकते हैं। हम आपके सुझावों और फरमाइशों का स्वागत करेंगे। अगले अंक में रविवार को प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इस मंच पर आप सभी संगीत-रसिकों की हमें प्रतीक्षा रहेगी।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र