

‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक के साथ मैं
कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-रसिकों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ।
मित्रों, पिछले अंक में हमने बसन्त पंचमी के उपलक्ष्य मे राग बसन्त के
माध्यम से ऋतुराज का स्वागत किया था और भारतीय संगीत के महान रत्न पण्डित
भीमसेन जोशी को उनके जन्मदिवस पर स्मरण किया था। आज संगीत-प्रेमियों की इस
गोष्ठी में बसन्त ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले एक और राग, बहार की चर्चा
होगी। साथ ही पण्डित भीमसेन जोशी को एक बार पुनः उन्हीं की कृति के माध्यम
से स्मरण करेंगे। भारतीय संगीत के विश्वविख्यात कलासाधक और सर्वोच्च
राष्ट्रीय सम्मान ‘भारतरत्न’ से अलंकृत पण्डित भीमसेन जोशी का जन्म भी
बसन्त ऋतु में 4 फरवरी, 1922 को हुआ था। बसन्त ऋतु में गाये-बजाये जाने
वाले कुछ मुख्य रागों की चर्चा का यह सिलसिला हमने गत सप्ताह से आरम्भ किया
है। इस श्रृंखला की अगली कड़ी में आज हम आपसे राग बहार पर चर्चा करेंगे।


दिनों बसन्त ऋतु में गाये-बजाए वाले रागों पर चर्चा जारी है। अगले अंक में
हम इस लघु श्रृंखला के अन्तर्गत एक और ऋतु प्रधान राग पर चर्चा करेंगे। इस
लघु श्रृंखला के बाद हम शीघ्र ही एक नई श्रृंखला के साथ उपस्थित होंगे। इस
बीच हम अपने पाठकों/श्रोताओं के अनुरोध पर कुछ अंक जारी रखेंगे। अगले अंक
में रविवार को प्रातः 9 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर सभी
संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।