

‘रागमाला’ के नए अंक के साथ आज एक बार फिर मैं कृष्णमोहन मिश्र
संगीत-प्रेमियों की इस गोष्ठी में उपस्थित हूँ। इस लघु श्रृंखला के लिए
हमें अनेक संगीत-प्रेमियों के, विशेष रूप से संगीत की शिक्षा प्राप्त कर
रहे विद्यार्थियों की कई फरमाइशें प्राप्त हुई हैं। कुछ संगीत-प्रेमियों
ने तो रागमाला के कुछ अपनी पसन्द के गीत भी भेजे हैं। उन सभी
संगीत-प्रेमियों के प्रति आभार प्रदर्शित करते हुए हम यह आश्वासन देते हैं
कि इस श्रृंखला में हम इन्हें उनके नाम के साथ प्रकाशित/प्रसारित करेंगे।
श्रृंखला का आज के पहले अंक का रागमाला गीत लखनऊ के चार संगीत के
विद्यार्थियों- गुंजा सिंह, आरती खत्री, यश शुक्ला और सैयद आमिर अली ने
उपलब्ध कराया है और रागमाला श्रृंखला में शामिल करने का अनुरोध किया है।
इनके अनुरोध पर आज के अंक में हम प्रस्तुत कर रहे हैं, 1962 में प्रदर्शित
फिल्म ‘संगीत सम्राट तानसेन’ का बेहद चर्चित रागमाला गीत।
फिल्म संगीत में मेलोडी से परिपूर्ण और राग आधारित गीतों की दृष्टि से पाँचवें दशक के उत्तरार्द्ध से लेकर सातवें दशक के पूर्वार्द्ध की अवधि महत्त्वपूर्ण है। इस अवधि में हजारों मधुर और कालजयी गीतों की रचना हुई। इसी अवधि में एक सफल संगीतकार के रूप में श्रीनाथ त्रिपाठी (एस.एन. त्रिपाठी) का नाम तेजी से उभरा। ऐतिहासिक और और पौराणिक फिल्मों के सर्वाधिक सफल संगीतकार एस.एन. त्रिपाठी ने फिल्मों में संगीतकार के अलावा अभिनेता, निर्माता और निर्देशक के रूप में भी अपना योगदान किया था। 14 मार्च, 1913 को कला और संस्कृति की राजधानी काशी नगरी (वाराणसी) में जन्मे श्री त्रिपाठी का जन्मशती वर्ष आज से तीन दिन बाद ही पूर्ण हो रहा है। इस महान संगीतकार को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से स्वरांजलि अर्पित करने के उद्देश्य से ही हमने आज की ‘स्वरगोष्ठी’ में उन्हीं का स्वरबद्ध किया गीत चुना है। एस.एन. त्रिपाठी के फिल्म जगत में प्रवेश के प्रसंग का उल्लेख फिल्म संगीत के इतिहासकार सुजॉय चटर्जी ने अपनी पुस्तक ‘कारवाँ सिने-संगीत का’ में करते हुए लिखते हैं- “जीवन नैया’ में श्रीनाथ त्रिपाठी (जो बाद में एस.एन. त्रिपाठी के नाम से मशहूर संगीतकार हुए) को पहला मौका मिला गायक के रूप में। उन्होंने इस फ़िल्म में अभिनय भी किया और “ए री दैया लचक लचक चलत मोहन आवे, मन भावे…” गीत गाया। त्रिपाठी ने इलाहाबाद से बी.एससी की डिग्री पूरी करने के बाद मॉरिस म्यूजिक कॉलेज, लखनऊ (वर्तमान, भातखण्डे संगीत विश्वविद्यालय) से भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली। लखनऊ की ही मैना देवी से उन्होंने उपशास्त्रीय संगीत और लोक-संगीत की तालीम भी ली थी। मॉरिस कॉलेज से ‘संगीत विशारद’ और प्रयाग संगीत समीति से ‘संगीत प्रवीण’ की उपाधि प्राप्त करने के बाद त्रिपाठी बॉम्बे टॉकीज़ में वायलिन वादक के रूप में सरस्वती देवी के ऑरकेस्ट्रा में भर्ती हो गए और 1938 तक यहाँ रहे। इसके बाद उन्होंने अपनी स्वतंत्र संगीतकार की पारी शुरु की”। स्वतंत्र संगीत-निर्देशक के रूप में उनकी पहली फिल्म ‘चन्दन’ (1939) थी। लघु श्रृंखला ‘रागमाला’ के आज पहले अंक के लिए हमने एस.एन. त्रिपाठी के संगीत-निर्देशन में 1962 में बनी संगीत प्रधान फिल्म ‘संगीत सम्राट तानसेन’ का एक गीत चुना है।




पाठकों के अनुरोध पर प्रस्तुत किया है। आज के अंक में प्रस्तुत किया गया
रागमाला गीत का आडियो हमें लखनऊ के संगीत-विद्यार्थियों- गुंजा सिंह, आरती
खत्री, यश शुक्ला और सैयद आमिर अली ने भेजा था। आगामी अंक में भी हम आपको
एक फिल्मी रागमाला गीत सुनवाएँगे और उसमें सम्मिलित रागों पर आपसे चर्चा
करेंगे। आप भी हमारे आगामी अंकों के लिए भारतीय शास्त्रीय संगीत से जुड़े
नये विषयों, रागों और अपनी प्रिय रचनाओं की फरमाइश कर सकते हैं। हम आपके
सुझावों और फरमाइशों को पूरा सम्मान देंगे। अगले अंक में रविवार को प्रातः
9-30 ‘स्वरगोष्ठी’ के इस मंच पर आप सभी संगीत-प्रेमियों की हमें प्रतीक्षा रहेगी।
कृष्णमोहन मिश्र
1 comment
महाशिव रात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ